काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : काशी की अनुपम मान्यताओं का प्रयाग घाट
वाराणसी में प्रयाग घाट की अलग ही धार्मिक मान्यता है।
वाराणसी : वैसे तो गंगा तट और उसकी मान्यताओं की अनंत गाथाएं मौजूद हैं। मगर प्रयाग की एक मान्यता इलाहाबाद में तो दूसरी मान्यता काशी में गंगा घाट पर है। लोगों का आना जाना और श्रद्धा आस्था का दौर वहीं है जो पहले प्रयाग का है। समानता मगर दोनों में ही गंगा का है।
काशी में इस प्रयाग घाट की मान्यता स्थानीय जानकार बताते हैं कि बंगाल की महारानी ने उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में यहां पर पक्के घाट का निर्माण कराया था। चूंकि पुराणैतिहासिक काल से ही यहां की मान्यता प्रयाग के तीर्थ के तौर पर रही है जिसकी पुष्टि काशी खंड में भी की गई है। लिहाजा वर्तमान समय में भी उसी मान्यता को लोग स्वीकार कर यहां गंगा तट पर प्रयास सरीखा पुण्य कमाने के लिए दान पुण्य और स्नान के लिए आते रहे हैं। धर्म मर्मज्ञ इसके पीछे बेनिया स्थित तालाब से मिसिर पोखरा और गोदौलिया होते हुये वर्तमान बरतसाती नाला गोदावरी का यहां संग मानते हैं। प्रयाग घाट पर ही शूलटंकेश्वर, प्रयागेश्वर, ब्रह्मेश्वर, लक्ष्मी नारायण सरीखे सिद्ध मंदिरों की स्थापना प्राचीन काल से मानी गई है। पुष्कर तीर्थ के अलावा यह दूसरा स्थल है जो ब्रह्मा से भी जुड़ा है। स्थानीय धर्म मर्मज्ञों के अनुसार ब्रह्मा ने दस अश्वमेघ यज्ञ के पश्चात घाट पर ब्रह्मेश्वर शिवलिंग स्थापित किया था। समय समय पर घाट का जीर्णोद्धार किया जाता रहा है मगर वर्ष 1977 में भागलपुर के ललित नारायण खण्डेलवाल ने घाट को जो स्वरूप दिया वह आज तक बरकरार है। घाट की धार्मिक मान्यता अधिक होने की वजह से नित्य आस्थावानों के आने का क्रम बना रहता है। साथ ही गंगा से जुड़े सभी प्रमुख आयोजन इस घाट पर होते रहते हैं।