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ऑनलाइन बाजार में जल्द उतरेगा पीढिय़ों पुराना सिंधौरा, प्लास्टिक के खिलौनों पर भारी लकड़ी के आइटम

शादी के वक्त आज भी दुल्हनों को लकड़ी का सिंधौरा दिया जाता है। मगर वक्त के साथ इसकी डिजाइन बदली।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 07:30 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 08:55 AM (IST)
ऑनलाइन बाजार में जल्द उतरेगा पीढिय़ों पुराना सिंधौरा, प्लास्टिक के खिलौनों पर भारी लकड़ी के आइटम

वाराणसी [वंदना सिंह]। शादी के वक्त आज भी दुल्हनों को लकड़ी का सिंधौरा दिया जाता है। मगर वक्त के साथ इसकी डिजाइन बदली। पीढिय़ों पहले लकड़ी के सिंधौरा में दूल्हा-दुल्हन का चित्र, सिक्का, चिडिय़ा, शुभ लाभ चित्र आदि बनाया जाता था। बाद में यह चीजें औपचारिक डिजाइन तक सीमित हुईं लेकिन एक बार फिर वर्तमान में काष्ठ शिल्पियों ने लकड़ी के सिंधौरा के प्राचीन रूप को बनाना शुरू किया है ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि पीढिय़ों पहले हुआ करता था। खास बात यह कि इसकी जबरदस्त डिमांड बढ़ गई है। इतना ही नहीं इस सिंधौरा को आनलाइन बाजार में उतारने की प्लानिंग हो चुकी है।

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रसोई के बर्तन भी लकड़ी के

जीआइ के अर्थराइज्ड यूजर व राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त रामेश्वर सिंह कुंदेल अपने कश्मीरीगंज स्थित कारखाने में प्राचीन परंपरा व संस्कृति को संजोए इस सिंधौरा को तैयार कर रहे हैं। इसे आनलाइन बाजार में उतारने के लिए तैयारी पूरी है। इससे यह विश्व फलक तक जाएगा। उन्होंने बताया तमिलनाडु के एक स्कूल से लकड़ी की बनी रसोई के दस हजार बर्तन बनाने का आर्डर मिला है। जिसे पूरा किया जा रहा है। इसमें काफी बनाकर भेजा जा चुका है। बच्चों को स्कूल में वस्तु परिचय पढ़ाने के लिए अब लकड़ी के सामान प्रयोग किए जा रहे हैं।

महिलाएं भी जुड़ रहीं

रामेश्वर सिंह इस उद्योग में महिलाओं को भी जोड़ रहे हैं। ताकि वह भी स्वावलंबी हो सकें। बबली, गीता, सीता, रानी आदि कई महिलाएं लकड़ी के खिलौने बना रही हैं। उन्होंने बताया लकड़ी के खिलौनों का जीआई होने के बाद से वक्त बदला। पहले प्लास्टिक के खिलौनों ने लकड़ी के खिलौनों को गायब सा कर दिया मगर अब लकड़ी के खिलौनों ने वापस अपनी जगह पा ली और प्लास्टिक के खिलौनों पर भारी पड़ रहा है। बस सरकार बिजली की सुविधा, लकड़ी आदि की उपलब्धता की व्यवस्था कर दे तो और अच्छा रहेगा।

नेचुरल रंग और परंपरागत डिजाइन

एक्रेलिक कलर व नेचुरल कलर से ये खिलौने तैयार किए जा रहे हैं जिनमें परंपरागत डिजाइन बनाया जाता है। लकड़ी के नेकलेस व ईयरङ्क्षरग पर तोता, मोर, गौरैया आदि का चित्र बनाया जाता है जो विदेशों में भी पापुलर हो रहा है।

विदेशी खिलौने भी परंपरागत भारतीय डिजाइन व लकड़ी में

लकड़ी के खिलौनों के साथ अब काष्ठ की ज्वेलरी में ईयरङ्क्षरग व नेकलेस, इंटीरियर में प्रयोग होने वाला सामान आदि भी बनने लगा है। खास बात यह कि लकड़ी की चिडिय़ा चुगनी, गुडिय़ा, गुल्लक, आटो रिक्शा, रिक्शा, बस, केतली, फोटोफ्रेम, बंदनवार यहां तक के विदेशी खिलौने भी अब लकड़ी में बन रहे हैं और इनकी डिमांड बढ़ गई है। मंदिर लिए गणेश, शिव, पंचमुखी, गणेश, पंचमुखी हनुमान, दुर्गा जी, विष्णु जी, भगवान बुद्ध आदि की मूर्ति तैयार की जा रही है।

तैयार हो चुकी है स्ट्रेटजी

ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन नाबार्ड के साथ मिलकर जीआई प्रोडक्ट में नई पीढ़ी को आनलाइन बाजार को लेकर प्रशिक्षण कराएगी इसकी स्ट्रेटची बन चुकी है। लकड़ी के खिलौने को लेकर देश और विदेश दोनों में मांग बढ़ गई है। भारत के परंपरागत डिजाइन व रंग उन्हें भा रहे हैं। खिलौने ही नहीं गहने, इंटीरियर के सामान, भगवान की मूर्तियों की भी मांग है।

-पद्श्री डा.रजनीकांत, जीआइ विशेषज्ञ।


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