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कोयला संकट : विदेशी कोयले के मुकाबले छह गुना अधिक खर्च होता है देशी कोयला

मुख्यमंत्री खुद बिजली आपूर्ति व्यवस्था सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए मॉनीटरिंग कर रहे हैं। अधिकांश लोग यह नहीं जानते ही बिजली उत्पादन में कोयले का कितना अधिक महत्व है और एक बिजली उत्पादन इकाई को हर घंटे कितने टन कोयले की आवश्यकता होती है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 13 Oct 2021 10:59 AM (IST)Updated: Wed, 13 Oct 2021 10:59 AM (IST)
कोयला संकट : विदेशी कोयले के मुकाबले छह गुना अधिक खर्च होता है देशी कोयला
मुख्यमंत्री खुद बिजली आपूर्ति व्यवस्था सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए मॉनीटरिंग कर रहे हैं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। तापीय बिजली घरों में कोयले की कमी के कारण बिजली संकट को लेकर देश में हाय-तौब्बा मचा है। केंद्रीय गृहमंत्री ने जहां कोयले की उपलब्धता के लिए खुद कमान संभाल ली है। वहीं उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री खुद बिजली आपूर्ति व्यवस्था सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए मॉनीटरिंग कर रहे हैं। अधिकांश लोग यह नहीं जानते ही बिजली उत्पादन में कोयले का कितना अधिक महत्व है और एक बिजली उत्पादन इकाई को हर घंटे कितने टन कोयले की आवश्यकता होती है। बिजली उत्पादन व्यवस्था पर नजर रखने वाले जानकारों की मानें तो बिजली घर में हर घंटे एक मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए औसत किस्म के 0.75 टन कोयले की आवश्यकता होती है।

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बिजली क्षेत्र के अभियंताओं का कहना है कि उत्पादन के लिए कोयले की खपत उसकी क्वॉलिटी पर भी निर्भर करता है। यदि कोयला बेहतरीन किस्म का हुआ तो 0.60 टन लगेगा और यदि कोयला इन्फीरियर ग्रेड का होगा तो 0.85 टन कोयले की जरूरत पड़ेगी बात यदि विदेशी कोयले की करें तो स्वदेशी कोयले के मुकाबले विदेशी काफी अच्छा माना जाता है। बिजली उत्पादन में विदेशी कोयला के मुकाबले भारत का कोयला छह गुना अधिक खर्च होता है। विदेशों से आयात होने वाले कोयले में ऑस्ट्रेलिया का बेहतर किस्म का होता है । आस्ट्रेलिया का कोयला हर घंटे महज 0.40 टन ही खर्च होगा। बिजली अभियंताओं की मानें तो उत्पादन और कोयले की खपत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब औसत किस्म का कोयला एक मेगावाट उत्पादन में हर घंटे 0.75 टन खप जाता है। 2100 मेगावाट की बिजली उत्पादन इकाई के लिए 24 घंटे में करीब 36-37 हजार टन कोयले की आवश्यकता पड़ेगी। देश की बिजली डिमांड का 62 फीसदी भारत के विशाल कोयला रिजर्व के जरिए पूरा होता है।

बावजूद इसके सेंट्रल और यूपी पुल ने बरसात के पूर्व मानक के अनुसार कोयले के भंडारण पर ध्यान नहीं दिया। जो वर्तमान के समय के लिए चिंता का कारण बन गया है। यह स्थिति तब है जब दीपोत्सव का पर्व निकट है। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव प्रभात सिंह और पूर्वांचल इकाई के सहायक सचिव सुनील कुमार यादव बताते हैं कि देश में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट में से 60 से ज्यादा ऐसे हैं जहां कोयले का स्टाक समाप्त होने वाला है। अगर ऐसा हुआ तो देश के कई हिस्सों में अंधेरा छा जाएगा। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कहना कि त्योहार के समय में शाम से लेकर अगले दिन सुबह तक बिजली कटौती कदापि न की जाए। इस बात की पुष्टि करता है कि कोयले की कमी का असर उत्तर प्रदेश में भी दिखने भी लगा है। यूपी के अनेक कई जिलों के देहात से लेकर शहरी क्षेत्रों के लोगों को बिजली कटौती का दंश झेलने को विवश होना पड़ रहा है।

भारत अपनी डिमांड का 30 फीसदी पूरा करता है विदेशी कोयला से : उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के अध्यक्ष वीपी सिंह का कहना है कि भारत अपनी कोयला डिमांड का 30 फीसदी विदेशों मंगाकर पूरा करता है । देश में कुल कोयला डिमांड का 70 फीसदी भारत के कोयला भंडारण या उत्पादन से पूरा होता है । देश में करीब 300 अरब टन कोयले का भंडार है । अपनी ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए भारत को इंडोनेशिया , आस्ट्रेलिया और अमेरिका से भी कोयले का आयात करना पड़ता है। भारत में कुल आयातित होने वाले कोयले का 70 फीसदी आस्ट्रेलिया से आता है। दक्षिण भारत के पावर प्लांट झारखंड या छत्तीसगढ़ से कोयला मंगाने के बजाय आस्ट्रेलिया से कोयला मंगाते हैं ।


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