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'एनबीसी' की नींव पर कमजोर इमारत, मां ही रखेंगी लाडले को सलामत

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र की यह स्थिति देश के दूसरे इलाकों में हालात के बारे में सहज अनुमान लगाने की राह दिखाती है।

By Vandana SinghEdited By: Published: Sun, 26 May 2019 06:28 PM (IST)Updated: Mon, 27 May 2019 05:30 PM (IST)
'एनबीसी' की नींव पर कमजोर इमारत, मां ही रखेंगी लाडले को सलामत

वाराणसी, जेएनएन। 'राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता ...। इमारतों में रहने वालों की सलामती के लिए अग्नि शमन विभाग के विभाग के पास यही अमोघ शस्त्र है। मसलन मजबूत नींव ... लेकिन तंत्र की कमजोर निगरानी एवं कायदों की अनदेखी करने वालों पर पलटवार करने में अफसरों की अनेदखी से शिक्षण संस्थानों में अध्ययनरत छात्रों पर लटकती दिख रही तलवार। सूरत के तक्षशिला कोचिंग सेंटर में बेगुनाह छात्रों की मौत के बाद जागरण ने पड़ताल की तो नेशनल बिल्डिंग कोड के कायदे बोटी-बोटी किए जाते नजर आए ...। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र की यह स्थिति, देश के दूसरे इलाकों में हालात के बारे में सहज अनुमान लगाने की राह दिखाती है।'

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नेशनल बिल्डिंग कोड

राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता (नेशनल बिल्डिंग कोड) इमारत को मजबूत इमारत देता है। इसमें सुरक्षा के उन सारे प्रावधानों का समावेश हैं, जो जानमाल की सुरक्षा को गारंटी देता है।

देश में पहली बार एनबीसी व्यवस्था 1970 में बनाया गया। उसके बाद जरूरत के मुताबिक 1983 एवं 1987 में संशोधन हुआ। वर्ष 2005 के संशोधन में आग को भी शामिल किया गया। मसलन कायदों के अनुपालन से अग्निकांड के हालात में जानमाल का नुकसान सीमित होगी।

एनबीसी के कायदे क्या कहते हैं?

राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता अग्निकांड से बचाव के लिए अग्निशमन विभाग को एनओसी मांगने के लिए बाध्य करती है। सुरक्षा कई कायदे इसी में समाहित हैं। मसलन, एप्रोच मार्ग, अग्निरोधी वायङ्क्षरग, फायर अलार्म, होजरील, वाटर टैंक, पंप के मानक इत्यादि के मानक उपलब्ध कराए हैं, यानी कि अधिकारी चाहें तो कायदों के चाबुक चलाकर अग्निकांड, भूकंप की रक्षा कर सकें।

हुक्मरान खामोश, मुश्किल में जान

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 में उस भवन को सीज करने किया जा सकता है, जिससे जानमाल को नुकसान होने की आशंका हो। यह अधिकार मजिस्ट्रेट के पास सुरक्षित होता है। कायदों के अमोघ शस्त्र को अधिकारी चला दें तो हादसों में अकाल मौतों पर अंकुश लगाया जा सकता है लेकिन हटो-बचो की राह पर चलकर नौकरी करने वाले अधिकारी ऐसा करने से बचते हैं।

सीजेएम कोर्ट में वाद करने का अधिकार

अग्निशमन विभाग अधिकारियों के पास भी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में वाद दाखिल करने का अधिकार है। हालांकि, इस कार्रवाई से पूर्व नोटिस देने का प्रावधान है। दमकल प्रशासन अमूमन ऐसी कार्रवाई से बचने की कोशिश करता है।

रिहायशी भवनों के व्यावसायिक इस्तेमाल से खतरे में जानमाल

शहर से लेकर कस्बाई इलाकों तक में निजी भवनों का व्यावसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है। अफसर इससे अनभिज्ञ हैं या फिर जानबूझकर अनदेखी कर रहे। यही अव्यवस्था लोगों की जानमाल को खतरे में डाल रही है। शहर में खुली आंखों से इसे देखा जा सकता है, लेकिन जिम्मेदारों की स्थिति  'मूंदहु आंख कतहुं कछु नाहींÓ की स्थिति है। 

सुप्रीम कोर्ट ने भी दिए थे आदेश

सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में अवनीश मल्होत्रा बनाम यूनियन यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य मामले में सुनवाई के बाद उत्तर प्रदेश शासन को आदेश दिया था, कि नेशनल बिल्डिंग कोड के कायदों का अनुपालन कराएं। सचिव अनूप चंद्र पांडेय ने सख्ती के दृष्टिगत बकायदा एक आदेश जारी कर कायदों को जमीन पर उतारने के निर्देश दिए थे। अग्निशमन विभाग भी उस समय कायदों को जमीन पर उतारने को सक्रिय हो उठा था। सर्वोच्च न्यायालय ने  सुनवाई के बाद दिया था।    

यूं सुरक्षा कायदों को बोटी-बोटी काटा जा रहा

1- नियम : शिक्षण संस्थान के भवन 500 वर्ग मीटर में है तो एप्रोच मार्ग (पहुंच का रास्ता) करीब दस फीट चौड़ा चारो तरफ होना चाहिए।

जमीनी हकीकत : शहर के 95 फीसद भवन तंग गलियों में फल-फूल रहे।

2- नियम : भवन में प्रवेश व निकास के रास्ते दो विपरीत दिशा में होने चाहिए। भवन रास्ते के अंतिम सिरे पर हो तो दोनों रास्ते एक ही दिशा में भी निकाले जा सकते हैं। इसकी चौड़ाई करीब डेढ़ मीटर की होनी चाहिए।

जमीनी हकीकत : शहर के 95 फीसद शिक्षण संस्थानों के भवनों के इस नियम का पालन नहीं किया जा रहा।

3-नियम : भवन में पांच हजार लीटर का वाटर टैंक होना चाहिए। जिसमें पंप ऐसा लगा हो, जो साढ़े चार सौ लीटर पानी एक मिनट में डिस्चार्ज करे।

जमीनी हकीकत : 95 फीसद भवनों में वाटर टैंक नहीं बना है। ऐसे में साढ़े चार सौ लीटर क्षमता के मोटर की बात करना ही बेमानी होगी।

4-नियम : भवनों में हौजरील होना चाहिए। फायर इंस्टीग्यूशर 100 वर्ग मीटर के एरिया में एक होना चाहिए। भवनों के मंजिल पर यह मानक चार का निर्धारित है।

जमीनी हकीकत : एजुकेशन सेंटर्स में सुरक्षा के यह उपाय ढूंढने से नहीं मिलते हैं। जहां लगे भी हैं, वहां उसका नवीनीकरण नहीं किया जा रहा।

5-नियम : भवनों में आपातकालीन संकेत चिन्ह, फायर अलार्म इत्यादि की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे आपात स्थिति में बचाव के त्वरित उपाय किए जा सकें।

जमीनी हकीकत : भवन निर्माण से पूर्व एनओसी ही नहीं ली जा रही तो फिर अग्निकांड से बचाव के उपाय का सवाल ही कहां उठता है।

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