मानसून की देरी से संडा बचना मुश्किल, कैसे हो धान की खेती, नर्सरी बचाने की शुरु हुई चिंता
वर्षों से अपने तरीके से मौसम व मानसून के हाल का पता लगाकर खेती व किसानी का काम करने वाले किसानों की चिंताएं दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
मऊ, जेएनएन। वर्षों से अपने तरीके से मौसम व मानसून के हाल का पता लगाकर खेती व किसानी का काम करने वाले किसानों की चिंताएं दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। मानसून का अभी कोई अता पता नहीं और बारिश कैसी होगी इस पर किसानों का मंथन चालू है। पानी का स्टेटा पिछले साल की अपेक्षा और नीचे भाग गया है जिसके कारण ट्यूबेल या तो पानी देना बन्द कर दिया है अथवा इतना कम पानी दे रहा है कि नर्सरी के संडा को ही बचाना मुश्किल हो गया है।
अब किसानों के सामने संकट यह है कि धान की खेती हो कैसे। जहां कुछ किसानों ने अभी तक नर्सरी हेतु बीज ही नहीं डाला है वहीं कुछ किसान नर्सरी व संडा कर दुखड़ा सुना रहे हैं कि यदि अच्छी बारिश नहीं हुई लागत की बात तो दूर है खाने के भी लाले पड़ जाएंगे। पिछले साल भी कम बारिश के चलते ट्यूबेल से पानी न मिलने के कारण जहां धान की खेती पर प्रभाव पड़ा वहीं कुछ किसानों की फसल खेत में ही सूख गई तथा कुछ ने मुआर काट कर संतोष कर लिया। यही कारण है कि पिछले साल की स्थिति देख कर किसानों के समझ में नहीं आ रहा है कि करें तो क्या करें। उधर जिनके पास निजी ट्यूबवेल है वह अपनी पूरी खेती न करके केवल परिवार का भरण पोषण हो जाय उतना ही खेत में धान की रोपाई का उपाय लगा रहे हैं।
धान की खेती को लेकर वर्षों के संबंध में भी खटास पैदा हो रहा है। मुख्य कारण यह कि जिनके पास निजी ट्यूबवेल है वह संबंध को सीधे ताक पर रख कर दो टूक में जबाब दे रहे हैं कि कम पानी आने के चलते अपनी ही नर्सरी संडा व रोपाई करना मुश्किल लग रहा है। एेसे में कैसे तुम्हारा हम जिम्मा लें, यदि हमारे ट्यूबेल के भरोसे हैं तो यह आस छोड़ दे। वैसे देखा जाय तो खेती की सिंचाई के नाम पर निजी ट्यूबवेल के अतिरिक्त न कोई सरकारी नलकूप है और न ही इस क्षेत्र के नहर में चार दशक से कभी पानी आया।
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