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Chandauli Panchayat Election : सात फीसद निरक्षर चलाएंगे गांव की सरकार, निर्वाचन विभाग की वेबसाइट पर इनकी शैक्षिक योग्यता है शून्य

Chandauli Panchayat Election चंदौली के सात फीसद प्रधान ऐसे चुने गए हैं जिन्हें पढ़ना-लिखना नहीं आता। कहीं दस्तखत का काम आ जाए तो अंगूठा दिखा देते हैं। इसके बावजूद गांवों की जनता ने इन्हें अपना जनप्रतिनिधि चुन लिया। विकास कार्यों समेत हर कार्य में दूसरों की दखलंदाजी रहेगी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 10 May 2021 01:13 PM (IST)Updated: Mon, 10 May 2021 01:13 PM (IST)
चंदौली के सात फीसद प्रधान ऐसे चुने गए हैं जिन्हें पढ़ना-लिखना नहीं आता।

चंदौली [जितेंद्र उपाध्याय]। Chandauli Panchayat Election : नौकरी, रोजगार के लिए शिक्षा जरूरी है लेकिन सत्ता चलाने के लिए इसका कोई मानक नहीं। यह विडंबना ही है कि जिले के सात फीसद प्रधान ऐसे चुने गए हैं जिन्हें पढ़ना-लिखना नहीं आता। कहीं दस्तखत का काम आ जाए तो अंगूठा दिखा देते हैं। इसके बावजूद गांवों की जनता ने इन्हें अपना जनप्रतिनिधि चुन लिया। ये तो सिर्फ मुखौटा हैं, परदे के पीछे कोई दूसरा है, जिसके हाथ की कठपुतली ऐसे प्रधान बनेंगे। विकास कार्यों समेत हर कार्य में दूसरों की दखलंदाजी रहेगी। इससे गांवों में विकास कार्य प्रभावित तो होंगे ही, साथ ही निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े होंगे। पंचायत के सभी कार्यों में उन्हीं की दखलंदाजी रहेगी। इससे गांवों में विकास कार्य प्रभावित होंगे, साथ ही निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े होंगे।

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जिले में 734 ग्राम पंचायतें हैं। 26 अप्रैल को तीसरे चरण में 729 ग्राम पंचायतों में प्रधान, बीडीसी व ग्राम पंचायत व जिला पंचायत सदस्य पद के लिए चुनाव हुआ। प्रत्याशियों की मौत की चलते छह ग्राम पंचायतों में चुनाव की प्रक्रिया टाल दी गई थी, जहां नौ मई को मतदान कराया गया। 11 मई को मतगणना में प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होगा। 729 ग्राम प्रधानों में 50 निरक्षर हैं। इन्हें पढ़ना-लिखना नहीं आता है। निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर अपलोड की गई नवनिर्वाचित प्रधानों की डिटेल में इन्हें निरक्षर दर्शाया गया है। सदर ब्लाक की 85 ग्राम पंचायतों में नौ, बरहनी की 74 में सात, नौगढ़ की 43 में 10 नियामताबाद की 88 में एक, चकिया की 88 में चार, चहनियां की 91 में पांच, धानापुर की 84 में 10, शहाबगंज की 72 में एक और सकलडीहा की 104 ग्राम पंचायतों में तीन प्रधान निरक्षर हैं। इन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। अंगूठा लगाकर अपना काम चलाते हैं।

हालांकि जातीय समीकरण और गवईं राजनीति की विडंबना की वजह से इन्हें जनप्रतिनिधि बनने का मौका मिल गया। इनके आकाओं व पढ़े-लिखे लोगों ने ही इनका सहयोग कर मैदान में उतारा और जीत दिलाई। वर्तमान दौर डिजिटल का है। ग्राम पंचायतों की तमाम सुविधाओं को भी आनलाइन प्रणाली से जोड़ा जा रहा है। वहीं पेपर वर्क समाप्त हो रहा है। तकनीकी के इस युग में बिना पढ़े-लिखे निरक्षर प्रधानों को वैसाखी की जरूरत पड़ेगी। परदे के पीछे के खिलाड़ी इसका फायदा उठाएंगे। यदि गांवों की जनता ने पढ़े-लिखे और शिक्षित व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि चुना होता तो ऐसी नौबत नहीं आती।

रामपुर कला के प्रधान पीएचडी

जिले में एक प्रधान उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। चकिया ब्लाक के रामपुर कला के नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान केशवमूर्ति पीएचडी हैं। उनकी शिक्षा-दीक्षा और योग्यता देखकर ही गांव की जनता ने अन्य उम्मीदवारों के सामने उन्हें तहजीह दी और अपना मत देकर प्रधान बनाया।


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