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वाराणसी में सीडर मशीन से गेंहू की सीधी बोआई, कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को दिए सुझाव

धान की कटाई विलंब से होने पर गेहूं की बोआई में भी विलंब हो जाता हैं।जिसका गेहूं के उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता हैंक्योंकि पलेवा करके खेत की तैयारी करने में 10 से 12 दिन का समय लगता हैं।जिससे गेहूं की बोआई पिछड़ जाती हैं

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 07 Dec 2021 04:49 PM (IST)Updated: Tue, 07 Dec 2021 07:30 PM (IST)
वाराणसी में सीडर मशीन से गेंहू की सीधी बोआई, कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को दिए सुझाव
सुपर सीडर मशीन कम समय में बोआई करने के लिए एक बेहतरीन विकल्प के रूप में आया हैं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। धान की कटाई विलंब से होने पर गेहूं की बोआई में भी विलंब हो जाता हैं। जिसका गेहूं के उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता हैं, क्योंकि पलेवा करके खेत की तैयारी करने में 10 से 12 दिन का समय लगता हैं। जिससे गेहूं की बोआई पिछड़ जाती हैं। धान-गेहूं के फसल चक्र अपनाने वाले कृषको के लिए सुपर सीडर मशीन कम समय में बोआई करने के लिए एक बेहतरीन विकल्प के रूप में आया हैं।

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आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र (कल्लीपुर) के वैज्ञानिकों द्वारा चयनित ग्राम कल्लीपुर के प्रगतिशील कृषक कमलेश सिंह के 1.5 हेक्टेयर प्रक्षेत्र पर सुपर सीडर मशीन से गेहूं की बोआई कराया गया। सीडर से बोआई होने पर कम समय में खाद और बीज की संतुलित मात्रा 40 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर का लागत आया। इसके साथ ही पीछे लगे बेलन द्वारा उस पर पाटा लग जाने से खेत समतल भी हो गया।

कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्ष डा.नरेंद्र रघुवंशी ने बताया कि इस मशीन की सहायता से किसान धान की कटाई के उपरांत खेत में उपलब्ध नमी पर ही गेहूं की सीधी बोआई कर सकते हैं, क्यों कि यह मशीन बोआई एवं जुताई एक साथ करती हैं।

कृषि वैज्ञानिक डा.नरेंद्र प्रताप ने बताया कि सुपर सीडर मशीन खेत की जुताई एवं मिट्टी को भरभरा बनाने के साथ-साथ लाइन से कुंडों में खाद एवं गेहूं के बीज की बोआई करता हैं। इस मशीन द्वारा सवा घंटे में एक बीघे खेत की बोआई की जा सकती हैं।यह मशीन कल्टीवेटर रोटावेटर एवं सीड कम फर्टिड्रिल का कार्य करता हैं।1600 आरपीएम पर इस मशीन की कार्य क्षमता बहुत ही अच्छी होती हैं।इस मशीन द्वारा गेहूं के बीज की बोआई जमीन में 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई तक होता हैं, जिससे बाद में फसलों के गिरने की समस्या कम हो किसानों के उत्पादन लागत में कमी आती हैं।जब कि छीटकवां विधि और रोटावेटर से बोआई करने पर यह समस्या ज्यादा अधिक होने के साथ ही खर्च अधिक होता हैं। इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के डा.समीर कुमार व डा.नवीन कुमार सिंह समेत प्रगतिशील किसान उपस्थित रहे।


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