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करोड़ों रुपये आवंटित लेकिन सीवेज सिस्टम से नहीं जुड़े वाराणसी के 50 हजार घर, गंगा को कर रहे मैला

बनारस के 50 हजार घरों के शौचालय सीवेज सिस्टम से नहीं जुड़े हैं जिससे इन घरों का मलजल गंगा में गिर रहा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 11 Jun 2020 10:36 AM (IST)Updated: Thu, 11 Jun 2020 01:25 PM (IST)
करोड़ों रुपये आवंटित लेकिन सीवेज सिस्टम से नहीं जुड़े वाराणसी के 50 हजार घर, गंगा को कर रहे मैला

वाराणसी, [विनोद पांडेय]। गंगा निर्मलीकरण का सच जानेंगे तो आश्चर्य होगा। बनारस के 50 हजार घरों के शौचालय सीवेज सिस्टम से नहीं जुड़े हैं, जबकि सरकार ने करोड़ों रुपये नमामि गंगे के तहत आवंटित किए हैं। इसके बाद भी विभागीय धांधली ऐसी कि बड़ी तादाद में शौचालय प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर गंगा को मैला कर रहे हैं। ऐसे घरों की सर्वाधिक संख्या वरुणापार में है।

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वरुणा पार के सर्वाधिक शौचालय

केंद्र सरकार ने इस इलाके में नए सीवेज सिस्टम से शौचालयों को जोडऩे के लिए 105 करोड़ रुपये दिए थे। इसमें 50 हजार से अधिक घरों का कनेक्शन कराना था। अब तक 23 हजार 400 घरों का कनेक्शन हो पाया। शेष करीब 27 हजार शौचालयों का कनेक्शन डेढ़ वर्ष से अटका पड़ा है। 

पुराने शहर के भी 23 हजार

यही समस्या पुराने शहर के विस्तारित इलाके में करीब 23 हजार घरों की भी है। संबंधित विभाग जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारियों से जानकारी लेने पर बजट नहीं होने का रोना रोया जाता है। यहां के लिए दीनापुर में स्थापित 140 एमएलडी क्षमता की एसटीपी से लहरतारा, फुलवरिया, छावनीक्षेत्र, नदेसर, मंडुआडीह, महमूरगंज आदि इलाके जुड़े हैं लेकिन इन क्षेत्रों में नमामि गंगे से करीब 23 हजार घरों के शौचालयों का कनेक्शन नहीं हो पाया। 

भूमिगत जलस्रोत भी हो रहा दूषित

सीवेज सिस्टम से न जुडऩे वाले शौचालय सोख्ता पिट, भूमिगत जलनिकासी व नालों से जुड़े हैं। सोख्ता पिट से भूमिगत जलस्रोत दूषित हो रहा है। गंगा का जलस्तर इससे भी जुड़ा है। ऐसे में अप्रत्यक्ष रूप से गंगा ही मैली हो रहीं। भूमिगत जल निकासी व नालों से जुड़े शौचालय तो मैला कर ही रहे।

यह है सीवेज सिस्टम की क्षमता

पुराने शहर का सीवेज सिस्टम की 80 एमएलडी क्षमता जिस पर 50 करोड़ लागत आया है। वहीं वरुणापार में सीवेज सिस्टम 120 एलएलडी क्षमता की है जिस पर 400 करोड़ लागत आया है। वहीं सिस वरुणा सीवेज सिस्टम 140 एमएलडी क्षमता की है जिस पर 500 करोड़ खर्च हुआ है। भगवानपुर सीवेज सिस्टम (बीएचयू) 12

एमएलडी क्षमता की है जिस पर 25 करोड़ लागत है। इसके अलावा डीरेका का सीवेज सिस्टम 10 एमएलडी क्षमता की है जिसकी 25 करोड़ लागत है।


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