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शिक्षा का अंधकार दूर करने के लिए किराए पर कमरा लेकर बच्चों को देते हैं निश्शुल्क शिक्षा

पढ़ाई-लिखाई के बाद से अपना सब कुछ छोड़कर ज्ञान का उजियारा बांटने का का क्रम जारी है। पेंशन के रुपये से एक कमरा किराए पर लेकर बच्चों को फ्री में पढ़ाते हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 05 Feb 2020 08:50 AM (IST)Updated: Wed, 05 Feb 2020 03:09 PM (IST)
शिक्षा का अंधकार दूर करने के लिए किराए पर कमरा लेकर बच्चों को देते हैं निश्शुल्क शिक्षा
शिक्षा का अंधकार दूर करने के लिए किराए पर कमरा लेकर बच्चों को देते हैं निश्शुल्क शिक्षा

आजमगढ़ [विकास विश्वकर्मा]। पढ़ाई-लिखाई के बाद से अपना सब कुछ छोड़कर ज्ञान का उजियारा बांटने का का क्रम जारी है। पेंशन के रुपये से एक कमरा किराए पर लेकर बच्चों को फ्री में पढ़ाते हैं। विवाह नहीं किया, घर-बार छोड़ दिया। गरीबों में शिक्षा की संजीवनी बांट रहे हैं। ऐसे हैं गिरीजेश गुरुजी। सबके लिए उनका गुरुकुल खुला है। बच्चे में पढऩे की इच्‍छा हो तो गरीबी को भी आड़े नहीं आने देते। किताब के साथ गुरुकुल तक आने-जाने का किराया पास से देते हैं। उनका एक ही स्लोगन कि हम अंधकार को क्यों धिक्कारें अच्छा है एक दीप जलायें।

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गिरीजेश तिवारी पुणे से मेडिकल की पढ़ाई छोडऩे के बाद जब लौटे तो उन्होंने शिक्षा की अलख जगाने की ठान ली। लोगों में निरक्षरता ने उन्हें ऐसा झकझोर दिया कि चिकित्सक बनने की मंशा उसी वक्त त्याग दिया। उनका कहना है कि इकबाल सुहैल का यह शेर ''ये खित्तै-ए-आजमगढ़ है मगर फैजान ऐ तजल्ली है अक्सर, जो जर्रा यहां से उठता है, वह नैयर-ए-आजम होता है आजमगढ़ की पहचान बताता है। दूसरा मेरा शेर है कि जिद ने अगर हर बार ही इतिहास बनाया तो फिर से नया इतिहास बनाने की ही जिद है। हिम्मत व हौसले के साथ यदि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मंजिल खुद कदमों में आ जाती है। 'कर्म ही पूजा है और अच्छा काम पूजा से भी श्रेष्ठ है। गरीबों की उपेक्षा कर कोई समाज या राष्ट्र विकास नहीं कर सकता। वह किसी बच्चे से कुछ नहीं लेते और इधर-उधर से चंदा जुटा कर बच्चों और अध्यापकों पर खर्च करते हैं।

गरीब बच्चों के लिए त्याग दिया पारिवारिक जीवन 

गिरीजेश तिवारी के पिता स्व. अनिरूद्ध तिवारी डाक विभाग में पोस्ट मास्टर थे। उनका पैतृक गांव जनपद के बोंगरिया बाजार के पीछे बभनौली में है। उनका बचपन खत्री टोला में बीता। बड़े भाई डा. सुरेंद्र नाथ तिवारी अमेरिका में वैज्ञानिक हैं। गिरीजेश तिवारी 1980 में पुणे टिड़क आयुर्वेदिक महाविश्वविद्यालय से बीएएमएस की पढ़ाई छोड़ कर घर लौटे। वहीं से इनका झुकाव पूरी तरफ समाज की तरफ हो गया। इसके बाद वह कुछ कर गुजरने का मन बनाए और परिवार छोड़कर निकल पड़े। इन्होंने आजमगढ़ में स्थित राहुल सांकृत्यायन स्कूल की नींव रखते हुए पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद वह रैदोपुर स्थित एक मकान किराए पर लेकर गरीब बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे कारवां बढ़ता गया, बच्चों की संख्या भी बढ़ती गई। शाम तीन बजे से छह बजे तक कक्षा नौ से 12 तक की कक्षाएं चलती हैं। तीन से छह बजे के बीच चार बैच चलाए जाते हैं।

गरीब बच्चों के सपनों को लगा रहे पंख 

कोई डीएम बनना चाहता है तो कोई पायलट, कोई इंजीनियर बनकर देश के विकास में योगदान देना चाहता तो कोई डाक्टर बनना चाहता है। ऐसे ही कुछ सपनों को संजो रखे हैं गरीब परिवार के बच्चे। गिरीजेश तिवारी इन बच्चों के सपनों को पंख लगा रहे हैं। उनके अथक प्रयासों का ही नतीजा है कि विभिन्न झुग्गी-झोपडिय़ों में रहने वाले बच्चे शिक्षा ग्रहण कर अपने सपनों को पूरा करने में लगे हैं। यही नहीं, आधा दर्जन बच्चे प्रयागराज, वाराणसी लखनऊ सहित अन्य जिलों में पढ़ रहे हैं। उनकी पढ़ाई व अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए वह हर माह उनके अकाउंट में पैसा भेज देते हैं।

डा. मयंक उनके सबसे चहेते रहे शिष्य 

गिरीजेश तिवारी अपने शिष्यों को अपना पुत्र मानते हैं। उन्होंने बताया कि अब तक के सबसे टॉप मोस्ट ब्रेन का बच्चा डा. मयंक त्रिपाठी रहे। आज तक उनके जैसा कोई छात्र उन्हें नहीं मिला। आज भी डा. मयंक उनके सबसे चहेते हैं।

मोबाइल पर भी तराश रहे भविष्य 

मकसद, शिक्षा से दूर बच्चों को मुख्य धारा में लाना था। उन्होंने अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार कर अपना नंबर सभी को उपलब्ध कराया। शाम छह बजे से 10 बजे तक वह फोन पर ही उन्हें पढ़ाते हैं। मोबाइल पर चल रही पाठशाला में अब दूर-दूर के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। उनका जज्बा देख लोग इस मुहिम की सराहना कर रहे हैं।


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