विश्व स्ट्रोक डे : पिछले एक दशक से भारतीय लोगों में बढ़ रहे हैं ब्रेन स्ट्रोक के मामले
रक्त की आपूर्ति में किसी कारण बाधा आती है, तब मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं, इससे ऑक्सीजन की आपूर्ति रुक जाती है, इससे होता है ब्रेन स्ट्रोक।
वाराणसी [वंदना सिंह] । मस्तिष्क में मौजूद सेल्स की जरूरत को पूरा करने के लिए हृदय से मस्तिष्क तक लगातार रक्त पहुंचता रहता हैं। जब रक्त की आपूर्ति में किसी कारण बाधा आती है, तब मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं, क्योंकि इससे ऑक्सीजन की आपूर्ति रुक जाती है। इसका परिणाम होता है 'ब्रेन स्ट्रोक'। यह मस्तिष्क में ब्लड क्लॉट बनने या ब्लीडिंग होने से भी हो सकता है। जब खून की नलिकाएं फट जाती हैं तो इसे ब्रेन हैमरेज और नलिकाओं में ब्लॉकेज होने से स्ट्रोक होता है तो इसे ब्रेन इंफॉर्कट कहते हैं।
ब्रेन स्ट्रोक कोई नई बीमारी नहीं है। आयुर्वेद में हजारों साल पहले ही इस बीमारी का वर्णन चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे कई ग्रंथों में किया गया है। इसके आयुर्वेद पक्ष और चिकित्सा के बारे में जानते हैं चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डॉ अजय कुमार से-
आयुर्वेद ग्रंथों में एकांग वात, पक्षवध, सर्वांगघात, अधरांगघात, अर्दित आदि नामों से ब्रेन स्ट्रोक के विविध रूपों का वर्णन किया गया है। शरीर के आधे या पूरे भाग अथवा किसी अंग विशेष की चेतना व क्रिया का ह्रास होना ही पक्षाघात कहलाता है। नाम से ही स्पष्ट है कि पक्षाघात दो शब्दों से मिलकर बना है- पक्ष + आघात। पक्ष का अर्थ होता है अंग एवं घात का अर्थ होता है नाश या नष्ट होना। यानी शरीर के किसी अंग का घात होना या उसकी प्राकृतिक क्रिया का नष्ट होना ही पक्षाघात कहलाता है।
पक्षाघात के प्रकार : मॉडर्न मेडिसिन में मोनोप्लेजिया, बाईप्लेजिया, टेट्राप्लेजिया जैसे शब्द आयुर्वेद में वर्णित एकांग वात, पक्षाघात, सर्वांग वात, अधरांगवात जैसे रोगों का ही अंग्रेजी रूपांतर है। सिर्फ चेहरे पर लकवे का असर होना अर्दित यानी फेशियल पेरेलिसिस कहलाता है। इसमें सिर, नाक, होंठ, ढोड़ी, माथा, आंखें तथा मुख प्रभावित होता है। एकांगघात या एकांगवात में मस्तिष्क के बाहरी भाग में समस्या होने से एक हाथ या एक पैर कड़क हो जाता है और उसमें लकवा हो जाता है। इस रोग को मोनोप्लेजिया कहते हैं। सर्वांगघात या सर्वांगवात रोग में लकवे का असर शरीर के दोनों भागों पर यानी दोनों हाथ व पैरों, चेहरे और पूरे शरीर पर होता है, इसलिए इसे डायप्लेजिया कहते हैं। अधरांगघात में कमर से नीचे का भाग यानी दोनों पैर लकवाग्रस्त हो जाते हैं। इसे पैराप्लेजिया कहते है। हाल ही में एक रिसर्च के अनुसार पिछले एक दशक में भारतीयों में ब्रेन स्ट्रोक की समस्या बढ़ रही है। रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार देश में हर तीन सेकेंड में कोई न कोई ब्रेन स्ट्रोक का शिकार होता है और हर तीन सेकें ड में एक व्यक्ति ब्रेन स्ट्रोक से मरता है।
स्ट्रोक के कारण :
1. मोटापा।
2. शराब की लत और नशीले पदार्थों का सेवन।
3. फास्ट फूड्स और जंक फूड्स का सेवन।
4. ब्लड प्रेशर।
5. कोलेस्ट्रॉल की समस्या।
6. मधुमेह।
7. अत्यधिक चिंता और अवसाद।
कैसे पता चलता है स्ट्रोक का
ब्रेन स्ट्रोक यानी पक्षाघात के लक्षण अलग-अलग लोगों में अलग-अलग होते हैं। कई मामलों में तो मरीज को पता ही नहीं चलता कि वह ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हुआ है। दिए गए लक्षणों पर गौर करें तो इसे आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है-
1. अचानक बेहोश या संवेदनशून्य हो जाना।
2. चेहरे, हाथ या पैर में, विशेष रूप से शरीर के एक भाग में कमजोरी आ जाना।
3. समझने या बोलने में मुश्किल होना।
4. एक या दोनों आंखों की क्षमता प्रभावित होना।
5. चलने में मुश्किल।
6. चक्कर आना।
7. संतुलन की कमी होना।
8. अचानक गंभीर सिरदर्द होना।
आयुर्वेद में क्या इलाज़ है
हजारों साल पहले से यह रोग आयुर्वेद के ग्रंथों में वर्णित है तो जाहिर है इसकी चिकित्सा भी वर्णित है। आयुर्वेद में इसके लिए औषधियों के अलावा पंचकर्म चिकित्सा भी बताई गई है। वात-व्याधियों में सर्वाधिक कष्टप्रद एवं चिकित्सा की दृष्टि से कष्टसाध्य 'पक्षाघातÓ होता है। यह एक चिरकालिक रोग है, जो अचानक उत्पन्न होता है और इसके कारण रोगी को असह्य कष्ट उठाने पड़ते हैं।
औषधियां:
आयुर्वेद में इसके लिए हजारों औषधियां बताई गई र्हं जिनके सही समय पर कुशल वैद्य के देखरेख में प्रयोग करने से बहुत ही उत्साहजनक परिणाम मिलता है। यहां कुछ औषधियां हैं जिनक ा प्रयोग केवल चिकित्सक की देखरेख में करना चाहिए।
1. एकांगवीर रस।
2. समीरपन्नग रस।
3. वृहत वात चिंतामणि रस।
4. योगेंद्र रस।
5. दशमूल क्वाथ।
6. महारास्नादि क्वाथ।
पंचकर्म चिकित्सा
पक्षाघात की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा विरेचन बताई गयी है। आपको जानकर यह ताज्जुब होगा की उस समय के चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार ही आज भी एलोपेथी चिकित्सा में विरेचन यानी डाईयूरेटिक और परगेटिव दवाओं का प्रयोग किया जाता है।।
क्या करें और क्या नहीं करें
1. नमक, कोलेस्ट्रॉल, ट्रांस फैट और सेचुरेटेड फैट की कम मात्रा वाला और एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन ई, सी और ए की अधिक मात्रा वाला भोजन खाएं।
2. साबुत अनाज खाएं, क्योंकि यह फाइबर के अच्छे स्त्रोत हैं और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में काफी फायदेमंद साबित होते हैं।
3. ओमेगा फैटी एसिड वाले खाद्य पदार्थ जैसे तैलीय मछलियां, अखरोट, सोयाबीन आदि अपने खाने में शामिल करे। यह कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करते हैं और ब्लड प्रेशर के साथ साथ हार्ट की बीमारियों से बचाते हैं।
4. टमाटर और गहरी हरी पत्तेदार सब्जियां जरूर खाएं क्योंकि इनमें एंटी ऑक्सीडेंट की मात्रा बहुत अधिक होती है।
5. बहुत तनाव न लें, मानसिक शांति के लिए ध्यान लगाएं।
6. धूम्रपान और शराब के सेवन से बचें।
7. नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।
8. अपना वजन नियंत्रित बनाए रखें।
9. हृदय रोगी और मधुमेह के रोगी अपने रोग के प्रति सावधान रहे। जिन्हें ये रोग होते हैं उनमें स्ट्रोक का खतरा दोगुना हो जाता है।
10. सोडियम यानी नामक का अधिक मात्रा में सेवन न करें। इससे ब्लड प्रेशर सही रहता है।
11. बहुत तीखे मसालेदार भोजन के सेवन से बचना चाहिए।