ई हौ रजा बनारस: शिव नगरी में रटन राम की, 18 वर्षों से अहर्निश राम-नाम की गूंज
वाराणसी नगर के दक्षिणी छोर पर अवस्थित श्री राघव मंदिर में जो एक कठिन संकल्प से आबद्ध बीते 18 वर्षों से अहर्निश जारी राम-नाम जाप की रटन से गूंज रहा है।
वाराणसी [कुमार अजय]। जैसा खरा-खरा मश्वरा देने वाले देवाधिदेव महादेव अपने आराध्य श्रीराम को कितना टूटकर चाहते हैं, इस रहस्य को शिव की नगरी काशी के वासी भली भांति जानते हैं इसीलिए अपने ईष्ट बाबा विश्वनाथ के साथ ही राजा रामचंद्र को भी अपना 'सगा' ही मानते हैं। फिर वह शिवालयों के संग भव्य रामालयों की कतार हो या अभिवादन में महादेव... संबोधन के साथ 'जयरम्मी' का व्यवहार। शिव पुराण के साथ श्रीराम चरित मानस के पारायण का संस्कार हो अथवा नुक्कड़-नुक्कड़ राम लीलाओं के मंचन की परंपरा का सत्कार। भोले बाबा की नगरी में काशी पुराधिपति आशुतोष अपने आराध्य पुरुषोत्तम राम में लवलीन नजर आते हैं। दोनों ही अपनी एकाकार छवि से सनातन धर्म दर्शन के पंथों के बीच एका का मजबूत सेतु बनाते हैं।
उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि अन्य तीर्थों में जहां तीर्थ के नायक देवताओं का स्तवन ही उस तीर्थ विशेष की पहचान है। ठीक इसके उलट शिव की नगरी काशी में राम-नाम की अखंड रटन ही यहां की धड़कन है, प्राण है। राम-नाम के अखंड जाप के इस अनूठे अनुष्ठान में भागीदारी के पुण्य अर्जन के लिए आपको पहुंचना होगा। नगर के दक्षिणी छोर पर अवस्थित श्री राघव मंदिर में जो एक कठिन संकल्प से आबद्ध बीते 18 वर्षों से अहर्निश जारी राम-नाम जाप की रटन से गूंज रहा है। आठों याम (प्रहर) में आप जब कभी भी इस मार्ग से जाएंगे, मंदिर परिसर को 'सीता राम जय सीता राम' के अमोघ मंत्र से गूंजता पाएंगे। जगदगुरु रामानंदाचार्य संप्रदाय से जुड़े छोटा गूदड़ अखाड़ा द्वारा संचालित इस देवालय के द्वार से प्रवेश करते ही दाहिनी ओर जमाए गए काष्ठ आसन पर राम-नाम जप में एकाग्र संतों के दर्शन और उनके पवित्रोच्चार से आपका तन-मन निर्मल हो जाएगा।
मंदिर के महंत सियाराम दास महाराज बताते हैं कि यह पवित्र संकीर्तन जिन महादेव को समर्पित है वे स्वयं यहां पुष्करेश्वर महादेव के रूप राम-नाम मंत्र का श्रवण कर रहे हैं। महंत जी जानकारी देते कि मंदिर परिसर में स्वाध्याय कर रहे 50 से भी अधिक साधु-संत 18 वर्षों से इस अनुष्ठान को दत्त-चित्त निबाह रहे हैं। भले ही तख्त पर एक आदमी मौजूद रहे, राम नाम जाप का अखंड क्रम एक पल के लिए भी भंग नहीं होता। बाहर से आने वाले श्रद्धालु तीर्थयात्री तथा काशी के धर्म प्राण नागरिक भी इस महायज्ञ में हाजिरी दर्ज करा कर अपना अंशदान समर्पित करते हैं। एक अनुमान के अनुसार बीते 18 वर्षों में एक करोड़ से भी अधिक भक्तजन आयोजन में अपनी सक्रिय सहभागिता दर्ज करा चुके हैं। महंत सियाराम दास इस अखाड़े की 350 वर्षों से भी अधिक पुरातन परंपरा का वैभवशाली इतिहास बताते हैं। मंदिर के अलग-अलग खंडों में स्थापित श्री राम दरबार, लक्ष्मी नारायण व बाबा पुष्करेश्वर महादेव के साथ श्री मनोकामना पूर्ण हनुमान जी के विग्र्रहों का दर्शन भी कराते हैं। बताया जाता है कि मंदिर प्रांगण में नित्य अन्न क्षेत्र भी स्थापित है जिसमें साधु-संतों के अलावा दूर-दूर से काशी आए तीर्थयात्री और भक्त भी प्रसाद पाते हैं।
सब कुछ बाबा के प्रीत्यार्थ : महंत सियाराम दास के अनुसार औघड़दानी भगवान शिव को श्री राम नाम जाप से प्रियकर और कुछ भी नहीं। इसी के दृष्टिगत उनके मोदन के लिए इस अनुष्ठान का संकल्प उठाया गया। बाबा की राजधानी को उनके आराध्य श्री राम के नाम मंत्र से गुंजाया गया। यह आयोजन आध्यात्मिक अनुष्ठान के साथ शैव-वैष्णव एका का एक स्वर्णिम सोपान भी है। जिस कलियुग में श्रीराम का नाम ही एक मात्र आधार उसकी मंजिल भी है मुकाम भी है।