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चुनार के बलुआ पत्थर को जीआइ का तमगा, बौद्धिक संपदा में शामिल हुआ 11वां उत्पाद

बनारस से सटे जनपद मीरजापुर के चुनार क्षेत्र की खदानों से निकलने वाले बलुआ पत्थर (सैंड स्टोन) को जियोग्राफ‍िकल इंडिकेशन (भौगोलिक संकेतक) का तमगा मिल गया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 25 Mar 2019 07:40 PM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 07:40 PM (IST)
चुनार के बलुआ पत्थर को जीआइ का तमगा, बौद्धिक संपदा में शामिल हुआ 11वां उत्पाद
चुनार के बलुआ पत्थर को जीआइ का तमगा, बौद्धिक संपदा में शामिल हुआ 11वां उत्पाद

वाराणसी [मुहम्‍मद रईस]। कमाल की बौद्धिक संपदाओं से प्रचुर वाराणसी परिक्षेत्र के ताज में एक और नगीना जुड़ गया है। बनारस से सटे जनपद मीरजापुर के चुनार क्षेत्र की खदानों से निकलने वाले बलुआ पत्थर (सैंड स्टोन) को जियोग्राफ‍िकल इंडिकेशन (भौगोलिक संकेतक) का तमगा मिल गया है। चेन्नई की जीआइ कोर्ट में दो वर्ष आठ माह चली प्रक्रिया के बाद बौद्धिक संपदा अधिकार की यह उपलब्धि हासिल हो सकी है। इसी पत्थर से अशोक की लाट बनाई गई थी। यह सैंड स्टोन मीरजापुर के अलावा चंदौली और सोनभद्र की खदानों से भी निकलता है। राजधानी लखनऊ सहित देश के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों व स्मारकों के निर्माण में चुनार के पत्थरों का प्रयोग किया गया है।

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चुनार के पत्थर को जोड़ लें तो अब तक वाराणसी परिक्षेत्र के कुल 11 उत्पादों को जीआइ का तमगा मिल चुका है। जीआइ टैगिंग से अन्य क्षेत्रों में इसकी नकल नहीं की जा सकती है और संबंधित क्षेत्र का उसपर कानूनन अधिकार हो जाता है। चुनार का पत्थर देश का दूसरा प्राकृतिक उत्पाद है जिसे जीआइ मिली है। इसके पूर्व मकराना के मार्बल इस श्रेणी में पंजीकृत किए गए थे। जीआइ तमगा दिलाने में शिल्पियों की संस्था का सहयोग जीआइ विशेषज्ञ डा. रजनीकांत के नेतृत्व में ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी और नाबार्ड ने किया है।

समय के साथ बढ़ती है चमक : चुनार के पत्थरों की विशेषता यह है कि यह जितना पुराना होता जाता है, पत्थर में मौजूद बलुआ कणों और उसके घनत्व के कारण उसकी चमक वायु घर्षण से बढ़ती जाती है। जीआइ विशेषज्ञ डा. रजनीकांत के मुताबिक पानी के भीतर सैकड़ों वर्ष तक रहने के बावजूद यह पत्थर खराब नहीं होता है। 

उपस्थिति के ऐतिहासिक साक्ष्य : चुनार के बलुआ पत्थर का उपयोग सारनाथ म्यूजियम में रखी अशोक की लाट, चुनार का प्रसिद्ध किला, रामनगर फोर्ट, बनारस के प्रसिद्ध घाट, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के मुख्य भवन, सारनाथ का मुख्य बौद्ध मंदिर, थाई मंदिर में बनी कांधार शैली की 80 फीट ऊंची प्रतिमा, सारनाथ वियतनामी मंदिर में 70 फीट की पद्मासन की मूर्ति, स्तूप, सारनाथ म्यूजियम, मथुरा, वृन्दावन के प्रसिद्ध मंदिरों सहित हजारो बौद्ध प्रतिमाओं, मूर्तियों, कलाकृतियों व स्मारकों में हुआ है। इन पत्थरों का प्रयोग बुद्ध व महावीर के काल से पूर्व से किया जा रहा है।

2000 करोड़ का कारोबार : वर्तमान में लगभग 1000 शिल्पी देश के विभिन्न हिस्सों में चुनार के बलुआ पत्थर पर नक्काशी उकेरने का काम कर रहे हैं। चुनार बलुआ पत्थर का कारोबार लगभग 2000 करोड़ रुपये सालाना का है। 


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