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खेती की बातें : वाराणसी के ‘गिरिराज’ ने दिखाई किसानों को तिलहन उत्पादन की नई राह

सरसों की ‘गिरिराज’ नामक किस्म ने रबी में हाेने वाली तिलहन की खेती के मायने बदल दिए हैं। पहले जहां पूर्वांचल के किसान गेहूं के खेत में ही सरसों छींटकर घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति भर उगा लेते थे वहीं अब वे सरसों की एकल खेती में रुचि लेने लगे हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 08 Dec 2021 06:10 AM (IST)Updated: Wed, 08 Dec 2021 06:10 AM (IST)
खेती की बातें : वाराणसी के ‘गिरिराज’ ने दिखाई किसानों को तिलहन उत्पादन की नई राह
सरसों की ‘गिरिराज’ नामक किस्म ने रबी में हाेने वाली तिलहन की खेती के मायने बदल दिए हैं।

वाराणसी, शैलेश अस्थाना। सरसों की ‘गिरिराज’ नामक किस्म ने रबी में हाेने वाली तिलहन की खेती के मायने बदल दिए हैं। पहले जहां पूर्वांचल के किसान गेहूं के खेत में ही सरसों छींटकर घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति भर उगा लेते थे, वहीं अब वे सरसों की एकल खेती में रुचि लेने लगे हैं। भरपूर सरसों उगाकर वह न केवल अपनी आय दो गुनी करने में सफल हैं, वहीं तिलहन उत्पादन में देश को आत्मनिर्भरता की राह दिखा रहे हैं। केवल काशी हिंदू विश्वविद्यालय की बात करें तो वहां के कृषि विज्ञान संस्थान से जुड़कर लगभग 1000 किसान 2500 एकड़ में सरसों उगा रहे हैं और परंपरागत गेहूं की खेती छोड़ उससे तीन गुना अधिक दाम पर सरसों बेंच अधिक लाभ कमा रहे हैं।

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एक हेक्टेयर में 35 से 40 क्विंटल तक उत्पादन

बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान के सरसों विज्ञानी प्रो. कार्तिकेय श्रीवास्तव बताते हैं कि भरतपुर (राजस्थान) स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय द्वारा विकसित सरसों की गिरिराज किस्म ने किसानों की किस्मत के साथ ही तिलहन उत्पादन का आंकड़ा बदल दिया है। यह अकेली किस्म है जो देश की हर जलवायु के अनुकूल है। अच्छे से वैज्ञानिक ढंग से खेती की जाय तो एक हेक्टेयर में 28 से 30 क्विंटल तक उत्पादन किसान ले रहे हैं। सामान्य किसान भी 22 से 25 क्विंटल तक उपज पा रहे हैं। जबकि सरसों की अन्य किस्में 16 से 20 क्विंटल और बेहतर प्रजातियां अच्छे से खेती करने पर 20 से 22 क्विंटल तक ही उत्पादन देती हैं। अन्य किस्मों में जहां तेल की मात्रा 35 से 38 फीसद है, वहीं गिरिराज में तेल की मात्रा 40 से 42 फीसद। यानी अन्य किस्मों की अपेक्षा 25 फीसद अधिक उत्पादन और 14 फीसद अधिक तेल।

गेहूं की अपेक्षा दो गुना लाभ

प्रो. श्रीवास्तव बताते हैं कि किसान जहां एक हेक्टेयर में गेहूं का उत्पादन 42 से 50 क्विंटल लेकर 2000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से अधिकतम एक लाख रुपये की आय प्राप्त करेगा, वहीं सरसों का 30 क्विंटल उत्पादन लेकर 7000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बेचकर 2.10 लाख रुपये यानी दोगुने से अधिक की कमाई कर सकता है। वह बताते हैं कि सरसों ही एक ऐसी उपज है जिसे किसान सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक कीमत पर बेचते हैं। सरकार द्वारा निर्धारित एमएसपी जहां 4200 रुपये है, वहीं यह बाजार में 7000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है।

पूर्वांचल में लगभग 2500 एकड़ में हो सरसों की एकल खेती

प्रो. श्रीवास्तव बताते हैं कि वाराणसी, चंदौली, भदोही, मीरजापुर, सोनभद्र, गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़, देवरिया, बस्ती, संतकबीर नगर, गोरखपुर आदि जनपदों के लगभग 1000 किसान बीएचयू से गिरिराज सरसों के बीज ले गए हैं। प्रतिवर्ष इनकी संख्या और खेती का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। वह बताते हैं कि वाराणसी के ही सेवानिवृत्त पुलिस उपाधीक्षक वीबी सिंह, नकहरा नरायनपुर के रामबली, गांगपुर के आशीष कुमार सिंह, कल्लीपुर के कमलेश सिंह जैसे सैकड़ों किसान सरसों की एकल खेती का लाभ उठा रहे हैं। अन्य किसानों को भी इसे अपनाकर शुद्ध तेल उत्पादित कर मिलावटी तेलों से होने वाली बीमारियों से बचना चाहिए। इसकी खली पशु चारे के रूप में उत्तम आहार मानी जाती है।

अब पछेती किस्म बो सकते हैं किसान

प्रो. श्रीवास्तव ने बताया कि सरसों की अगेती खेती लाभदायक होती है। गिरिराज समेत अन्य अगेती किस्मों की बोआई का उचित काल अक्टूबर से नवंबर के अंत तक है। अब किसान चाहें तो 10 दिसंबर तक एनआरसीएचवी 101, पूसा मस्टर्ड-26, पूसा मस्टर्ड 30 व कानपुर की आशीर्वाद और वरदान जैसी पछेती किस्मों की बोआई कर सकते हैं। हालांकि विज्ञानी अब इस अवधि में सरसों बोने का परामर्श नहीं देते, क्योंकि अब विलंब हो चुका है।


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