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खोज : आरोग्य का सागर, श्याम रंग गाजर, 'काशी कृष्णा' काले गाजर की नई किस्म

अब आपकी थाली में ऐसा गाजर भी आएगा जिसमें आरोग्य का सागर होगा। इसमें मौजूद प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व आपके स्वास्थ्य का भी बेहतर ख्याल रखेगा।

By Vandana SinghEdited By: Published: Sat, 18 May 2019 07:26 PM (IST)Updated: Sun, 19 May 2019 05:51 PM (IST)
खोज : आरोग्य का सागर, श्याम रंग गाजर, 'काशी कृष्णा' काले गाजर की नई किस्म
खोज : आरोग्य का सागर, श्याम रंग गाजर, 'काशी कृष्णा' काले गाजर की नई किस्म

वाराणसी, [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। अब आपकी थाली में ऐसा गाजर भी आएगा, जिसमें आरोग्य का सागर होगा। इसमें मौजूद प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व आपके स्वास्थ्य का भी बेहतर ख्याल रखेगा। कारण कि इसमें एंटी -ऑक्सीडेंट यानी आक्सीकरण रोधी क्षमता अन्य गाजरों की अपेक्षा 18-36 गुना से अधिक है और इसका रंग काला है। इस काले गाजर का नाम 'काशी कृष्णा' है, जिसको विकसित किया है आइआइवीआर (भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान) ने। इस नई प्रजाति को केंद्रीय बीज उपसमिति की ओर से उत्तर प्रदेश राज्य के लिए संस्तुति भी मिल गई है। वैसे इसकी खेती अन्य राज्यों के भी किसान कर सकेंगे। हालांकि इसके लिए उन्होंने अगले साल तक का इंतजार करना होगा।

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इन रोगों में लाभकारी

स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से इस काले गाजर में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व कैंसर, हृदयाघात, सूजन, आंख, तनाव, जीर्णता, मधुमेह आदि में काफी फायदेमंद होगा।

95 दिन में ही हो जाएगा तैयार

''काशी कृष्णा नाम इस लिए रखा गया है कि काशी संस्थान का ट्रेड मार्क है और श्याम रंग को कृष्णा माना जाता है। इसकी पत्तियां हरी, पर्णबृंत आधार से बैगनी तथा शीर्ष पर हरा, जड़ शंकरवाकार, चमकदार काला व जड़ीय-कोर स्वरंगी यानी संपूर्ण गाजर गहरे काले रंग का है। यह बुवाई के 95-105 दिनों के बाद खाने योग्य तैयार हो जाता है। 30-35 दिनों तक खेत में इसकी गुणवत्ता बनी रहती है। इस पर 2012 से अनुसंधान शुरू हुआ था। फरवरी 2019 में स्वीकृति मिल गई।- डा. बीके सिंह, वैज्ञानिक, आइआइवीआर।

जुलाई से किचन गार्डेन के लिए बीज

''बार-बार बैगनी गाजर से क्रासर कर इस काले गाजर को तैयार किया गया है। काशी कृष्णा का बीज जुलाई से छोटे स्तर यानी किचन गार्डेन के लिए संस्थान से मिलने लगेगा। संस्थान के ही बीज उत्पादन ईकाई के पास भेजा जाएगा। इसके बाद अगले साल से व्यवसायिक के लिए जारी कर दिया जाएगा। लाइसेंस वाली कंपनियों को भी इसके लिए मौका दिया जाएगा। अगर इसके अक्टूबर माह में बुआई करते हैं तो मात्र सात किग्रा ही प्रति हेक्टेयर बीज लगेगा।

- डा. जगदीश सिंह, निदेशक, आइआइवीआर।

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