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जागरण फ‍िल्‍म फेस्टिवल : चुनौतियों के साथ बड़ा होता चला गया सिनेमा का पर्दा Varanasi news

फिल्म चिंटू का बर्थ डे के निर्देशक सत्यांशु सिंह की खुद अपनी कहानी भी किसी फिल्मी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं।

By Edited By: Published: Sun, 04 Aug 2019 01:58 AM (IST)Updated: Sun, 04 Aug 2019 10:26 AM (IST)
जागरण फ‍िल्‍म फेस्टिवल : चुनौतियों  के साथ बड़ा होता चला गया सिनेमा का पर्दा Varanasi news
जागरण फ‍िल्‍म फेस्टिवल : चुनौतियों के साथ बड़ा होता चला गया सिनेमा का पर्दा Varanasi news

वाराणसी, जेएनएन। फिल्म चिंटू का बर्थ डे के निर्देशक सत्यांशु सिंह की खुद अपनी कहानी भी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं। दिल सिनेमा की रील में उलझा लेकिन परिवारीजनों का मन रखने को आ‌र्म्ड फोर्स मेडिकल कालेज में पढ़ाई लिखाई और आला-कैंची संभाली। ..मगर इससे भाई के लिए मुंबई का रास्ता साफ हुआ और दोनों भाइयों ने मिलकर हसरतें पूरी करने का मैदान भी पा लिया। सात साल बाद सफलता ने गिले शिकवे दूर किए और फिर परिवार एक बार फिर साथ था। अपने संघर्षो की यह कहानी खुद सत्यांशु सिंह ने जागरण फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन मास्टर क्लास में युवाओं को नजीर के तौर पर तो सुनाई ही उन्हें राह भी दिखाई।

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वेब सीरीज को लेकर फिल्मों को खतरे पर कहा कि इसमें व टीवी सीरीज में कोई अंतर नहीं है। ऐसे सवाल 70-80 वर्षो से पूछे जा रहे और चुनौतियों के साथ सिनेमा का पर्दा बड़ा होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि सिनेमा का सबसे बड़ा पक्ष है कम्युनिटी रिएक्शन जो सिर्फ हाल में बैठने पर ही महसूस किया जा सकता है। हां, वेब सीरीज से लोगों को काम मिल रहा है। ऐसे लोग नजर आ रहे हैं जो फिल्म के भरोसे इंतजार में रह जाते। हर जगह हैं एक्टर अच्छी कहानी और निर्देशन है तो एक्टर तो मिल ही जाएंगे। इसे अपने आसपास ढूंढ़ना होगा। हर व्यक्ति अपने आप में कलाकार है, वह अपने संवाद बखूबी बोल सकता है।

पाथेर पांचाली जैसी फिल्में ऐसे ही फिल्माई गई। खुद सीखने से आएगा लेखन लेखन महसूस करने की चीज है। इसके लिए किसी तरह के कोर्स की जरूरत नहीं। इसे आप इंटरनेट, टीवी के जरिए घर बैठे सीख सकते हैं। स्क्रिप्ट राइटिंग के कुछ कांटेस्ट भी कुछ अच्छे हैं। कैरेक्टर मिला तो खड़ी कहानी किरदार मिल गया तो समझिए आधा काम हो गया। जब तक किरदार अच्छा न हो कोई भी कहानी अच्छी नहीं हो सकती। एक किरदार बेहतर होना ही चाहिए। निर्देशन तो सीखना ही पड़ेगा कोई बचपन से एक्टर-सिंगर-राइटर हो सकता है लेकिन निर्देशन सीखना ही होता है। यह समग्रता का मामला है। इसमें कई बिंदु शामिल होते हैं। दिमाग से स्मार्ट होना जरूरी फिल्मी दुनिया में ग्लैमर है तो खतरनाक लेकिन दिमाग से स्मार्ट हैं तो किसी को नाराज किए बिना निकल सकते हैं। ऐसा तमाम कलाकार कर भी रहे हैं। मेरी बहन भी टीवी में काम कर रही।

प्लानिंग से आसान होगी राह किसी कार्य को शुरू करने में हम जो भी अपेक्षा रखते हैं जरूरी नहीं कि वहां ही पहुंच जाएं लेकिन वह अपेक्षित से भी बेहतर हो सकता है। इसके लिए प्लानिंग जरूरी है। शर्त यह है कि लक्ष्य में कोई शर्त न हो। कहने वाले तो कहते रहेंगे हम जब किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं तो हमारा ध्यान भी उस ओर ही होना चाहिए। यह देखने वाले को लग सकता है कि ठीक नहीं लेकिन वह तो सिर्फ लहर देख रहा और लहर के पार। जब आप सफल होंगे तो सभी आपका लोहा मानेंगे। बस, क्रिएशन में इमोशन और डिवोशन होना चाहिए। इन लोगों ने पूछे सवाल अंजलि राय, आलोक रंजन, प्रतीक, तुलसी, दीपक, अमन, आयुष, प्रभु दयाल आदि।

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