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सोनभद्र में फसल को चूहा और रोग से बचाने के लिए मंथन, कृषि रक्षा अनुभाग मनाएगा कृषक वार्ता और रोग नियंत्रण माह

सोनभद्र जिले में फसलों को चूहों से बचाने के लिए मंथन किया जा रहा है। इसके लिए कृषि रक्षा अनुभाव कृषक वार्ता के अलावा रोग नियंत्रण माह के जरिए कृषि उत्‍पादों को बचाने के लिए विशेष तैयारियों पर बल देगा।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek sharmaPublished: Tue, 04 Oct 2022 12:14 PM (IST)Updated: Tue, 04 Oct 2022 12:14 PM (IST)
फसल बचाने के लिए विभाग नए सिरे से रणनीति बना रहा है।

सोनभद्र, जागरण संवाददाता। खतों में खड़ी फसलों को बचाने के लिए एग्रीकल्चर विभाग का कृषि रक्षा अनुभाग एक से 31 अक्टूबर तक कृषक वार्ता व संचारी रोग नियंत्रण माह मनाएगा। इसके तहत फसलों में लगने वाले कीट, रोग व चूहा आदि समस्याओं का निवारण होने के साथ-साथ संरचारी रोग से सुरिक्षत किया जा सके। इस कार्य के लिए किसान जागरूक किए जाएंगे, ताकि किसान फसल को चूहों से बचाया जा सके, जिससे फसल बर्बाद न हो।

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जिला कृषि रक्षा अधिकारी जर्नादन कटियार ने बताया कि कई जनपदों में लैप्टोस्पायिरोसिस व स्क्रब टाईफस के रोग मिले हैं। इस बाबत चूहा व छछूंदर को नियंत्रित करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। चूहे मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, घरेलू व खेत के चूहे, घरेलू चूहा घर में पाया जाता है जिसे चुहिया या मूषक कहा जाता है, खेत के चूहों में फील्डरैट, साफ्ट फर्ड फील्ड रैट एवं फील्ड रैट प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त भूरा चूहा खेत व घर दोनों जगह पाया जाता है। जंगली चूहा जंगलों, निर्जन स्थानों व झाड़ियों में रहते हैं। इनकी संख्या को नियंत्रित करने के लिए अन्न भण्डारण पक्का, कंकीट तथा धतु से बने पात्रों में करना चाहिए।

चूहे अपना बिल झाड़ियों, कूड़ों व मेड़ो आदि में स्थायी रूप से बनाते हैं, खेतों का समय-समय पर निरीक्षण एवं साफ-सफाई करके इनकी संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है। चूहों के प्राकृतिक शत्रु- बिल्ली, सांप, उल्लू, लोमड़ी, बाज एवं चमगादड़ आदि हैं। इनको संरक्षण देने से चूहों की संख्या नियंत्रित हो सकती है। चूहेदानी का प्रयोग करके उसमें आकर्षक चारा जैसे-रोटी, डबल रोटी बिस्कुट आदि रखकर चूहों को फंसाकर मार देने से इनकी संख्या को नियंत्रित होती है।

उन्होंने बताया कि घरों में ब्रोमोडियोलान 0.005 प्रतिशत के बने चारे की 10 ग्राम मात्रा प्रत्येक जिन्दा बिल में रखने से चूहे उसको खाकर मर जाते हैं, एल्युमिनियम फास्फाइड दवा की 3-4 ग्राम मात्रा प्रति जिन्दा बिल में डालकर बिल बंद कर देने से उससे निकलने वाली फास्फीन गैस से चूहें मर जाते हैं। चूहा बहुत चालाक प्राणी है, इसको ध्यान में रखते हुए छह दिवसीय योजना बनाकर उसको आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

प्रथम दिन आवासीय घरों का निरीक्षण व बिलों को बंद करते हुए चिन्हित करेंगें, दूसरे दिन घर का निरीक्षण कर जो बिल बंद हो वहां चिन्ह मिटा देंगे, जहां बिल खूले पाये वहां चिन्ह रहने देंगें, खुले बिल में एक भाग सरसों का तेल व 48 भाग भूने दाने का चारा बिना जहर मिलाए रखेंगे तीसरे दिन बिलों का निरीक्षण कर बिना जहर का चारा पुनः रखेंगे, चैथे दिन जिंक फास्फाइड 80 प्रतिशत की 1.0 ग्राम मात्रा को 1.0 ग्राम तेल व 48 ग्राम भूने दाने में बनाए गए जहरीला चारा को बिल में रखेंगे। पांचवे दिन बिलों का निरीक्षण करेंगे व मरे हुए चूहों को एकत्रित कर गाड़ देंगें, छठे दिन बिलों को पुनः बंद करेंगें। इसके अगले दिन यदि बिल खुले पाए जाएं तो साप्ताहिक कार्यक्रम पुनः अपनायेंगे।

चूहा नियंत्रण के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां

चूहा नियंत्रण रसायनों का प्रयोग करते समय हाथ में दस्ताने पहने व अपने चेहरे पर मास्क लगाएं। रसायनों को बच्चों की पहुंच से दूर रखें, मरे हुए चूहों को सावधानी पूर्वक घर से बाहर मिट्टी में दबा दें। रसायन के प्रयोग के दौरान घर में रखी खाद्य सामग्री इत्यादि को अच्छी तरह से ढक दें। अभियान का क्रियान्वयन करते समय कोविड-19 से संबंधित जारी निर्देशों का पालन अवश्य किया जाना चाहिए।

बोले अधिकारी : रोग, कीट व चूहों से फसल बचाने के लिए किसानों को जागरूक होना चाहिए। इसके मद्देनजर कृषि रक्षा अनुभाग एक माह तक किसानों को जागरूक करेगा। इससे अन्नदाताओं को लाभान्वित होना चाहिए।

- दिनेश कुमार गुप्ता, कृषि उप निदेशक, सोनभद्र।


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