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Hanuman की आन पर भक्त टेकराम हुए बलिदान, वाराणसी में मौनी बाबा की प्राचीन राम लीला

वाराणसी में अंग्रेज कलेक्टर डीवाक्सेला रेंट की चुनौती को स्वीकार करते हुए लीला में पवनपुत्र हनुमान की भूमिका निभाने वाले पं. टेकराम भट्ट ने एक छलांग में वरूणा नदी लांघकर विधर्मियों का दर्प भंग किया था। इस वर्ष संक्षिप्त झांकियों के साथ आयोजित प्राचीन लीला का यह 523वां संस्करण है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 07:50 AM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2020 09:52 AM (IST)
वाराणसी में 523 से चली आ रही है घूमंतू मौनी बाबा की प्राचीन राम लीला।

वाराणसी [कुमार अजय] । जी हां ! यही है संत प्रवर मौनी बाबा द्वारा शुरु की गई सैकड़ों साल पुरानी वह लीला जिसमें तत्कालीन ( सन 1906 ) के अंग्रेज कलेक्टर डीवाक्सेला रेंट की चुनौती को स्वीकार करते हुए लीला में पवनपुत्र हनुमान की भूमिका निभाने वाले पं. टेकराम भट्ट ने एक छलांग में वरूणा नदी लांघकर विधर्मियों का दर्प भंग किया था। लीला को एक दैविय आभा मंडल दिया और सनातन समाज के मन को श्रद्धा आस्था के भावों से भर दिया था। हालांकि इस चमत्कार के तुरंत बाद पं. टेकराम श्रीराम सायुज्य को प्राप्त हुए। किंतु लीला समिति के जतनबर स्थित भवन में श्रीराम-लखन, भरत-शत्रुध्न व माता सीता के रत्न जडि़त कीरीटों के साथ भक्त टेकराम द्वारा धारण किया जाने वाला मुखौटा आज भी पूजित है।

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पांच सौ साल से अधिक प्राचीन है लीला का इतिहास वृत्त

मौनी बाबा सिद्धपीठ के पीठाधिपति तथा इन्ही भक्त टेकराम भट्ट की पांचवीं पीढ़ी के प्रतिनिधि श्रीराम शर्मा  व उनके पुत्र तथा लीला के समिति के प्रबंधक पं. विक्रम भारद्वाज के दावों के अनुसार कोरोना काल के चलते इस वर्ष संक्षिप्त झांकियों के साथ आयोजित प्राचीन लीला का यह 523वां संस्करण है। उनकी मानें तो लीला का मूल उद्गम केंद्र चौकाघाट का बड़ईया सरोवर व बाग है। बाद में सन 1844 में रालीला प्रेमी स्व. पं. मथुरा प्रसाद मिश्र द्वारा श्रीराम प्रभू की सेवा में भेंट की गई। दो विशाल हवेलियों की प्राप्ति व मथुरा जी के निवेदन के ²ष्टिगत मुकुट पूजन सहित मानस के कुछ प्रारंभिक प्रसंगों की लीला के साथ समिति का आयोजन जतनबर में मौनी बाबा शिवालय के नाम से मशहूर भवनों और आसपास के क्षेत्रों में होने लगा।

घूमंतू है मौनी बाबा की प्राचीन लीला

महंत पं. श्रीराम शर्मा और लीला के प्रबंधक विक्रम भारद्वाज के अनुसार संस्थापकों की सोच के मुताबिक संत 108 मौनी बाबा की रामलीला घूमंतू है और जतनबर से लेकर चौकाघाट तक की बड़ी आबादी को श्री राम कथा की गंगा में डुबकियां लगवाती है। पदाधिकारीगण बताते हैं कि क्रमानुसार जतनबर स्थित भवन में मुकुट पूजन के साथ राज्याभिषेक की तैयारी आदि प्रसंगों की लीला होती है। इसके पश्चात वन गमन ( श्री महामत्युंजय मंदिर ) भरत मनावन व जनक सभा प्रसंगों की लीला ( बागेश्वरी देवी मंदिर जैतपुरा ), जयंत नेत्र भंग सीता हरण प्रसंगों की लीला (नाटीइमली), शबरी मंगल व नवधा भक्ति प्रसंग का मंचन ( नरङ्क्षसह टीला ) आदि से गुजरती हुई मूल उद्गम बड़ईया तालाब पहुंचती है। यहां सुग्रीव मिलन बाली वध के प्रसंग अभिनीत होते हैं। चौकाघाट स्थित रामेश्वर मंदिर में शेतुबंध रामेश्वर की स्थापना की लीला दर्शनीय है। लक्ष्मण शक्ति की लीला भी वहीं पर होती है। चौकाघाट के मैदान में रावण वध के पश्चात नाटीइमली मैदान के मंच पर भरत मिलाप की झांकी सजती है। राज्याभिषेक की लीला वापस जतनबर भवन संपन्न होने के बाद वानर विदाई के भावपूर्ण मंचन के साथ अगले साल तक के लिए लीला को विश्राम दिया जाता है।

इस वर्ष सांकेतिक पाठ के पश्चात 20 अक्टूबर से झांकियों का भी दर्शन

बताते हैं भारद्वाज जी मुकुट पूजा के साथ जतनबर में सांकेतिक पाठ के उपरांत इस वर्ष 20 अक्टूबर से लीला चौकाघाट चली जाएगी। यहां राम भक्त श्रीराम पंचायतन की झांकी का भी दर्शन कर सकेंगे। भरत मिलाप की झांकी का दर्शन भी इस बार चौकाघाट में ही होगा।

कई बार कर चुके हैं काशी का प्रतिनिधित्व

पंडित जी के अनुसार पारंपरिक वार्षिक आयोजन के अलावा भट्ट परिवार की यह विरासती लीला प्रदेश के सांस्कतिक विभाग द्वारा आयोजित कई अंतरराज्जीय लीला समारोहों में काशी का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अलावा आगरा, चित्रकूट, अयोध्या व तुलसी बाबा की जन्मस्थली राजापुर (बांदा) तक अपनी प्रस्तुतियों से यह लीला काशी की किर्ति पताखा फहरा चुकी है।


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