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प्रथम स्‍वतंत्रता संग्राम 1857 : चंदौली में अंग्रेजों ने 79 लोगों को लटका दिया था पेड़ से, बाबू कुंवर सिंह ने फूंका था बिगुल

10 मई 1857 को अमर शहीद मंगल पांडेय ने मेरठ से अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति आरा गाजीपुर एवं आजमगढ़ जिला की जिम्मेदारी बाबू कुंवर सिंह के पास थी। उनको जब मेरठ क्रांति के बारे में पता चला तो अंग्रेजों को भगाने के लिए अपने लोगों के साथ वे भी कूद पड़े।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 10 May 2021 06:10 AM (IST)Updated: Mon, 10 May 2021 06:10 AM (IST)
प्रथम स्‍वतंत्रता संग्राम 1857 : चंदौली में अंग्रेजों ने 79 लोगों को लटका दिया था पेड़ से, बाबू कुंवर सिंह ने फूंका था बिगुल
चंदौली के सकलडीहा के डेढ़ावल के पास अंग्रेजों ने 79 लोगों को पेड़ के सहारे फांसी पर लटका दिया था।

चंदौली [विवेक दुबे]। 10 मई 1857 को अमर शहीद मंगल पांडेय ने मेरठ से अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका था। उस घटना के बाद लोगों के मन में विरोध के स्वर फूटे और चिंगारी ने आग का रूप धर लिया। देखते ही देखते ही मेरठ से शुरू हुई क्रांति देश के कई हिस्सों में पहली आजादी की लड़ाई बन गई। अंग्रेजों ने इसे गदर का नाम दिया था और इसे कुचलने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। सकलडीहा के डेढ़ावल के पास अंग्रेजों ने 79 लोगों को पेड़ के सहारे फांसी पर लटका दिया था।

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उन दिनों आरा, गाजीपुर एवं आजमगढ़ जिला की जिम्मेदारी बाबू कुंवर सिंह के पास थी। बाबू कुंवर सिंह को जब मेरठ क्रांति के बारे में पता चला तो अंग्रेजों को भगाने के लिए अपने लोगों के साथ वे भी कूद पड़े। उनके आह्वान पर भारी संख्या में लोग जगह जगह अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और उन्हें खदेड़ना शुरू किए। सकलडीहा क्षेत्र से लगभग अंग्रेजों को उस समय भगा दिया गया था। उसी समय अंग्रेजों की एक कंपनी गदर पर नियंत्रण करने के लिए कोलकाता से यहां आई। एक तरफ से अंग्रेजों ने लोगों को पकड़ना व मारना शुरू किया। पकड़कर लाए गए 79 लोगों को एक साथ पेड़ पर लटका दिया गया और उनके लाश को वहीं एक कुएं में डाल दिया गया। लोगों के अनुसार उस समय लाशों से कुआं पट गया था।

गोली लगने पर बाबू कुंवर ने काट लिया था हाथ

सकलडीहा क्षेत्र में क्रांति का बीज बोने का श्रेय बाबू कुंवर सिंह को ही जाता है। उस समय गाजीपुर में नाव से जब वे गंगा पार कर रहे थे उसी समय अंग्रेजों ने गोली मारी जो उनके बाएं हाथ में लगी थी। कुंवर सिंह ने तलवार से उस हाथ को ही काट डाला था। डेढ़ावल में एक साथ 79 लोगों को फांसी दिया जाना आज तक स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की सबसे बड़ी घटना मानी जाती है।

डाक्टर रामप्रकाश ने स्मृति स्थल बनाने को किया था आंदोलन

क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने जिस कुए में मारकर डाल दिया था, वर्तमान में उसका आज नामोनिशान तक देखने को नहीं मिलता है। उस समय आसपास के गांव वाले विशाल कुआं से पानी पीते थे। इसी एक कुएं से पानी मिलता था। वर्तमान में पीडब्ल्यूडी विभाग ने कुएं को पूरी तरह से पाट दिया है। शहीदों की याद में कुएं के पास स्मृति स्थल बनाने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर के शाहकुटी निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. रामप्रकाश शाह ने आंदोलन शुरू किया था लेकिन उनके निधन के बाद यह आंदोलन पर समाप्त हो गया।

गाजीपुर तहसील का हिस्सा था डेढ़ावल

डेढ़ावल गांव निवासी 78 वर्षीय धरनीधर तिवारी बताते हैं कि उस समय सकलडीहा क्षेत्र का डेढ़ावल गांव गाजीपुर तहसील का हिस्सा हुआ था। वहीं चंदौली वाराणसी जनपद से जुड़ा था। वर्तमान में सकलडीहा चंदौली जनपद का हिस्सा है। डेढ़ावल गांव में ही अंग्रेजों ने मिलिट्री चौकी बनाई थी। कोलकाता या अन्य जगहों से आने वाले अंग्रेजों को पड़ाव मिलिट्री चौकी हुआ करता था। समय बीतने के साथ ही मिलिट्री चौकी का नाम बदलकर डेढ़ावल चौकी कर दिया गया। आज भी जब 10 मई का दिन आता है तो सकलडीहा क्षेत्र के लोगों में ब्रिटिश हुकूमत की याद ताजा हो जाती है। अंग्रेजों की यातनाएं हर ओर गूंजने लगती हैं लेकिन क्षेत्र के लोग गर्व भी महसूस करते हैं कि उनके क्षेत्र के क्रांतिकारों के शौर्य के आगे अंग्रेजी सेना टिक नहीं सकी थी।


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