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पौष पूर्णिमा पर माघी स्नान की पहली डुबकी, आस्‍थावानों ने बाबा दरबार में भी लगाई हाजिरी

पौष पूर्णिमा के अलावा मौनी अमावस्या वसंत पंचमी व माघी पूर्णिमा स्नान भी माघ मास के अंतर्गत ही आएंगे। सामान्यतया हर साल मकर संक्रांति भी माघ में ही पड़ती है लेकिन इस बार यह पौष में पड़ने से इस बार माघ में चार ही स्नान पर्व पड़ रहे हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 11:25 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 11:25 AM (IST)
वैशाख, कार्तिक व माघ माह स्नान दान को समर्पित हैं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। सनातन धर्म में वैशाख, कार्तिक व माघ माह स्नान दान को समर्पित हैं। इनमें माघ का विशेष महत्व है। इसके स्नान-दान विधान पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक चलते हैं। इस बार पौष पूर्णिमा 17 जनवरी को पड़ रही है। तिथि विशेष पर पहली डुबकी के साथ माघ पर्यंत स्नान शुरू हो जाएगा जो माघ पूर्णिमा यानी 16 फरवरी तक चलेगा। वहीं बाबा दरबार में भी अस्‍थावान सोमवार की सुबह से हाजिरी लगा रहे हैं।

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ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार पौष पूर्णिमा के अलावा मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी व माघी पूर्णिमा स्नान भी माघ मास के अंतर्गत ही आएंगे। सामान्यतया हर साल मकर संक्रांति भी माघ में ही पड़ती है, लेकिन इस बार यह पौष में पड़ने से इस बार माघ में चार ही स्नान पर्व पड़ रहे हैं। इस मास में स्नान के साथ ही दान का भी विधान है। शास्त्रों में कहा गया है कि 'माघे मासी महादेवः यः कुर्यात घृत कंबलम। सः भुक्तवा सकलान, भोगान अंते मोक्षम च विंदति॥' अर्थात - माघ मास में जो धर्म पारायण आमजन मानस विशेष कर घृत-कंबल का दान करता है, लोक में सर्व प्रकार के भोगों को भोग कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। माघ पर्यंत प्रयागराज में कल्पवास व स्नान-दान का विशेष महत्व है लेकिन काशी में भी इसके लिए श्रद्धालुओं की खूब जुटान होती है। कुंभ में स्नान के बाद अस्थावानों का पलट प्रवाह भी काशी की ही ओर उमड़ता है।

माघ में खास स्नान पर्व : 

पौष पूर्णिमा - 17 जनवरी

मौनी अमावस्या - 01 फरवरी

वसंत पंचमी - 05 फरवरी

माघी पूर्णिमा - 16 फरवरी

पौष पूर्णिमा पर चंद्र पूजन, व्रत से कष्ट मुक्ति : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय के अनुसार पौष पूर्णिमा पर स्नान-ध्यान-दान के साथ व्रत का भी विधान है। पूर्णिमा तिथि चंद्रमा को समर्पित होने से जिनकी चंद्रमा की महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतरर्दशा विपरीत हो इस तिथि पर व्रत रख कर चंद्रमा की विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान सत्यनारायण की कथा श्रवण से सहस्त्र यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है।


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