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डोमराजा परिवार : तारक मंत्र व मोक्षद्वार का पहरेदार, सदियों से अखंड धूनी अगोरे हुए हैं

कभी उनके पुरखे कालू डोम ने सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र को इसी काशी के हाट में खरीद कर डोमराजा की पदवी पाई थी।

By Vandana SinghEdited By: Published: Fri, 07 Jun 2019 03:41 PM (IST)Updated: Sat, 08 Jun 2019 10:31 AM (IST)
डोमराजा परिवार : तारक मंत्र व मोक्षद्वार का पहरेदार, सदियों से अखंड धूनी अगोरे हुए हैं

वाराणसी, जेएनएन। कभी उनके पुरखे कालू डोम ने सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र को इसी काशी के हाट में खरीद कर डोमराजा की पदवी पाई थी। इसी एक आन के भरोसे समय के थपेड़ों से लगातार जूझने के बाद अब तक टूटे नहीं हैं। मीरघाट की प्रसिद्ध शेर वाली कोठी के रहनवार जिनकी पहचान काशिराज के समानांतर महिमामंडित डोमराजा परिवार के नाम से है।

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समय, काल और परिस्थितियों के बवंडर में डोम राजाओं के ठाट-बाट आज धूल धूसरित हैं। कभी मोटरों व शाही बग्घियों पर सवारी निकालने वाले चौधरानों के वंशज अब दोपहिया मेंटेन करने तक की स्थिति में नहीं हैं। मृत्यु कर के रूप में हस्तगत होने वाली मोटी आमदनी कुनबे की लगातार वंशवृद्धि से टुकड़ों-टुकड़ों में बंट गई है।

डोमराजा कैलाश चौधरी के निधन के बाद से राजा की उपाधि भी एक तरह से ताक पर ही रखी है, मगर उस ठसक के कसक में बदल जाने के बाद भी कुटुंब के वारिसानों के चेहरे पर शिकन की एक रेख तक नहीं है। मिजाज वैसा ही काशिकाना, अंदाज भी वही चौधराना। तमाम दुश्वारियों के बाद भी वे भूले नहीं हैं कि सदियों पहले काशी के महाश्मशान में स्वत: प्रकट मोक्षाग्नि के वे वरासती पहरेदार हैं। स्वयं भगवान शिव द्वारा मोक्षमंत्र के रूप में प्रदत्त तारक मंत्र के असल सूत्रधार हैं। यही वह वजह है जिसके चलते आभा मंडल के सामयिक क्षरण के बाद भी वे पूरे गौरवबोध के साथ रीतियों के बिखरते धागों को जोड़े हुए हैं। एक पौराणिक थाती की तरह महाश्मशान मणिकर्णिका की गद्दी पर अहर्निश प्रज्जवलित अखंड धूनी को अगोरे हुए हैं।

 जहां बोलती थी तूती वहां अब लकड़ी के ठेकेदारों का राज

डोम राजाओं के पुराने रुआब-रुतबे की चर्चा मात्र से अंतिम डोमराजस दिवंगत कैलाश चौधरी के एकमात्र बचे वारिस जगदीश चौधरी थोड़े असहज होकर पुरानी यादों में खो जाते हैं। बताते हैं 'स्वर्गीय पिता के जमाने तक ठाट और रुआब दोनों बरकरार था। उनके निधन के बाद से सब कुछ मुट्ठी की रेत की तरह कब और कैसे फिसलता चला गया कुछ पता ही नहीं चला। परिवार बढऩे के साथ पालियों के बंटवारे की फेहरिस्त लंबी होती चली गई। रही-सही कसर प्रशासन ने अग्निदान शुल्क के नियमन से पूरी कर दी। जिस घाट पर कभी डोमराजाओं की समानांतर सत्ता थी, उसी घाट पर अब लकड़ी के दबंग ठेकेदारों का शासन चलता है।

नहीं भूला वह गौरवबोध

इस त्रासद संकट के बावजूद डोम परिवार के प्रतिनिधियों का यह गौरवबोध नहीं धूमिल हुआ है कि वे त्रैलोक्य से भी ज्यादा न्यारी काशी नगरी की एक पौराणिक धरोहर के रखवाले हैं। शायद यही वह वजह है जिसके चलते वे अंतिम संस्कार की वैदिक रीतियों के साथ ही डोम वंश की परिपाटी से जुड़े संस्कारों को लेकर उतने ही आग्रही हैं जितना आग्रह उस युग में महाश्मशान के रखवाले हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी तारामती (शैव्या) से कर वसूलते समय दिखाया था।

 महादेव की कृपा से मिला मृत्यु कर का अधिकार 

कहां से आया यह पत्थरों सा कठोर दायित्वबोध इनके संस्कारों में। बताते हैं चौधरी जगदीश 'डोमराज कुटुंब से जुड़े सारे सदस्य काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ के परम भक्त हैं। इसके पीछे कारक है उनका विश्वास व आस्था, जो जुड़ी है उस कथा से जिसमें कहा गया है कि मृत्यु का कर वसूलने का अधिकार उनको स्वयं भगवान शिव की कृपा से प्राप्त हुआ है।

 भगवान शिव के कोप से मिली चांडाल योनि

कथानक यह है कि डोमराज परिवार के आदि पूर्वज जन्मना ब्राह्मण थे। भगवान शिव के कोप से ही उन्हें चांडाल कर्म को बाध्य होना पड़ा। अनुनय-विनय के बाद भी औघड़दानी उन्हें इस अधम योनि से मुक्त देने को राजी नहीं हुए, मगर कृपा कर उनकी आजीविका की व्यवस्था जरूर कर दी। महादेव ने स्वयं अपने श्रीमुख से कहा 'मेरे तारक मंत्र से मोक्ष के अधिकारी बने किसी भी जीव की आत्मा मुझमें तभी एकाकार होगी जब उसकी नश्वर देह की मुखाग्नि के लिए अग्नि डोम परिवार के किसी सदस्य द्वारा प्रदान की जाए। इस निमित्त उन्होंने मोक्ष तीर्थ मणिकर्णिका पर एक मंडप में अहर्निश जलने वाली अखंड धूनी की स्थापना भी स्वयं अपने हाथों से की। बड़ी ही अगराहट के साथ कहते हैं चौधरी 'डोमराज परिवार के हर शिशु को बोध प्राप्त होने तक यह कथा घुट्टी की तरह पिला दी जाती है। आगे चलकर यही गौरव गाथा संकल्प शक्ति बन जाती है।

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