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बेटा नहीं होने के कारण बेटियों ने दिया मां को कंधा, वाराणसी में टूटी रूढियां तो झुकी मानवता

मां के शव के पास बैठी बड़ी बेटी पूजा शर्मा और छोटी प्रीति शर्मा अपने पिता के आंखों और दुखों को महसूस रहीं थी। उसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि हम मां को कंधा देंगे। रामचंद्र तब भी सोच रहे थे हम तीन हैं चौथा कंधा कौन देगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 12 May 2021 10:07 PM (IST)Updated: Wed, 12 May 2021 10:07 PM (IST)
वाराणसी के कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल परिसर में महिला की मौत के बाद बेटी ने कंधा दिया।

वाराणसी, जेएनएन। समय दोपहर के 12.30 बजे। कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल परिसर में एक महिला का शव जमीन पर रखा हुआ था। सामने माथे पर हाथ धरे एक 50 वर्ष का आदमी बैठा हुआ था। होंठो पर कुछ बुदबुदाहट दिख रहे थे। आखिर हम किस पर रोएं अपनी गरीबी पर या पत्नी के स्वर्गवास पर या फिर अपने पिछले जन्म के कर्म पर। तभी आवाज आई नहीं पापा, आप क्यों रोएंगे हम हैं ना। फिर क्या, वहां टूटती रूढ़ियों का जो नजारा दिखा वह रूह कंपा देने वाला था। जब बेटियों ने मां को कंधा दिया तो वहां मौजूद हर शख्स के आंखों की कोरे गीली हो गईं। किसी से न तो कोई नाता था, न पहचान। बस थी तो मानवता और मनुष्यता।

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जी  हां, यह कहानी गाजीपुर के रामचंद्र शर्मा की है। दरअसल, सात मई को पत्नी अनिता शर्मा की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद सांस लेने में तकलीफ हुई। पैसे के अभाव में वह निजी अस्पताल की चौखट पर नहीं गए। उन्हें लगा कि सरकारी अस्पताल में पत्नी ठीक हो जाएगी। यह सोच मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा में भर्ती करवा दिया। जहां पत्नी को ऑर्थो महिला वार्ड संख्या 7 के बेड संख्या 14 को अलॉट किया गया। जहां डॉक्टर उपलब्ध दवा तो दे देते लेकिन प्रतिदिन बाहर की दवा के लिए पर्ची पकड़ा देते। गरीबी के कारण वह पर्ची रखते जाते। डॉक्टरों से कहते भी की साहब मैं मजदूर हूं। पर यह पीड़ा कहां सुनने वाला कोई। लेकिन उनकी पीड़ा तो नहीं पर ईश्वर ने उनके पत्नी की पीड़ा को सुना और प्राण मुक्त कर दिए। बात यहीं खत्म नहीं हुई अब पत्नी के निधन से स्तब्ध रामचंद्र यह सोच रहे थे कि गांव रहते तो पत्नी को चार कंधे मिल जाते। अब यहां कौन देगा कंधा। मां के शव के पास बैठी बड़ी बेटी पूजा शर्मा और छोटी प्रीति शर्मा अपने पिता के आंखों और दुखों को महसूस रहीं थी। उसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि हम मां को कंधा देंगे। रामचंद्र तब भी सोच रहे थे हम तीन हैं चौथा कंधा कौन देगा।

कोई न हो अधीर, हर अर्थी को कंधा देने को तैयार अमन कबीर

सारे वाकये को देखकर किसी ने समाजसेवी अमन कबीर को फोन करके सूचना दिया। ठीक 14वें मिनट बाद अमन आए और परिवार को ढांढस बंधाया और पूरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार का पूरा खर्चा स्वयं उठाया। रामचंद्र के सोच को हरते हुए अमन ने चौथा कंधा दिया।


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