मक्का की पैदावार बढ़ाने के लिए अपनाएं ये आधुनिक तरीका, अच्छी प्रजाति के बीज का करें चयन
मक्का की अच्छी पैदावार के लिए वैज्ञानिक ढंग से खेती जरूरी है। मक्का के लिए अच्छे जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।
जौनपुर, जेएनएन। जिले में खरीफ की फसलों में धान के बाद मक्का मुख्य है। इसकी खेती भुट्टा, अनाज तथा हरे चारे आदि के लिए की जाती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए वैज्ञानिक ढंग से खेती जरूरी है। इस साल 2,30,362 हेक्टेयर खरीफ की खेती का लक्ष्य है। इसमें 47460 हेक्टेयर में मक्का बोया जाएगा। मक्का के लिए अच्छे जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।
पहली जोताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य दो या तीन जोताई कल्टीवेटर, देशी हल या रोटावेटर से करनी चाहिए। छोटे दाने वाले देशी प्रजातियों के लिए 16 से 18 किग्रा तथा संकर एवं संकुल प्रजातियों के लिए 18 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। बोवाई से पूर्व बीज शोधन जरूर कर लें। इसके लिए दो ग्राम थिरम और एक ग्राम कार्बेडाजिम अथवा दस ग्राम ट्राइकोडरमा को प्रति किग्रा बीज की दर से प्रयोग करें।
कैसे करें बोआई
जिला कृषि अधिकारी अमित चौबे ने बताया कि बोवाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी अगेती किस्मों में 45 सेमी, मध्यम एवं देर से पकने वाली प्रजातियों में 60 सेमी रखनी चाहिए। अगर किसानों ने अपने खेत की मिट्टी की जांच नहीं कराई है तो वह संकर व संकुल प्रजातियों के लिए 100:30:40 तथा देशी प्रजातियों के लिए 60:30:30 के अनुपात में नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश प्रति हेक्टेयर डालें। यदि खेत में गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर दस टन डाली गई हो तो नत्रजन 25 किग्रा कम कर दें।
क्या बोले वैज्ञानिक
कृषि विज्ञान केंद्र के शस्य वैज्ञानिक डा. सोमेंद्र नाथ ने कहा कि मक्का जौनपुर की एक प्रसिद्ध फसल है। इसकी उत्पादकता बहुत ही कम लगभग 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि उत्पादकता 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। उत्पादकता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक विधि से खेती की आवश्यकता है। अच्छे उत्पादन के लिए जिंक सल्फेट 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में डालें। खरपतवार न उगे इसलिए बोवाई के दो से तीन दिन बाद पेंडीमैथलीन 3.3 लीटर तथा बोवाई के 25 दिन बाद खड़ी फसल में टेंबोट्राईऑन 285 मिली अथवा एट्राजीन चार किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल कर छिड़काव करें। जीरा निकलते समय खेत में नमी बहुत आवश्यक है। कहा कि मक्का की बोवाई 10 जून से 25 जून तक अवश्य कर देनी चाहिए लेट होने पर उत्पादन कम हो जाता है।
लाचार किसान, गुम हो रही जिले की पहचान
जनपद की पहचान मक्का की खेती का दायरा लगातार घटता जा रहा है। कृषि आधारित उद्योग न होने के कारण उत्पाद का उचित मूल्य न मिलने के चलते किसान पारंपरिक खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं। 'जौनपुरी मक्का का देश में अलग पहचान है। शासन-प्रशासन की उपेक्षा के चलते जिले का प्रसिद्ध उत्पाद संकट में पड़ा गया है। ढाई दशक पूर्व तक एक लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में मक्के के खेती की जाती थी। वर्तमान में खेती का दायरा घटकर पचास हजार हेक्टेयर से भी कम हो गया है। किसान दूसरी फसलों की तुलना में उत्पादन न बढ़ने और उत्पाद का उचित मूल्य कम होने के कारण किसान पारंपरिक खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं।