राष्ट्रभक्ति का जज्बा जगाती यहां की बलिदानी गाथा, चरौवां गांव को घेर अंग्रेजों ने तड़तड़ाई थी गोलियां
बलिया जनपद मुख्यालय पर क्रांतिकारियों ने फिरंगियों के पांव उखाड़ दिए वहीं उन्हीं दिनों बिल्थरारोड की धरती के लाल भी सिर पर कफन बांध अंग्रेजों के नाक में दम कर दिए।
बलिया [विजय मद्धेशिया]। सन् 1942 में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी को जहां बलिया जनपद मुख्यालय पर क्रांतिकारियों ने फिरंगियों के पांव उखाड़ दिए वहीं उन्हीं दिनों बिल्थरारोड की धरती के लाल भी सिर पर कफन बांध अंग्रेजों के नाक में दम कर दिए। इससे बौखलाए अंग्रेजों ने जमकर क्रूरता का तांडव किया। इस बीच चरौंवां गांव में अंग्रेजियत का डट कर सामना करने में शहीद हुए चरौवां के चार शहीदों समेत बिल्थरारोड के कुल सात अमर शहीदों की यादें आज भी यहां ताजा है।
गांव में स्थित ऐतिहासिक खंडहरों में तब्दील इनकी स्मृतियां चरौवां के वीर सपूतों के बलिदानी दास्तां को बयां करती है। गांव में शहीद स्मारक व स्तूप समेत भव्य शहीद द्वार के समक्ष शहादत पर हर कोई गर्व करता है। उन दिनों अंग्रेजों के आर्थिक, यातायात व संचार स्रोत पर सीधा हमला करने के कारण यह क्षेत्र अंग्रेजों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया था। इससे बौखलाए अंग्रेजों ने लगातार तीन दिन तक इस इलाके को घेर जमकर गोलियां बरसाई। बावजूद गांव के लोगों की एकजुटता, त्याग, बलिदान व साहस ने अंग्रेजों के होश उड़ा दिए। बिल्थरारोड का स्टेशन व माल गोदाम फूंक डाला गया। इधर बिल्थरारोड डम्बर बाबा मेले में स्टेशन पर धावा बोलने की योजना बनी और अंजाम तक पहुंचाया गया। इस कारण हथियारों से लैस हो तीन दिन तक क्षेत्र में तांडव करने वाले अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा। भारत छोड़ो आंदोलन में 14 अगस्त 1942 को बिल्थरारोड में अंग्रेजों ने निहत्थे क्रांतिकारियों पर जमकर गोलियां बरसाई जिससे चंद्रदीप सिंह ग्राम आरीपुरसरयां व अतवारु राजभर ग्राम टंगुनिया शहीद हो गए किंतु अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब भी मिला।
अगले ही दिन 15 अगस्त को कैप्टन मूर के नेतृत्व में अंग्रेजों ने पूरे गांव को घेर लिया और घंटों जमकर गोलियां बरसाई जिसमें श्रीखरवियार व शिवशंकर सिंह शहीद हो गए। इस दौरान अंग्रेजों ने गांव में जमकर लूटपाट भी किया। गांव में पूरे दिन चले अंग्रेजों के आतंक से तंग मकतुलिया मालीन फिरंगी सिपाहियों के नजर से बचकर कैप्टन मूर के सिर पर मिट्टी की हांडी दे मारी। इससे अंग्रेज तिलमिला गए और मकतुलिया को गोलियों से छलनी कर दिया गया। ग्रामीणों के हिंसक विरोध से बौखलाए अंग्रेज मकतुलिया का शव भी साथ लेते गए।
इस दर्द से अभी लोग उबर भी नहीं पाए थे कि 17 अगस्त को फिर अंग्रेजी फौज ने गांव में हमला बोला। जमकर गोलियां चलाई, कई घरों को फूंक दिया और घरों में लूटपाट की। इस दौरान अंग्रेजों की गोली से मंगला सिंह शहीद हो गए। आज भी यहां की लाल मिट्टी शहीद वीरों के बलिदानी गाथा को याद दिलाती है और लोगों में देश प्रेम व राष्ट्रभक्ति का जज्बा जगाती है। देश की आजादी के बाद अप्रैल 1944 में उप्र कांग्रेस कमेटी की तरफ से स्वयं स्व.फिरोज गांधी भी यहां अपने दल-बल के साथ पहुंचे और वीरों को श्रद्धांजलि दे यहां की बलिदानी मिट्टी को साथ लेते गए।