ददरी का गर्दभ मेला, जहां तय होती शादियां और पंचायत में सुलझाए जाते हैं विवाद
गंगा-सरयू-तमसा के संगम भृगु -दर्दर क्षेत्र में लगने वाले ददरी मेले के पशु मेले में लगने वाले गदहों के मेले में देश की सबसे बड़ी सामाजिक पंचायत सजती है।
बलिया [सुधीर तिवारी] । गंगा-सरयू-तमसा के संगम भृगु -दर्दर क्षेत्र में लगने वाले ददरी मेले के पशु मेले में लगने वाले गदहों के मेले में देश की सबसे बड़ी सामाजिक पंचायत सजती है। इस पंचायत के फैसले की अपील कभी किसी ने नहीं किया है। पशु मेले के नंदी ग्राम में कार्तिक पूर्णिमा से लगने वाले गर्दभ मेले में उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम एवं नेपाल के कपड़े धोने वाली रजक बिरादरी के लोग आते है। इस मेले में लगने वाली पंचायत में जमीन, जायदाद के आपसी बंटवारे, शादी, तलाक से लेकर ग्राहक गिरहत के बंटवारे तक के विवादों का निपटारा इस बिरादरी के पंचों द्वारा किया जाता रहा है।
मेले में बेटे-बेटियों की शादियां तय भी की जाती है। पहले अधिकांश सुदूर इलाके में तय रिश्तों की शादियां इसी मेले में तय हो भी जाती थी। मेले में विधिवत माइक से उद्घोष कर पंचायत लगने की घोषणा की जाती है। इनके पंचों द्वारा फैसला करने का तरीका त्वरित न्याय की बड़ी मिशाल है। बहुत पेंचीदा मामलों में भी अधिकतम एक सप्ताह में मौका मुआयना करके पंच प्रधान फैसला सुना देते थे। इनके फैसलों के खिलाफ किसी दूसरी अदालत में जाने की हिम्मत कोई इसलिये नहीं करता था कि उसे बिरादरी से बाहर निकाल दिया जाता था।
धोबिया नाच की सज जाती महफिल : मेले में दिनभर गदहों की खरीद-बिक्री के बाद मेले में शाम ढलते ही धोबिया नाच की महफिल सज जाती है। इसमें ज्यादातर भोज पंचायत के फैसलों में लगने वाले जुर्माने की सजा के या किसी की शादी के होते थे। समय के साथ ददरी के गदहा मेले का भी स्वरुप बदला है। इन सारी विषमताओं के बावजूद भी ददरी के गदहा मेले में आज भी गैर प्रांतों और नेपाल से अपने गदहों के साथ धोबी बिरादरी के लोग आते हैं। यहां आज भी पुराने दिनों की झलक दिखायी देती है ।
मेले की अलग पहचान : मेले की अपनी एक अलग पहचान है। इसमें रजक बिरादरी के लोग अपने परंपरा को आज भी जीवंत रखे हुए है। मेले में होने वाली इनकी पंचायत को कोई जवाब नहीं है। दिन भर गदहों की खरीद फरोख्त के बाद शाम को धोबिया नृत्य पर आनंद लेते है। -शिवकुमार सिंह कौशिकेय, साहित्यकार।