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वाराणसी में गोदौलिया-दशाश्वमेध मार्ग पर मिला सवा दो सौ साल पुराना ड्रैनेज सिस्टम, सड़क खोदाई में आया नजर

वाराणसी में गोदौलिया से दशाश्वमेध मार्ग निर्माण के लिए सड़क की खोदाई की गई। पुरानी ईंट का एक बड़ा ड्रैनेज सामने आया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2020 10:12 PM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2020 10:58 PM (IST)
वाराणसी में गोदौलिया-दशाश्वमेध मार्ग पर मिला सवा दो सौ साल पुराना ड्रैनेज सिस्टम, सड़क खोदाई में आया नजर

वाराणसी, जेएनएन। जिस बारिश के पानी को संचित करने के लिए आधुनिक युग में करीब चार सौ करोड़ खर्च करके भी योजना को मुकाम तक नहीं पहुंचाया जा सका, उसे पूर्वजों ने कर दिखाया है। करीब सवा दो सौ साल पूर्व यह अद्भुत वास्तु कला सोमवार को आमजन की नजर में तब आया जब गोदौलिया से दशाश्वमेध मार्ग निर्माण के लिए सड़क की खोदाई की गई। पुरानी ईंट का एक बड़ा ड्रैनेज सामने आया। कुछ इलाके के लोगों ने कही-सुनाई कहानी बताई तो कुछ ने तथ्यों के आधार पर काफी हद तक सटीक जानकारी दी। जिसके बाद कार्यदाई संस्था ने नाले को ढक्कन से ढंक कर काम जारी रखा।

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खास यह कि गुरुबाग स्थित श्रीनगर कालोनी के लोगों  बारिश के पानी को बचाने के लिए सवा दो सौ साल से अधिक पुराने सिस्टम को अब भी संजो कर रखा है। रामकुंड से जुड़ा ड्रेनेज सिस्टम कालोनी के लोगों की जागरूकता व आपसी सहयोग की अद्भुत मिसाल है। यह ड्रेनेज सिस्टम कब और किसने बनवाया, यह कालोनी के लोगों को पता नहीं लेकिन वर्ष 1883 के दस्तावेज के अनुसार रामकुंड के रूप में इसका उल्लेख जरूर मिलता है। जाहिर है यह व्यवस्था इससे भी पुरानी हो सकती है। रामकुंड से आस-पास के लक्ष्मीकुंड, सूरजकुंड आदि भी आपस में जुड़े बताए जाते हैं। इस प्राचीन वास्तु कला के कारण सभी कुंड वर्ष भर पानी से लबालब रहते हैं। इनमें जल की निकासी गंगा की ओर है।

बारिश का पानी डेढ़सी पुलके निकट शाही नाले से होते घोड़ा घाट पर गंगा में गिरता था

ड्रेनेज सिस्टम की व्यवस्था कुछ इस तरह से थी कि इन कुंडों के भरने के बाद बारिश का पानी डेढ़सी पुल (श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के द्वार) के निकट शाही नाले से होते घोड़ा घाट यानी डा. राजेंद्र प्रसाद घाट पर गंगा में गिरता था। वर्ष 1978 की भयंकर बाढ़ के दौरान गंगा के पानी को इस ड्रेन से वापस आते देखा गया था। वर्ष 1986 में गंगा एक्शन प्लान के तहत गंगा की ओर जा रहे नालों को बंद कर पंपिंग स्टेशनों से जोडऩे की योजना चली। इससे इन कुंडों का आपसी संबंध टूट गया लेकिन रामकुंड की ड्रेन लाइन से वर्षा जल निकासी जारी है। करीब 30 साल पहले जद्दू मंडी के निकट भवन निर्माण के लिए नींव खोदाई के दौरान सुरंग दिखी। छानबीन में पता चला कि रामकुंड ड्रेन की एक लाइन लक्सा के निकट शाही नाले से जुड़ती है।

अद्भुत है यह वास्तुकला

-पुरानी ईंटों से बनी पक्की सुरागों के जरिये आपस में जुड़े थे कुंड

-बारिश का पानी कुंडों में अधिक होने पर दूसरे कुंड में बढ़ जाता था।

-अंतिम कुंड का कनेक्शन शाही नाले से होते गंगा में था।


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