काशी में जलती चिताओं के बीच भस्म, अबीर और गुलाल की होली
रंगभरी एकादशी पर बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ गौरा का गौना ले आए और दूसरे दिन दोपहर में अपने गणों के बीच महाश्मशान पूरे मन मिजाज के साथ उतर आए।
वाराणसी (जेएनएन)। भूतभावन भगवान शिव की नगरी काशी में मंगलवार को होली का अलग ही रंग दिखा। रंगभरी एकादशी पर बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ गौरा का गौना ले आए और दूसरे दिन दोपहर में अपने गणों के बीच महाश्मशान पूरे मन मिजाज के साथ उतर आए। भूत-पिशाच समेत गणों के साथ चिता भस्म से होली खेली।
इसमें घुलते अबीर-गुलाल ने राग विराग को एकाकार करते हुए जीवन दर्शन के रंग को चटख किया। ढोल, मजीरे और डमरुओं की थाप के बीच भक्तगण जमकर झूमे और हर-हर महादेव के उद्घोष से महाश्मशान गूंजता रहा। इससे पहले घाट पर स्थित बाबा मसाननाथ की पूरी भव्यता के साथ आरती की गई।
भूतभावन भगवान शिव की नगरी काशी में मंगलवार को महाश्मशान मणिकर्णिकाघाट पर राग विराग का मेला सजा। एक ओर धधकती चिताएं तो दूसरी ओर तबले की थाप और सितार की झंकार बिखेरते 51 कलाकार। इनके बीच शिव भक्तों ने चिता भस्म की होली खेली। इसमें अबीर गुलाल मिलाया और अपने औघड़दानी भोले बाबा के गौना का जश्न मनाया। मोक्ष की नगरी और पर्व उत्सवों के शहर बनारस के इस अनुष्ठान ने जीवन यथार्थ का साक्षात दर्शन कराते हुए दुनिया के इस प्राचीन नगर के अनूठेपन का अहसास भी कराया।
वास्तव में काशीवासी रंगभरी एकादशी के मौके पर बाबा का गौना महोत्सव मनाते हैं। मान्यता है इसके ठीक दूसरे ही दिन बाबा भोले शंकर खिंचे हुए अपने गणों के बीच महाश्मशान पर चले आते हैं। इस सनातन परंपरा का ख्याल रखते हुए मणिकर्णिकाघाट पर खड़ी दोपहरी में शिव भक्तों की जुटान हुई। हर-हर महादेव के उद्घोष के बीच 11 सितारों की झंकार, इतने ही जोड़ी तबलों, मृदंग, पखावज और ढोल की थाप पर भूत-पिशाच रूप बने भक्त गण झूमे और चिता भस्म शिव बाबा को समर्पित किया। इसमें अबीर-गुलाल मिला कर धमाल मचाया और राग विराग के इस अनूठे अनुष्ठान में भस्म-गुलाल से एक दूसरे को सराबोर किया।
यह काशीवासियों के लिए सालाना परंपरा का हिस्सा रहा तो विभिन्न स्थानों से दाह संस्कार के लिए आए लोगों और पर्यटकों के लिए अचरज का विषय रहा। इससे पहले घाट की सीढिय़ों के उपर विराजमान श्मशानेश्वर महादेव को भांग-गांजा व मदिरा का विशेष भोग अर्पित किया गया गुलशन कपूर व चैनू साव ने आरती उतारी। संजय झिंगरन, विजय पांडेय, राम बाबू आदि ने संयोजन किया। वास्तव में इस सनातनी परंपरा में पहले औघड़-संन्यासी शामिल होते थे लेकिन बनारसी मन ने इसमें भी शिव बाबा को प्रसन्न करने का जतन निकाला और अब गृहस्थजन भी इसमें भागीदारी करते हैं।