इस बार 12 जून को दस पापों से मुक्ति का स्नान पर्व गंगा दशहरा, गंगा का हुआ था अवतरण
बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में गंगा धरोहर से कम नहीं। काशी के गले में चंद्रहार की तरह लिपटी गंगा का ज्येष्ठ शुक्ल दशमी पर धरती पर अवतरण हुआ।
वाराणसी, जेएनएन। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में गंगा धरोहर से कम नहीं। काशी के गले में चंद्रहार की तरह लिपटी गंगा का ज्येष्ठ शुक्ल दशमी पर धरती पर अवतरण हुआ। इस दिन को गंगा दशहरा कहा गया जो इस बार 12 जून को पड़ रहा है।
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया सनातन धर्म में ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को दश पापों को हरने वाली मां गंगा का अवतरण दिवस माना जाता है। सनातन धर्म इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाते हैं। धर्म शास्त्र के अनुसार मां गंगा का अवतरण हस्त नक्षत्र बुधवार को कन्या राशि वृषभ लग्न में हुआ था। इस बार गंगा दशहरा 12 जून को मनाया जाएगा। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि 11 जून को रात 9.09 बजे लग रही है जो 12 जून को रात 6.57 बजे तक रहेगी। वहीं हस्त नक्षत्र 12 जून को दोपहर 12.58 बजे तक होगा।
पूजन विधान
गंगा दशहरा पर काशी में दशाश्वमेध घाट पर गंगा स्नान करने का शास्त्रों में बखान है। स्नानोपरांत मां गंगा का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन और गंगा सहस्त्रनाम, गंगा लहरी, गंगा गायत्री मंत्र आदि से मां गंगा की आराधना-वंदना करनी चाहिए। गरीबों-असहायों को दान और ब्राह्मणों को भोजन कराने का भी विधान है।
महत्व-मान्यता
गंगा दशहरा पर गंगा स्नान व पूजन अनुष्ठान से 10 तरह के पापों का नाश के साथ ही धर्म-अर्थ, काम-मोक्ष की प्राप्ति के साथ अंत में वैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि 'गंगे तव दर्शनात मुक्तिÓ अर्थात् माता गंगा के दर्शन से ही मुक्ति मिल जाती है। विशेष अगर गंगा अवतरण दिवस की बात हो तो मां गंगा में स्नान-सानिध्य प्राप्त हो तो मानव जीवन में कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है।
पौराणिक कथा
राजा सगर द्वारा अश्वमेध यज्ञ का संकल्प और उसकी परंपरानुसार अश्वमेध यज्ञ का प्रतीक घोड़ा छोड़ा गया। इंद्र ने घोड़े को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर ने अपने 60 हजार पुत्रों को अश्व की खोज केलिए भेजा। कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा पाकर सगर पुत्र उन्हें तंग करने लगे। कपिल मुनि ने तपस्या भंग होने पर सगर के पुत्रों को श्राप देकर भस्म कर दिया। सगर की पांचवीं पीढ़ी में राजा भगीरथ ने ब्रह्मïा की तपस्या कर गंगा को प्रसन्न कर पृथ्वी पर ले आने का जतन किया। वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मा गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव शकर की जटाओं में पहुंचीं। इस दिन को गंगा सप्तमी यानी गंगा उत्पत्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान शिव के लट खोलने पर गंगा की दस धाराएं हो गई। नौ धाराएं नौ गंगा केनाम से हिमालय में बहने लगीं जिनमें 15 कलाओं का समावेश था। दसवीं धारा को महादेव ने विदसर सरोवर में डाला और यही धारा गोमुख से पहली बार धरती पर प्रकट हुई। इस धारा में शिवकृपा से 16 कलाओं का समावेश था और यह धारा भागीरथी कहलाई। गंगा की इस धारा से सगर के साठ हजार पुत्रों को उत्तरायण सूर्य मकर संक्रांति पर मुक्ति मिली थी। गंगा के धरती पर अवतरण का यह ज्येष्ठ शुक्ल दशमी गंगा दशहरा कहलाया।
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