श्रीकाशी विश्वनाथ कारीडोर के 43 मंदिरों का खंगालेंगे इतिहास, देवालयों की कार्बन डेटिंग
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के गेट संख्या दो-तीन से गंगा तक बनाए जा रहे कारीडोर में तमाम मंदिर आ रहे हैं, इनमें 56 विनायकों में कई विग्रह सहित देवालय भी हैं।
वाराणसी [प्रमोद यादव] । बाबा दरबार से गंगा तट पर ललिता -मणिकर्णिका घाट तक बनाया जा रहा श्रीकाशी विश्वनाथ कारीडोर मंदिरों का संकुल नजर आएगा। परामर्श दात्री कंपनी के सर्वे में अब तक चिह्नित किए गए सभी 43 देवालयों की प्राचीनता व पौराणिकता परखी जाएगी। पौराणिकता तो शास्त्र-पुराण बताएंगे लेकिन इनकी प्राचीनता जानने के लिए कार्बन डेटिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा। इसके लिए अहमदाबाद की एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग ऐंड मैनेजमेंट कंपनी पुरातत्व विशेषज्ञों की टीम उतारेगी।
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के गेट संख्या दो-तीन से गंगा तट तक बनाए जा रहे कारीडोर में तमाम मंदिर आ रहे हैं। इनमें 56 विनायकों में कई विग्रह तो हैं ही पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग से जुड़े देवालय भी हैं। इसमें वास्तविक रूप से पौराणिक व प्रमुख मंदिरों को संरक्षित कर साज- संवार कराई जानी है। लेजर बीम के जरिए इनका महात्म्य व इतिहास-भूगोल भी आने वालों को दिखाना व बताने की योजना है। हालांकि कारोडीर रूट पर घर-बाहर मिल रहे मंदिरों को लेकर अधिष्ठाताओं-पुजारियोंव सेवइतों के अपने-अपने दावे हैं। इसमें कई विग्रहों का प्राकट्य सृष्टि के साथ या काशी व गंगा से भी प्राचीन बताया जा रहा। इससे श्रीकाशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र परिषद प्रशासन के साथ ही परामर्शदात्री कंपनी तक असमंजस में है। ऐसे में तय किया गया कि कार्बन डेटिंग कर देवालयों के प्राचीनता की स्थिति का आकलन कर लिया जाए।
कार्बन डेटिंग : काल निर्धारण की कार्बन-14 डेटिंग विधि का उपयोग पुरातत्व व जीव विज्ञान में जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों के आधार पर जीवन काल-समय चक्र का निर्धारण करने में किया जाता है। वास्तव में जब कार्बन का अंश पृथ्वी में दब जाता है तब कार्बन-14 का रेडियोधर्मिता के कारण ह्रास होता रहता है। कार्बन के अन्य समस्थाकनिकों का वायुमंडल से संपर्क विच्छेद और कार्बन डाईआक्साइड न बनने से उनकेआपसी अनुपात में अंतर हो जाता है। पृथ्वी में दबे कार्बन में समस्थानिकों का अनुपात जानकर उसकेदबने की आयु का पता लगभग शताब्दी में करते हैं।
बोले अधिकारी : कारीडोर देवालय संकुल के रूप में नजर आएगा। इसमें पौराणिक देवालयों को उनकी महत्ता के अनुरुप सजा-संवार कर उनके बारे में लोगों को लेजर बीम के जरिए दिखाया जाएगा। प्राचीनता जानने के लिए कार्बन डेटिंग का उपयोग करना होगा। - विशाल सिंह, सीईओ, श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर व विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद।