कोरोना समेत संक्रामक रोगों को शह दे रहा सघन फ्लैट सिस्टम, कई संक्रामक को जन्म दे रहा है नया ट्रेंड
आइएमएस-बीएचयू में टीबी एवं श्वसन रोग विशेषज्ञ प्रो. जीएन श्रीवास्तव का कहना है कि बिना मानक के बने डिब्बाबंद घरों की संस्कृति ने कोरोना ही नहीं बल्कि ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरियल निमोनिया जैसे संक्रमण के साथ ही श्वांस की समस्या और विटामिन-डी की कमी वाले रोगों को भी जन्म दे दिया है।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। वर्तमान में बन रहे वेंटिलेशन रहित फ्लैट सिस्टम तमाम संक्रामक रोगों को शह दे रहा है। हवा से हवा में कोरोना फैल रहा है, इसके पीछे इन दमघोंटू फ्लैट्स की भी खास भूमिका मानी जा रही है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने भी बीते दिनों इससे होने वाले खतरों से आगाह किया है। इसमें दो घरों (फ्लैट) के बीच रोशनदान, खिड़की और बालकनी में दो गज की भी दूरी न होने को घातक करार दिया है। दरअसल, हम तीन दशक पहले की कालोनियों के उन हवादार घरों को आदर्श मान सकते हैं जहां दो घरों की खिड़कियों, दरवाजों, रोशनदान और बालकनी के बीच दो से पांच मीटर तक की दूरी होती थी।
आइएमएस-बीएचयू में टीबी एवं श्वसन रोग विशेषज्ञ प्रो. जीएन श्रीवास्तव का कहना है कि शहर में बिना मानक के बने डिब्बाबंद घरों की संस्कृति ने कोरोना ही नहीं, बल्कि ट्यूबरक्लोसिस, बैक्टीरियल निमोनिया जैसे संक्रमण के साथ ही श्वांस की समस्या और विटामिन-डी की कमी वाले रोगों को भी जन्म दे दिया है। वास्तव में कोई बीमार व्यक्ति जब अपने घर में छींकता या खांसता है तो इंफेक्शन एयरोसाल के रूप में घर के आंतरिक वातावरण में ही घूमता रह जाता है। क्रास वेंटिलेशन व खिड़कियां न होने से इसे बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं मिलता। वहीं अब दो घरों की खिड़कियों के बीच दो गज की भी दूरी नहीं बची है। इससे यह बंद मकान में ही अन्य सदस्यों को संक्रमित करता जाता है। इसका आकलन हालिया कोरोना संक्रमण के दौर से भी किया जा सकता है जब परिवार में एक सदस्य के संक्रमित होने पर धीरे-धीरे सभी इसकी चपेट में आए।
घर का वातावरण बढ़ाता है इम्युनिटी
फ्रांस में इंटीरियर डेकोरेशन के क्षेत्र में कार्य कर चुकीं आर्किटेक्ट इंजीनियर प्रियंका गौर ने बताया कि आपके घर के वातावरण से काफी हद तक आपकी इम्युनिटी का लेवल तय होता है। आज लोगों को बरामदे, लान, आंगन और अहाते के लिए जगह छोड़ना जमीन की बर्बादी लगती है जबकि आवासीय भवन के मानक अनुसार एक खुशनुमा घर के लिए प्राकृतिक वेंटीलेशन का होना बेहद जरूरी है। भारतीय वास्तु शास्त्र भी बिना इनके एक घर की परिकल्पना नहीं करता। प्रियंका गौर बताती हैं कि घर में प्राकृतिक वेंटिलेशन जरूरी है, जो घर की ऊष्मा को नियंत्रित करने के साथ ही नुकसानदेह तत्वों को बाहर धकेलती है। इसे ही हम शास्त्रों में नकारात्मक ऊर्जा कहते हैं। एेसे में हवा का संचार या बहाव बेहद जरूरी है। चूंकि वायरस या बैक्टीरिया हवा में काफी देर तक घुले रह सकते हैं, इस दशा में क्रॉस वेंटिलेशन हमें इस खतरे से बचा सकता है।
उत्तर की दिशा में खिड़की स्वास्थ्य के लिए बेहतर
प्रियंका गौर ने बताया कि किसी क्षेत्र की जलवायु के आधार पर भी वेंटिलेशन के नियम-कायदे अलग-अलग होते हैं। सूर्य का प्रकाश घर में आए इसके लिए पूरब, पश्चिम और उत्तर में दरवाजा बनाएं। वहीं शुद्ध हवा आने के लिए घर में दो खिड़कियां हों, जिनके आकार 75 से 90 सेंटीमीटर तक हो सकते हैं। इन खिड़कियों के लिए पूरब, उत्तर-पूर्व और उत्तर की दिशा ही चुननी चाहिए। इन सबमें उत्तर की दिशा से आने वाली प्रकाश को स्वास्थ्य के लिए बेहतर मानी जाती है, इसलिए खिड़की इसी दिशा में रखनी चाहिए।