एक जेल जहां खौफ नहीं बहती है प्रेम की बयार, बंदियों की क्षमता का भरपूर उपयोग की है कोशिश
जेल का नाम सामने आती ही प्रताड़ना और सजा के लिए निर्मत तौर तरीकों की कहानियां ही हर किसी के मन में आती हैं।
सोनभद्र [अब्दुल्लाह]। जेल का नाम सामने आती ही प्रताड़ना और सजा के लिए निर्मत तौर तरीकों की कहानियां ही हर किसी के मन में आती हैं। अंग्रेजों के जमाने का कालापानी और आज के अंडमान निकोबार से कौन अंजान होगा। ये शब्द कान में गूंजते ही सहसा किसी के कदम ठहर जाए मानों ऐसा अंदेशा होने लगता जिससे जिंदगी का अहम पड़ाव जंजीरों में बंधकर ही बीतने वाला है। जेल की चर्चा पर होने पर कमोबेश हर इंसान के भीतर ऐसी ही तस्वीर उभरती है। लेकिन जिला मुख्यालय से मारकुंडी घाटी से उतरने के बाद संकरी सड़कों से कुछ दूर चलने के बाद जिला कारागार का बड़ा सा गेट भयभीत तो करेगा लेकिन, एक के बाद दूसरा गेट खुलते ही अंदर का ²श्य किसी फूलों के बगीचे से कम नहीं लगता। उसके अंदर जाने पर तो हर बंदी अपनी योग्यता के अनुसार काम में तल्लीन मिलता है। यही नहीं, कुछ तो काम के दाद देने वाले भी बैठे रहते हैं।
जी हां, हम बात कर रहे हैं नक्सल प्रभावित सोनभद्र के जिला कारागार में तैनात जेल अधीक्षक मिजाजी लाल यादव की। दो साल से अधिक समय से वह जिला जेल में कार्यरत हैं। इस दौरान उनके जेल में बड़े-बड़े नक्सली से लेकर हत्यारोपित भी जेल में निरुद्ध हुए लेकिन, अपने अलग सोच के कारण उनकी अपने सभी कैदियों से अलग ही लगाव है। अधीक्षक यहां सख्त नहीं नरम मिजाज के लिए जाने जाते हैं। सितंबर 2017 में जिला कारागार में तैनाती के बाद से ही उनका प्रयास ऐसा रंग लाया कि जेल कम पार्क अधिक लगने लगा। जेल की लंबी, ऊंची व मोटी चहारदीवारी के बीच के माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए खाली जमीन पर खेती कराने के साथ ही एक से एक फूलों की प्रजातियों से बरबस ही आमजन का मन मोह लेते हैं। उन्हीं का प्रयास था कि पूर्व में पानी की कमी व सुरक्षा व्यवस्था में खोट की रिपोर्ट देकर कारागार को चालू न करने की सिफारिश को दरकिनार कर इसे आदर्श कारागार का रूप दे दिया।
योग व खेल की चलती है क्लास
जेल में योग व खेल की अलग क्लास चलाई जाती है। बंदियों को अनिवार्य रूप से प्रात: योग की कक्षा में शामिल होना होता है। इसके बाद बंदी पसंदीदा खेल भी खेल सकते हैं। क्रिकेट, वालीबाल व फुटबाल खेलने का पूरा मौका दिया जाता है। बंदियों की सेहत सही रखने के लिए खेती से लेकर फुलवारी तक का कार्य तय समय में कराया जाता है। बंदियों के साथ जेल अधीक्षक खुद भी खेलते हैं या कार्य करते हैं। इस दौरान उन्हें अपराध से तौबा कर घर परिवार के लिए जिंदगी बसर करने की भी नसीहत दी जाती है।
कुरान व रामायण का संगम
जिला कारागार में धार्मिक किताबों की कमी नहीं है। यहां के लाइब्रेरी में धार्मिक ग्रंथों के साथ ही सामाजिक व कविता आदि की किताबें बंदियों को दी जाती है। जब कोई मुस्लिम बंदी कुरान का पाठ करता है तो उसके बैरक में मौजूद अन्य बंदी उसे पुरी निष्ठा के साथ सुनते है। यहीं हाल रामायण का पाठ करने के दौरान है। आपस में बैठकर सभी बंदी कुरान व रामायण का पाठ करते हैं।
हुनर को प्रदर्शित करने का पूरा मौका
जिला कारागार में बंदियों के हुनर को प्रदर्शित करने का पूरा मौका दिया जाता है। पेंटिंग के साथ ही सिलाई, मूर्ति बनाने के लिए जेल अधीक्षक पूरा सामान उपलब्ध कराया जाता हैं। संशाधन मिलने के कारण ही बंदी बालेश्वर ने जेल में भगवान हनुमान की बड़ी प्रतिमा बनाकर वाहवाही लूट ली। इतना ही नहीं वह दर्जन भर से अधिक भगवान व महापुरुषों की प्रतिमा बना चुका है। बंदियों ने जेल के भीतर दीवारों, सड़कों पर रंगोली पेंटिंग कर लोगों को आश्चर्य में डाल दिया है।
बंदियों का मुफ्त में सिलवाते हैं कपड़ा
जेल अधीक्षक ने बंदियों को राहत देने के लिए उनका कपड़ा जिला कारागार में ही सिलवाते हैं। बंदियों के घर के लोग कपड़ा खरीद कर देते हैं और उसकी सिलाई बंदी ही करते हैं। इसके साथ ही बंदियों को रोजगार के भी अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं। कपड़ा सिलाई, मूर्ति बेचने आदि अन्य कार्यों से रोजगार मुहैया कराया जाता है। इससे होने वाली आमदनी बंदियों के कहने पर उसके परिवार वालों को चेक के माध्यम से रुपये दे दिया जाता है।
बोले अधीक्षक
बंदियों के कार्य व्यवहार व उनका व्यक्तित्व परिवर्तन करना ही प्राथमिकता है। जरूरी नहीं है कि यह कार्य सख्ती से ही हो। प्यार व दुलार से बड़े से बड़े कार्य हल हो सकते हैं। - मिजाजी लाल यादव, कारागार अधीक्षक।