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आजमगढ़ के इतिहास में तीसरी बार उपचुनाव, तीन मुख्‍यमंत्रियों का इस सीट से रहा है संबंध

Azamgarh Amazing Facts आजमगढ़ जिले में तीन बार उपचुनाव हुआ है साथ ही तीन मुख्‍यमंत्रियों का भी यहां से संबंध रह चुका है। अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव के अलावा रामनरेश यादव का भी आजमगढ़ लोकसभा से संबंध रहा है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 23 Jun 2022 10:32 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jun 2022 10:32 AM (IST)
आजमगढ़ से तीन मुख्‍यमंत्रियों का संबंध भी रहा है।

आजमगढ़, जागरण संवाददाता। 69-आजमगढ़ लोकसभा सीट के इतिहास में तीसरी बार उपचुनाव हो रहा है। अब तक के हुए चुनाव में पहली बार सत्ता पक्ष को करारी हार का सामना करना पड़ा था, जबकि दूसरे चुनाव में प्रदेश में सत्ताधारी बसपा ने अपनी सीट बचाने में सफलता हासिल की थी। तीसरे उपचुनाव में भी सत्ता और विपक्ष के बीच कांटे की जंग होनी तय है।

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वर्ष 1977 में जनता पार्टी की लहर में आजमगढ़ के दिग्गज रामनरेश यादव कांग्रेस के चंद्रजीत यादव को 1,37,810 मतों से पराजित कर सांसद बने थे, लेकिन उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया, तो सीट खाली हो गई। वैसे अखिलेश और मुलायम सिंह यादव भी प्रदेश के सीएम और यहां के सांसद रह चुके हैं। 1978 में उपचुनाव का एलान हुआ, तो कांग्रेस ने चंद्रजीत की जगह मोहसिना किदवई को मैदान में उतारा। उनके लिए खुद इंदिरा गांधी ने प्रचार की कमान संभाल ली थी। उसका असर यह हुआ कि जनता पार्टी की लहर बेअसर हो गई और मोहसिना किदवई ने जनता पार्टी के रामबचन यादव को करारी शिकस्त दे दी। तब जनता पार्टी के रामबचन यादव को 95,944 मत, जबकि कांग्रेस की मोहसिना किदवई को 1,31,329 मत मिला था।

जनता को दूसरे उपचुनाव का सामना वर्ष 2008 में उस समय करना पड़ा था। जब वर्ष 2004 में बसपा के टिकट पर सांसद बने रमाकांत यादव की नजदीकियां सपा से बढ़ीं और बसपा ने उनकी सदस्यता समाप्त करा दी थी। सपा ने उपचुनाव में रमाकांत को टिकट न देकर पूर्व मंत्री बलराम यादव को मैदान में उतार दिया। इस स्थिति में रमाकांत यादव ने भाजपा का दामन थामा और मैदान में उतर गए। तब सत्ता में रही बसपा ने अकबर अहमद डंपी को उतारकर पूरी ताकत झोंक दी और सीट 52,368 मतों के अंतर जीत ली। उस समय सपा को 1,53,671 मतों के साथ तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था।

अब अखिलेश यादव के इस्तीफा देने के बाद तीसरी बार उपचुनाव हो रहा है। विधानसभा चुनाव के नतीजे पर गौर करें तो सपा के लिए माहौल सुखद है, लेकिन विधान परिषद चुनाव के परिणाम उतने ही दुखदाई रहे हैं।विधानसभा चुनाव में सपा की सरकार भले नहीं बन पाई, लेकिन जिले की सभी 10 सीटें जीतकर इतिहास जरूर रच दिया, लेकिन उसके कुछ ही दिनों बाद हुए विधानपरिषद सदस्य के चुनाव में दसों विधायक मिलकर भी सीट नहीं बचा पाए थे।अब एक बार फिर उपचुनाव हो रहा है और मैदान में भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ, सपा के धर्मेंद्र यादव व बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली के बीच तय होना है कि सपा अपनी सीट बचाने में कामयाब होती है या फिर सत्ता की ताकत निरहुआ का बेड़ा पार करेगी।


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