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जानें शरीर का व्‍यवहार तब चुनें अपना संतुलित आहार, आयुर्वेद का उपचार

आयुर्वेद के मुताबिक वात, पित्त और कफ हमारे शरीर का आधार हैं, ये तीनों ही शरीर का मूल होते हैं और यही तीनों रोग का भी मूल होते हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 05:12 PM (IST)Updated: Thu, 06 Dec 2018 07:00 AM (IST)
जानें शरीर का व्‍यवहार तब चुनें अपना संतुलित आहार, आयुर्वेद का उपचार
जानें शरीर का व्‍यवहार तब चुनें अपना संतुलित आहार, आयुर्वेद का उपचार

 वाराणसी, (वंदना सिंह)। आयुर्वेद के मुताबिक वात, पित्त और कफ हमारे शरीर का आधार हैं, ये तीनों ही शरीर का मूल होते हैं और यही तीनों रोग का भी मूल होते हैं। शरीर को स्वस्थ रखने में इन तीनों का संतुलन अहम भूमिका निभाता है। जरूरी है कि इस संतुलन को बनाए रखने के लिए हम हमेशा उचित आहार और विहार का सेवन करें। इन तीनों का असंतुलन ही रोगों को जन्म देता है।

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चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डा. अजय कुमार बताते हैं कि हम सभी जानते है की संपूर्ण सृष्टि पांच भौतिक है। आकाश, वायु, अग्रि, जल और पृथ्वी, यह पंच महाभूत सारे ब्रह्मांड को तो बनाते ही हैं हमारे शरीर की भी रचना करते हैं। इन्हींं पंचमहाभूतों में से आकाश और वायु के संयोजन से वात बनता है, पृथ्वी व जल के योग से कफ बनता है और उसी प्रकार अग्रि से पित्त का निर्माण होता है। 

रोग कैसे उत्पन्न होते हैं 

दोष जब संतुलित अवस्था में रहते हैं तब वे स्वास्थ्य का आधार बनते हैं। अगर शरीर में उनकी मात्रा में असंतुलन हो तो शरीर में रोग की उत्पत्ति होती है। शरीर में इनका अनुपात कम-ज्यादा होने पर रोग उत्पन्न होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि शरीर का पोषण उसकी वात, पित्त या कफ प्रकृति को ध्यान में रख कर किया जाए, तभी हम स्वस्थ रह सकते हैं। यानी जो आहार विहार हमारे शरीर के विकास में सहायक होता है, वही आहार विहार हमारी बीमारियों का भी प्रमुख कारण बन सकता है। 

कैसे जाने किस दोष का प्रकोप हुआ है

वैसे तो आयुर्वेद बहुत ही गूढ़ चिकित्सा शास्त्र है जिसे बिना समुचित अध्ययन के समझना संभव नहीं है। फिर भी संक्षेप में निम्न लक्षणों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किस दोष का प्रकोप हुआ है। इन लक्षणों के आधार पर प्रकुपित दोष का ज्ञान करते हैं और फिर इसके विपरीत चिकित्सा करते हैं। आइए जानते है दोषो के लक्षण ।

वात प्रकोप के लक्षण 

त्वचा का सूखा और खुरदुरा बनना। हमेशा थका हुआ महसूस करना। शरीर में दर्द व मांसपेशियों में जकडऩ। गहरी नींद न आना। पेट में गैस अधिक बनना। कब्ज रहना।

पित्त प्रकोप के लक्षण 

शरीर में जलन महसूस होना। चक्कर आना व थकावट महसूस करना। मुंह का स्वाद कड़वा रहना। पेट में जलन महसूस होना। आंखों, मूत्र एवं त्वचा में पीलापन। ठंडे आहार की इच्छा बढऩा। हमेशा चिड़चिड़ा रहना व किसी की बात न मानना। दूसरों से ईषर्या।

कफ प्रकोप के लक्षण 

शरीर में भारीपन व जकडऩ रहना। शरीर भार का बढऩा। शरीर के अंगों में सूजन रहना। त्वचा व बालों का अधिक तैलीय रहना। मुंह में मीठापन बने रहना। कभी-कभी उल्टी आने जैसा होना। नींद का अधिक आना। हमेशा आलस्य में रहना। मुंह में कफ का उत्पादन अधिक खासकर सुबह के समय। श्वांस विकारों की अधिक उत्पत्ति होना। सुबह के समय भारीपन व आलस्य प्रतीत होना।

प्रकृति के अनुसार कैसा हो आहार-विहार

वात प्रकृति के लिए आहार 

जिन व्यक्तियों की प्रकृति वातज है उन्हें वात का शमन करने के लिए पौष्टिक भोज्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। वात- शमन के लिए स्निग्ध, भारी, अम्ल, लवण रस युक्त और तेलीय पदार्थों का सेवन अत्यंत हितकर है। इसके अलावा निम्न उपाय कर सकते हैं। भोजन में चिकनाहट, भारीपन हो व हमेशा गरम ही खाएं। भोजन में मधुर, अम्ल (खट्टा) और लवण (नमक) प्रधान रस होने चाहिए। दूध और दूध से बने पदार्थ अच्छे विकल्प हैं। थोड़ा-थोड़ा भोजन समय-समय पर खाते रहें। एक साथ न बहुत सारा भोजन न करें और न ही बिल्कुल भूखे रहें। भोजन में कटु, तिक्त, कषाय रस का प्रयोग कम करें। प्याज, नींबू व मीठे खाद्य पदार्थ वात प्रकृति के लिए अनुकूल हैं। सभी प्रकार के मीठे व खट्टे फलों जैसे केला, स्ट्रॉबेरी, सेब, अनानास, पपीता, गन्ना, नारियल, आम व अनार का सेवन करें। 

पित्त प्रकृति के लिए आहार 

पित्त को शांत करने के लिए ठंडे, भारी मधुर और कषाय भोज्य पदार्थों का सेवन करना निहित है। इसके अतिरिक्त निम्न उपाय कर सकते हैं। पैत्तिक पुरुष की अग्नि अत्यधिक बलवान व तीव्र होती है। इसीलिए हर दो घंटे में आपको कुछ न कुछ खाते रहना चाहिए। ऐसा आहार करना चाहिए जो आपकी प्रकृति के लिए हितकर हो। गाजर, पालक, खीरा, पत्ता गोभी, हरी फली, मटर, घीया, तोरई, आलू, शकरकंदी, ब्रोकली जैसी सब्जियों का सेवन। रसभरी व मीठे फलों का सेवन अधिक करें। शुष्क फलों का सेवन भी कर सकते हैं। खरबूजा, अंगूर, पपीता, केला, लीची, किशमिश, सेब, खजूर, पका हुआ आम, नारियल, गन्ना आदि का सेवन लाभकारी है। इमली, जामुन, नींबू, संतरा व अनानास आदि का सेवन कम करें। 

 

कफ प्रकृति के व्यक्तियों लिए आहार 

जो भोज्य पदार्थ कषाय, कटु और तिक्त रस के होते हैं और लघु और उष्ण गुणवाले होते है इनके लिए लाभदायक होते है। इसके अलावा निम्न आहार ले सकते हैं। मिठाइयां, मक्खन, खजूर, नारियल, उड़द की दाल, केला, सुअर का मांस आदि का अधिक सेवन शरीर में कफ प्रवृत्ति को बढ़ाता है। दिन में सोने और फास्ट फूड के अधिक सेवन से भी शरीर में कफ बढ़ता है। इसके अलावा निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। अत्यधिक ठंडे, भारी व बासी आहार का सेवन न करें। दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही, पनीर, मक्खन आदि कम ग्रहण करें। अपने आहार में फलों के रस, कोल्ड ड्रिंक, आइस क्रीम, मिठाई की मात्रा कम रखें। रात का खाना जल्दी खाएं व बार-बार खाने की आदत को त्याग दें। अदरक, लहसून, आदि उष्ण द्रव्यों आदि का सेवन करें। ऐसे फलों का सेवन करें जो अधिक जूस वाले व मीठे या खट्टे न हो।


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