मन में न पाले कोई वहम, इलाज है सुगम, आज से हो गई शुरुआत
वर्तमान में बदलती लाइफ स्टाइल, भागती-दौड़ती जिंदगी में किसी के पास खुद के लिए समय नहंी है। ऐसे में लोग अवसाद का शिकार हो जाते हैं जिसे अनदेखा न करें।
वाराणसी (जेएनएन) : वर्तमान परिवेश में बदलती लाइफ स्टाइल, भागती-दौड़ती जिंदगी में किसी के पास किसी के लिए भी समय नहीं है। यहा तक कि व्यक्ति के पास कभी-कभी तो खुद के लिए भी समय नहीं होता, जिसका परिणाम होता है कि वे मानसिक बीमारी या अवसाद का शिकार हो जाता है। अफसोस की बात यह कि कई लोग जानने के बाद भी चिकित्सकों के यहां जाने में संकोच करते हैं। ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। थोड़ी सी सावधानी से बड़ी बीमारी से बचा जा सकता है।
तेजी से फैल रही इस बीमारी के प्रति जनजागरूकता पैदा करने के लिए ही हर साल 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसके साथ ही यह दिन जिस सप्ताह में पड़ता है, वह सप्ताह यानी आठ अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह के रूप में बनाने का स्वास्थ्य विभाग ने निर्णय लिया है। युवा वर्ग एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में इस तरह की बीमारियों की गिरफ्त में तेजी से आ रहे हैं। यहां चलेगा जागरूकता अभियान
मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह के तहत पहले दिन आठ अक्टूबर को मंडलीय अस्पताल, नौ अक्टूबर को चिरईगाव पीएससी, 10 अक्टूबर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में स्वास्थ्य परीक्षण होगा। 11 अक्टूबर को सेवापुरी, 12 अक्टूबर को मंडलीय अस्पताल में ओपीडी के साथ स्कूलों में शिविर लगेगा। 13 अक्टूबर को संगोष्ठी व 14 अक्टूबर को सप्ताह समापन पर विविध कार्यक्रम होंगे।
मानसिक बीमारी के लक्षण
उदास या सुस्त रहना, बेवजह शक करना, चिंता, घबराहट, उलझन, बेचैनी, अकारण भय लगना या बार-बार बुरा होने का विचार आना, झुंझलाहट, किसी काम में मन न लगना, नींद न आना, याददाश्त में कमी, आत्महत्या का प्रयास करना, बेहोशी या मिर्गी के दौरे पड़ना, सीने में दर्द, नशे की लत होना, सिर दर्द या सिर में भारीपन बना रहना, भूत-प्रेत की बातें करना, ऐसी आवाजें सुनना जो किसी और को न सुनाई देती हों आदि। इनमें से किसी भी लक्षण के होने पर तुंरत ही बिना किसी संकोच के मनोचिकित्सक से संपर्क कर उचित इलाज कराएं।
मानसिक बीमारी के चक्कर में कई बार लोग नशे के शिकार हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि नशा करने से उनकी परेशानिया खत्म हो जाएंगी या फिर वह उन्हें आसानी से मात दे सकेंगे, जबकि ऐसा नहीं है। नशा केवल शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से तबाह करता है। ऐसी स्थिति में कतई किसी झाड़-फूंक के चक्कर में न पड़ें। मनोचिकित्सक दिखाना ही उचित इलाज है।
-डा. वीबी सिंह, सीएमओ