Dudh nath Singh Death Anniversary : मन को हर समय मथते रहतीं हैं दूधनाथ सिंह की रचनाएं
बलिया की भूमि धार्मिक दृष्टिकोण से तो धनी है ही इस भूमि के साहित्यकारों ने भी अपनी विद्वता के दम पर राष्ट्रीय स्तर पर परचम लहराया है। उन्हीं में से एक हैं महान आलोचक व कथाकार दूधनाथ सिंह। उनकी रचनाएं सदैव हर मन को मथते रहतीं हैं।
बलिया, जेएनएन। Dudhanath Singh Death Anniversary बलिया की भूमि धार्मिक दृष्टिकोण से तो धनी है ही, इस भूमि के साहित्यकारों ने भी अपनी विद्वता के दम पर राष्ट्रीय स्तर पर परचम लहराया है। उन्हीं में से एक हैं महान आलोचक व कथाकार दूधनाथ सिंह। बलिया के सोबंथा गांव निवासी स्व. दूधनाथ सिंह ने अपनी कहानियों के जरिए हर आम-ओ-खास के दिलों पर राज किया। उनकी रचनाएं सदैव हर मन को मथते रहतीं हैं।
अपनी रचनाओं से साठ के दशक में भारतीय परिवारों की सामाजिक, आर्थिक, नैतिक और मानसिक हालात को मजबूती से उभारा। सभी क्षेत्रों में पैदा हुई समस्याओं को चुनौती दी। दूधनाथ सिंह हिंदी के उन खास लेखकों में से रहे, जिन्होंने कहानी, कविता, नाटक, आलोचना और उपन्यास सहित लगभग सभी विधाओं में सारगर्भित व प्रभावपूर्ण रचनाएं की। उनके अंदर निहित संवेदना की झलक उनकी कृतियों में स्पष्ट परिलक्षित होती है। आज यानि 12 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि है। सभी साहित्यकारों के मन को आज भी उनकी रचनाएं मथते रहती हैं।
बचपन से ही प्रतिभाशाली रहे
हिंदी साहित्य के मशहूर कहानीकार और आलोचक दूधनाथ सिंह 17 अक्टूबर -- 1936 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सोबंथा गांव में पैदा हुए थे। दूधनाथ सिंह का जन्म बहुत साधारण परिवार में हुआ था। इनके पिता देवकीनंदन सिंह सामान्य किसान थे इसलिए परिवार का भरण-पोषण खेती के जरिए ही होता था। वह बचपन से ही प्रतिभाशाली थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा बगल के गांव नरहीं में मौजूद एक प्राथमिक विद्यालय में हुई थी।
पढ़ाई में अधिक रूचि होने के कारण वह घर से दूर भी पढ़ाई करने चले जाते थे। इन्होंने अपनी हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा चितबड़ागांव के मर्चेंट इंटर कालेज से हासिल की। इसके अलावा बलिया शहर के सतीशचन्द्र कालेज से इन्होंने स्नातक की उपाधि ली। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इन्होंने परास्नातक की डिग्री ली और कोलकाता विश्वविद्यालय में अध्यापक बन गए। कुछ दिनों बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर सुशोभित हुए।
अध्यापन के कार्य के साथ-साथ कई प्रमुख कृतियों की रचना की। उनका निधन 12 जनवरी 2018 को लंबी बीमारी के बाद हार्ट अटैक से हुआ था। वह प्रोस्टेट कैंसर से भी पीडि़त थे। उनकी आखिरी इच्छा थी कि आंखें मेडिकल कॉलेज को दान की जाएं, जिसे उनके परिजनों ने पूरा किया। आज भी उनकी आंखें किसी की ङ्क्षजदगी को रोशन कर रहीं हैं।
उनके नाटक पर बनी थी फिल्म
उनका चर्चित नाटक यम-गाथा है। इस पर वर्ष 2007 में समर नामक फिल्म भी बनी थी। इसमें मशहूर रंगमंच अभिनेता सुखान बरार ने इंद्र की भूमिका निभाई थी। यह नाटक एक मिथक पर आधारित है। इसका कथानक व्यापक, सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों, सामंतवाद नक्सलवाद, भेदभाव पर आधारित थी। साहित्यकार दूधनाथ ङ्क्षसह को उनकी उल्लखेनीय रचनाओं के लिए भारतेंदु सम्मान, शरद जोशी स्मृति सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान सहित अन्य पुरस्कारों से नवाजा गया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें भारत-भारती व मध्य प्रदेश सरकार ने इन्हें शिखर सम्मान से सम्मानित किया। वे जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष भी रहे। अपनी आखिरी कलाम उपन्यास के लिए वे सदैव याद किए जाएंगे।
बलिया से रहता था लगाव
साहित्यकार डॉ. नवचंद्र तिवारी ने बताया कि बलिया से उनका गहरा लगाव था। उन्होंने अपने जीवन के उत्तरार्ध में लेखन को नई धार दी। वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी ज्वलंत विचारों के लिए जाने जाते थे। उन्होंने साहित्य जगत में अपनी एक अलग छाप छोड़ी। धन्य है यह बलिया की भूमि जो समय-समय पर ऐसे विद्वान साहित्यकारों को अपनी कोख से जन्म देते रहती है।