Move to Jagran APP

Chandrashekhar Azad Birth Anniversary संस्कृत सीखने आये चंद्रशेखर को काशी ने बना दिया क्रांतिकारियों का मुखिया

असहयोग आंदोलन शुरू हो चुका था और मात्र 15 वर्ष के चंद्रशेखर वाराणसी के पाठशाला में धरना देते समय अंग्रेजों द्वारा पहली और अंतिम बार पकड़े गए।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 23 Jul 2020 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jul 2020 09:38 AM (IST)
Chandrashekhar Azad Birth Anniversary संस्कृत सीखने आये चंद्रशेखर को काशी ने बना दिया क्रांतिकारियों का मुखिया
Chandrashekhar Azad Birth Anniversary संस्कृत सीखने आये चंद्रशेखर को काशी ने बना दिया क्रांतिकारियों का मुखिया

वाराणसी, जेएनएन। (जन्म : 23 जुलाई 1906, भावरा, झाबुआ, मध्यप्रदेश, निधन : 27 फरवरी, 1931, अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद, माता - जगरानी देवी, पिता - पंडित सीताराम तिवारी) एक समय आया जब शिक्षा की धुरी काशी क्रांतिकारियों की धरती में भी तब्दील हो चुकी थी। बनारस की गलियां जंग-ए-आजादी का अखाड़ा बन चुकी थी और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से लेकर घाटों के पहलवान अंग्रेजों से दो-दो हाथ करने और प्राण न्योछावर करने को लालायित थे। यह बात 1921 की है जब महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद पिता जी से बनारस की संस्कृत शिक्षा की महानता सुनकर काशी आये संस्कृत पाठशाला (कहीं-कहीं काशी विद्यापीठ का भी जिक्र आता है) में प्रवेश लिया। तब तक असहयोग आंदोलन शुरू हो चुका था और मात्र 15 वर्ष के चंद्रशेखर पाठशाला में धरना देते समय अंग्रेजों द्वारा पहली और अंतिम बार पकड़े गए। आजाद के निकट साथी विश्वनाथ वैशंपायन द्वारा लिखित आजाद की जीवनी अमीर शहीद चंद्रशेखर आजाद (सुधीर विद्यार्थी द्वारा संपादित) के अनुसार असहयोग आंदोलन के दौरान बनारस ने चंद्रशेखर को आजादी का दीवाना और राष्ट्र भक्त बना दिया और स्वतंत्रता संग्राम में उतरने को प्रेरित किया। उनके विद्या अर्जन का काम यहां से राष्ट्र भक्ति में तब्दील हो गया। बनारस में उन्हें सबसे पहला साथ क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्ता का मिला, इसके बाद आजाद ने सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से देश को आजाद कराने वाले युवकों का एक दल बना लिया, जिसमें शचीन्द्रनाथ सान्याल, बटुकेश्वर दत्त, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, बिस्मिल, अशफाक, जयदेव, शिव प्रसाद गुप्त, दामोदर स्वरूप, आचार्य धरमवीर आदि उनके सहयोगी थे।

loksabha election banner

जेलर के मुंह पर फेंक दिया पैसा

ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट ने जब उनका नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, 'आजाद', पिता का नाम स्वाधीनता और घर का पता जेल। यह सुन मजिस्ट्रेट तिलमिलिया और बेंत से मारने की निर्मम सजा सुना दी। सेंट्रल जेल में कसूरी बेतों की हर मार पर गांधी जी की जय, भारत माता की जय और वंदेमातरम का नाद हंसते हुए करते थे। जीवनी के अनुसार सेंट्रल जेल से लहूलुहान करने के बाद खूंखार जेलर गंडा ङ्क्षसह ने आजाद को तीन आने पैसे दिए, जिसे चंद्रशेखर आजाद ने जेलर के मुंह पर ही फेंक दिया और खुद को घसीटते हुए वह आगे निकल गए। बेंतों की मार इतनी भयावह थी कि बनारस के पंडित गौरी शंकर शास्त्री आजाद को अपने घर लाये और अपनी औषधियों से उनके सभी घावों का इलाज किया, साथ में रहने और भोजन का भी प्रबंध। इसके बाद से ज्ञानवापी पर काशी वासियों ने फूल-माला से भव्य स्वागत किया। भीड़ जब उन्हें नहीं देख पा रही थी तो अभिवादन के लिए उन्हें मेज पर खड़ा होना पड़ा। उसी समय चरखे के साथ उनकी एक तस्वीर भी ली गई। इसके बाद से ही चंद्रशेखर तिवारी आजाद उपनाम से विख्यात हुए।

अंग्रेज सिपाही की आंखों में सामने से झोंका धूल

असहयोग आंदोलन के दौरान संपूर्णानन्द जी ने आजाद को कोतवाली के सामने कांग्रेस की एक नोटिस लगाने का जिम्मा सौंपा। अंग्रेजी फौज की कड़ी सुरक्षा के बीच वह अपनी पीठ पर नोटिस हल्का सा चिपकाकर निकल गए। कोतवाली की दीवार से सटकर खड़े हो गए और पहरा देने वाले सिपाही से कुशलक्षेम लेते रहे, उतने देर में सिपाही के जाते ही आजाद भी निकल गए। बाद में नोटिस को देखकर जब शहर में हो-हल्ला मचा, तो सिपाही आजाद का कारनामा देख हक्का-बक्का रह गया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.