दिल्ली-मुंबई के स्कूली छात्र खेलेंगे बनारस का गुल्ली-डंडा, प्रधानमंत्री के आह्वान पर काशी के कारीगर जुटे तैयारी में
प्रधानमंत्री ने पारंपरिक खेल-खिलौनों को बढ़ावा देने का आह्वïान क्या किया कभी खेलों का राजा कहे जाने वाले गुल्ली-डंडा के दिन लौटा आया। स्कूलों में आपूर्ति के लिए 650 सेट गुल्ली-डंडे का आर्डर दिया है। बनारस में लगभग 2500 कारीगर लकड़ी खिलौना उत्पादन से जुड़े हैैं।
वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। प्रधानमंत्री ने पारंपरिक खेल-खिलौनों को बढ़ावा देने का आह्वïान क्या किया कभी 'खेलों का राजा कहे जाने वाले गुल्ली-डंडा के दिन लौटा दिये यानी मुंशी प्रेमचंद के शब्दों में 'हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा हो गया। किसी को खेलते देख लिया तो बच्चे ही नहीं, बड़ों को भी खेलने या ठिठक कर देख लेने को विवश कर जाता है। अच्छी खबर यह है कि अब परंपराओं के शहर बनारस से यहां की शिल्प विरासत को सहेजे यह दिल्ली-मुंबई जाएगा। विदेशी खेलों की चकाचौंध में गुम गुल्ली-डंडा इन दोनों महानगरों के स्कूलों में खेला जाएगा। इसकी आपूर्ति का आर्डर लकड़ी के खिलौनों के लिए मशहूर शहर बनारस को मिला है। मुंबई की कंपनी होराइजन एक्सपोर्ट एंड इंपोर्ट ने नई दिल्ली के निजी स्कूलों में आपूर्ति के लिए 650 सेट गुल्ली-डंडे का आर्डर दिया है। बनारस के खिलौना कारीगरों ने इसे दिन फिरने के रूप में लिया है।
आर्डर पाने वाले बिहारीलाल अग्रवाल के कारखाने में पूरे जोश के साथ कोरैया व यूकेलिप्टस की लकडिय़ों पर रंदा मारा जा रहा है। उन्हें गुल्ली-डंडे का रूप देते हुए एक से एक डिजाइनों को उभारा जा रहा है तो लाल-पीले और हरे-नीले रंगों से निखारा जा रहा है। इसमें परिवारीजन के साथ अन्य कारीगर भी दिन-रात जुुटे हैैं। अब तक उनके पास दुकानों से हाथी-घोड़ा, देव आकृति व खिलौनों के आर्डर हुआ करते थे, लेकिन गुल्ली-डंडा का आर्डर उनकी उम्मीदों से जुड़ा है।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन के दौरान अपने मन की बात में अन्य शहरों के साथ ही काशी के लकड़ी के खिलौनों की सराहना की थी। डिजिटल प्लेटफार्म पर इंडिया टॉय फेयर का 27 फरवरी को ऑनलाइन शुभारंभ करते हुए पारंपरिक खेल व लकड़ी के खिलौनों को प्रोत्साहित करने का आह्वïान किया था। लोलार्क कुंड के खिलौना शिल्पी बिहारी लाल अग्रवाल बताते हैं कि मोदीजी के आह्वान के बाद मुंबई की कंपनी ने संपर्क किया। ऑनलाइन ही गुल्ली-डंडे का सैंपल भी देख लिया, इसे पसंद किया और आर्डर भी दे दिया। बताया कि मुंबई-दिल्ली के स्कूलों में गुल्ली-डंडे की आपूर्ति की जाएगी। भविष्य में मांग के अनुसार और भी आर्डर दिया जाएगा। बिहारी लाल बताते हैं कि खिलौना बनाने, बिक्री व निर्यात में उनका पूरा परिवार जुटा है। इसके अलावा 50 से अधिक दूसरे शिल्पी परिवार भी जुड़े हैं। बनारस में लगभग 2500 कारीगर लकड़ी खिलौना उत्पादन से जुड़े हैैं। इसका करीब 30 करोड़ का सालाना कारोबार है तो छह करोड़ से अधिक का माल निर्यात हो जाता है।