संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 पर दो दिवसीय 'विमर्श' आयोजित
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 पर आयोजित दो दिवसीय विमर्श संगोष्ठी का यह निष्कर्ष रहा।
वाराणसी, जेएनएन। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्तित्व व चरित्र निर्माण करना है। संस्कार के बिना शिक्षा-दीक्षा बेकार है। ऐसे में नई शिक्षा नीति भारतीय संस्कृति पर आधारित होनी चाहिए। ताकि विद्यार्थियों में ज्ञान के अलावा कौशल विकास, मानव मूल्यों की भी समझ विकसित हो सके। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 पर आयोजित दो दिवसीय 'विमर्श' संगोष्ठी का यह निष्कर्ष रहा। शिक्षा शास्त्र विभाग व राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, काशी इकाई के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी के समापन सत्र में शनिवार को बतौर मुख्य अतिथि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पूर्व कुलपति प्रो. केपी पांडेय ने कहा कि नई शिक्षा नीति में तीन बातों पर ध्यान देने की जरूरत है।
पहला शिक्षा में लोगों की आसानी से पहुंच, दूसरा शिक्षा में समानताएं व तीसरा व अंतिम शिक्षा की गुणवत्ता। ऐसे में समान शिक्षा के लिए कामन स्कूल व्यवस्था पर पुन: विचार करने की जरूरत है। विशिष्ट अतिथि भाजपा नेता नीरज सिंह ने कहा कि युवा दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला 'यु' का अर्थ युग। वहीं 'वा' का अर्थ वाहक। अर्थात जो युग का वाहक है। वह युवा है। जैसे अध्यापक। अध्यापक हमेशा चिर युवा होता है। कारण वह युग का वाहक होता है। दूसरे दिन संगोष्ठी में शिक्षा संकाय, बीएचयू के प्रमुख प्रो. आरपी शुक्ल, शिक्षा संकाय, काशी विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो. गोपाल नायक, प्रो. कल्पलता पांडेय, प्रो. सुधाकर मिश्र, सहित अन्य लोगों ने विचार व्यक्त किया। अध्यक्षता प्रति कुलपति प्रो. हेतराम कछवाह, स्वागत डा. दीनानाथ सिंह, संचालन डा. जगदीश सिंह दीक्षित व धन्यवाद ज्ञापन प्रो. प्रेम नारायण सिंह व प्रो. राजनाथ ने संयुक्त रूप से किया।
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