कोरोना महामारी से उबरने में अर्जित प्रतिरोधकता रही बेहद कारगर, बीएचयू में बोले नोबल विजेता Dr. Bruce Butler
मनुष्यों में दो प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता होती है एक जन्मजात और दूसरी अर्जित की जाती है। रोजाना खानपान और अपनी जीवनशैली से जो क्षमता विकसित होती है उसे ही अर्जित एडाप्टिव इम्युनिटी कहा जाता है। जबकि भारत में जन्मजात इम्युनिटी की भी काफी बेहतर भूमिका रही।
वाराणसी, जेएनएन। बीएचयू के जंतु विज्ञान विभाग की स्थापना के शताब्दी समारोह पर बीएचयू के पुरा छात्रों और देश भर के वैज्ञानिकों की जुटान हुई। परिसर में जंतु विज्ञान से लेकर महामना सभागार तक कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस दौरान नोबल विजेता डा. ब्रूस ए बटलर मनुष्यों में दो प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता होती है एक जन्मजात और दूसरी अर्जित की जाती है। रोजाना खानपान और अपनी जीवनशैली से जो क्षमता विकसित होती है उसे ही अर्जित एडाप्टिव इम्युनिटी कहा जाता है। दुनिया भर में कोरोना से निबटने में इस इम्युनिटी का बहुत बड़ा रोल रहा है, जबकि भारत में जन्मजात इम्युनिटी की भी काफी बेहतर भूमिका रही।
कार्यक्रम की शुरूआत में विभाग की विरासत, महामना के नियुक्त किए अध्यापक और यहां के आविष्कारों पर चर्चा हुई। विभागाध्यक्ष प्रो. जेके राय ने मंच पर प्रोजेक्टर के माध्यम से प्रस्तुति देते हुए बताया कि वर्तमान में इस एक विभाग में कुल 128 शोध छात्र हैं। इससे विभाग की उच्च शोध क्षमता का स्वत: ही आकलन हो जाता है। इस दौरान वर्ष 2011 में मेडिसिन-फिजियोलाजी के नोबल विजेता डा. ब्रूस ए बटलर ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने वर्ष 1998 में चूहे पर किए गए शोध पर चर्चा की, जिसे वर्ष 2011 में नोबेल मिला। नोबल जीतने की कहानी को याद करते हुए कहा कि एक सफलता के पीछे एक हजार असफलताएं छिपी होती हैं, जिनकी कोई बात नहीं करता। समय के प्रबंधन ने उन्हें जन्मजात प्रतिरोधकता के तह तक जाने में मदद की और नोबल जैसे प्रतिष्ठित सम्मान तक पहुंचाया। उन्होंने बीएचयू के वैज्ञानिको को संबोधित करते हुए जन्मजात प्रतिरोधकता पर भारतीयों का मिसाल दिया। इसके साथ ही उन्होंने भारत समेत कोरोना पर बेहतर प्रबंधन करने वाले देशों की तारीफ की। संबोधन के बाद बीएचयू के वैज्ञानिकों और छात्रों के कई सवालों का जवाब भी दिए। इस दौरान कार्यक्रम में कुलपति बीएचयू प्रो. राकेश भटनागर समेत बड़ी संख्या में वैज्ञानिक मौजूद रहें।