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CBSE : अंकों का खेल, आंकड़ों का मकडज़ाल में फंसी बोर्ड, 95 प्रतिशत से अधिक अंक पाने वालों की संख्या दोगुनी

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद (सीबीएसई) के परीक्षार्थियों में अंकों की होड़ सी मची हुई है। इसके लिए विद्यार्थी या उनके अभिभावक नहीं बल्कि बोर्ड जिम्मेदार है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 14 Jul 2020 10:00 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jul 2020 10:02 PM (IST)
CBSE : अंकों का खेल, आंकड़ों का मकडज़ाल में फंसी बोर्ड, 95 प्रतिशत से अधिक अंक पाने वालों की संख्या दोगुनी
CBSE : अंकों का खेल, आंकड़ों का मकडज़ाल में फंसी बोर्ड, 95 प्रतिशत से अधिक अंक पाने वालों की संख्या दोगुनी

वाराणसी, जेएनएन। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद (सीबीएसई) के परीक्षार्थियों में अंकों की होड़ सी मची हुई है। इसके लिए विद्यार्थी या उनके अभिभावक नहीं, बल्कि बोर्ड जिम्मेदार है। सीबीएसई ही नहीं अब सभी बोर्ड का ध्यान क्वालिटी एजुकेशन पर कम, परीक्षा में अंकों की प्रतिस्पर्धा को लेकर चल रही है। यहीं कारण है कि जनपद में गत वर्ष की तुलना में 95 फीसद से अधिक पाने वाले परीक्षार्थियों की संख्या इस वर्ष लगभग दोगुनी हो गई है।

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इस प्रकार अंकों के बाजीगिरी व आंकड़ों के मकडज़ाल में बोर्ड फंस चुकी है। यह कदम विद्यार्थियों के ज्यादा देश के लिए भी आत्मघाती कदम हैं। जबकि स्कूल स्तर पर होने प्री-बोर्ड की परीक्षाओं में ज्यादातर बच्चे 60 फीसद तक के अंकों तक सिमट जाते हैं। मुख्य परीक्षा में  इन्हीं बच्चों 95 फीसद से अधिक अंक मिलता है। ऐसे में तमाम बच्चे स्कूलों पर सवाल खड़ा करते हैं। वहीं शिक्षकों का कहना कि स्कूल बच्चोंं रीयल पोजिशन बताता है जो कई बार छात्रों को नागवार भी लगता है। शिक्षकों का कहना है कि 90-95 फीसद तक अंक हासिल करने वाले तमाम बच्चे प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी में अपने आपको फिट नहीं बैठा पाते हैं। दो-तीन साल की तैयारी करने के बाद भी उन्हें निराशा हाथ लगती है। ऐसे मेंं कई बच्चे डिप्रेशन में चले जाते है। अंकों की उड़ान एक हद तक तो ठीक हैं। उसके बाद यह उसी बच्चों के लिए तनाव का कारण बन जाता है। ऐसे में अंक से ज्यादा हुनर जरूरी है।

अब बोर्डों का ध्यान क्वालिटी एजुकेशन के स्थान पर अब अंकों के खेल पर

एक समय था जब कोई-कोई प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होता था। अब स्थिति इसके विपरीत है। कोई-कोई तृतीय श्रेणी से उत्तीर्ण हो रहा है। अंकों की प्रतिस्पर्धा को देखते हुए यूपी बोर्ड को भी शामिल होना पड़ा है। अफसोस की बात यह है कि अब बोर्डों का ध्यान क्वालिटी एजुकेशन के स्थान पर अब अंकों के खेल पर है। यही कारण है कि अब बच्चों को शतप्रतिशत भी अंक मिल रहे हैं। इससे बच्चों का मनोबल बढ़ जा रहा है। हर कोई इंजीनियर, डॉक्टर, आइएएस बनने का सपना बुनने में जुट जा रहा है। वहीं सफलता न मिलने पर डिप्रेशन में बच्चा चला जा रहा है।

-प्रो. कल्पलता पांडेय, शिक्षाविद् व कुलपति जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय (बलिया) की कुलपति

शतप्रतिशत अंक मिलने के पीछे परीक्षा का बदला हुआ पैर्टन

सीबीएसई में परीक्षाओं को शतप्रतिशत अंक मिलने के पीछे परीक्षा का बदला हुआ पैर्टन है। अब सभी विषयों में बहुविकल्पीय व लघु उत्तरीय प्रश्न भी पूछे जाते हैं। एक-दो अंकों के इन सवालों में बच्चों को पूरा-पूरा अंक मिलता है। वहीं स्कूल स्तर पर आंतिरिक मूल्यांकन भी बच्चों को शतप्रतिशत अंक मिलते हैं। इसके चलते अब 90 या 95 फीसद से अधिक अंक पाने वाले बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हालांकि इससे बच्चों को रीयल पोजिशन की जानकारी नहीं हो पाती है। स्नातक स्तर पर कम अंक मिलने पर बच्चे संबंधित संस्था को दोषी ठहराते हैं।

-सीबीएससी की सिटी कोआर्डिनेटर व सनबीम इंग्लिश स्कूल, भगवानपुर की प्रधानाचार्य

मेहनत के आधार पर इंटर में अंक मिले हैं

परीक्षार्थियों उसके मेहनत के आधार पर इंटर में अंक मिले हैं। परीक्षा देने के बाद मैने 99 फीसद से अधिक अंक मिलने की उम्मीद जताई थी। अपेक्षाओं के अनुरूप ही इंटर के सभी विषयोंं में अंक मिले हैं। ऐसे में यह कहना कि सीबीएसई अपने परीक्षार्थियों को अधिक अंक देती है। यह सरासर गलत है। अंकों में परीक्षार्थियों का मनोबल बढ़ता है। भविष्य में भी इसी प्रकार के अंक मिले। इसके लिए परीक्षार्थी मेहनत करते हैं।

-कस्तूरी ड्रोलिया (99.4 फीसद अंक) इंटर की मेधावी छात्रा


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