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इस जनपद में 40 साल से एक थाने का दरवाजा बंद, चादर चढ़ाते हैैं दारोगा

इसे अंधविश्वास कहें या कुछ और जौनपुर के मडिय़ाहूं सर्किल के नेवढिय़ा थाने में 40 साल से अनहोनी की आशंका में एक आफिस का दरवाजा किसी दारोगा ने नहीं खोला।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 11 Feb 2020 07:13 PM (IST)Updated: Wed, 12 Feb 2020 10:08 AM (IST)
इस जनपद में 40 साल से एक थाने का दरवाजा बंद, चादर चढ़ाते हैैं दारोगा

जौनपुर [अनिल सिंह]। इसे अंधविश्वास कहें या कुछ और, जौनपुर के मडिय़ाहूं सर्किल के नेवढिय़ा थाने में 40 साल से अनहोनी की आशंका में एक आफिस का दरवाजा किसी दारोगा ने नहीं खोला। पुलिस के अनुसार दरवाजे के खुलते ही थानाध्यक्ष का स्थानांतरण हो जाता है या दुर्घटना हो जाती है। बहरहाल, आफिस को पीर बाबा की मजार मानकर बंद रहने वाले दरवाजे की पूजा होती है। एक तस्वीर भी इस पर लगी है। ठीक नीचे हर गुरुवार को चादर चढ़ाई जाती है। मजार मुजावर मुबारक अली ने बताया कि हर वर्ष 13 मार्च को थाना परिसर में उर्स का आयोजन होता है। 

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क्या है बंद दरवाजे का रहस्य

1969 में इस थाने का निर्माण कराया गया। थाना परिसर में ही पीर बाबा का मजार रहा। इस आफिस में दो दरवाजे हैं। एक पूर्वी तरफ तो दूसरा पश्चिमी तरफ खुलता है। पूर्वी दरवाजे के नीचे पीर बाबा की मजार की मान्यता है। 1980 के पहले जब भी पूर्वी दरवाजे को खोलने का प्रयास हुआ। कुछ न कुछ गड़बड़ ही हुआ।

यूं हुईं घटनाएं

यकीन मानें या न मानें, लेकिन पुलिस कहती है कि 1978 में तत्कालीन थानाध्यक्ष त्रिवेणी पांडेय द्वारा दरवाजा खोलवाया गया था। उसी दिन गुतवन बाजार में मेले के दौरान मारपीट में इन्हें गंभीर चोट आ गई। इसके बाद 1978 में ही तत्कालीन थानाध्यक्ष रहे आफताब खां द्वारा दरवाजे को खोलवाया गया। उसी दिन क्षेत्र के इटाए बाजार में दो वर्गों के बीच हुई मारपीट की घटना में वह घायल हो गए। स्थानांतरण भी हो गया। इसी तरह 1979 में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक की ओर से दरवाजा खोलवाया गया तो दूसरे दिन तबादला हो गया। तभी से इस दरवाजे के नीचे पीर बाबा की मजार मानकर पुलिसकर्मियों द्वारा पूजा की जाती है और गुरुवार को चादर भी चढ़ाई जाती है।

हम परंपरा का निर्वाह कर रहे

हम परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। दरवाजा न खुलने से कार्य करने में कोई बाधा उत्पन्न नहीं हो रही है।

- राजनारायण चौरसिया, थानाध्यक्ष।

इस संबंध में कोई जानकारी नहीं

इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन अगर मामला है तो आज ही दिखवाते हैं।

अशोक कुमार, पुलिस अधीक्षक। 

मामला आस्था का

मामला आस्था का है तो कोई बात नहीं है। फिर भी उससे कोई नुकसान नहीं हो रहा है।

संजय कुमार राय, एसपी ग्रामीण। 

रूढिय़ां ज्ञान को प्रभावी नहीं होने देती

रूढिय़ां ज्ञान को प्रभावी नहीं होने देती हैं। सुरक्षा का भय हर किसी को प्रभावित करता है। पहले विज्ञान इतना आगे नहीं था तो बीमारियों का उपचार भूत विज्ञान से ही होता था। रही बात पीढिय़ों की तो हर कोई सोचेगा ही। लेकिन ऐसा कुछ है नहीं। अगर कोई इन सबसे इतर होकर साहस दिखाएगा तो जरूर दरवाजा खुल जायेगा। ऐसा कहने-सुनने से सिर्फ लोगों में भय का माहौल बनता है ताकि आस्था भी जुड़ी रहे।

-प्रो. आरएन ङ्क्षसह, मनोविज्ञान विभाग, बीएचयू।


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