काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : निषाद समाज से पहचान मिली इस घाट को
काशी में चौरासी प्रमुख गंगा घाटों के इतिहास और उनके महात्म्य से परिचय कराने का दैनिक ज
काशी में चौरासी प्रमुख गंगा घाटों के इतिहास और उनके महात्म्य से परिचय कराने का दैनिक जागरण का विशेष अभियान, वेब सीरीज की आज चौथी कड़ी में शामिल है गंगा के किनारे बने 'निषाद घाट' और उसकी पहचान की विशेष जानकारी - पुण्य सलिला गंगा के तटों पर सभ्यताओं और संस्कृतियों का पनपना और पुष्पित पल्लवित होना तो आम रहा है। मगर नदी के किनारे मल्लाहों का होना भी नदी की संस्कृति से ही जुड़ा है। नदियों की लहरों पर इनकी अलग ही संस्कृति रही है। त्रेता युग में भगवान राम को गंगा पार कराने की कथा में निषाद राज गुह्य की भूमिका और उनकी श्रद्धा-आस्था और भक्ति का अनुपम उदाहरण आज भी दिया जाता है। काशी में उसी समाज को समर्पित गंगा किनारे बने निषाद घाट को निषाद राज घाट के तौर पर भी पहचाना जाता है।
वर्ष 1980 के पूर्व यह प्रहलाद घाट का ही छूटा हुआ कच्चा भाग हुआ करता था। जिसको सन् 1988 में राज्य सरकार के सहयोग से सिंचाई विभाग ने पक्का निर्माण करा कर अलग पहचान दी। घाट क्षेत्र में निषाद मल्लाह जाति के लोगों की बाहुल्यता होने से इसका नामकरण निषादराज घाट के तौर पर पहचान मिली। हालांकि घाट के तट पर मंदिरों की संख्या लगभग नगण्य है। हालांकि वर्तमान में घाट पक्का बना हुआ है इस घाट पर आने वाले श्रद्धालु एवं स्थानीय लोग भी पूर्व की पहचान वाले प्रहलाद घाट पर ही स्नान करते हैं। इस घाट पर लोग हालांकि कपड़े आदि भी साफ करते हैं। मगर प्रह्लाद घाट से जुड़ा अस्तित्व होने की वजह से इसे भी उतना ही मान मिलता है। साथ ही गंगा से जुड़े विविध आयोजनों में यह घाट भी शामिल है।