एक सुरमई शाम को जब बनारसी ठहाके से गूंज उठा लंदन का Birmingham Palace
मई 1965 की एक सुरमई शाम लंदन बरतानवी हुकुमत की बुलंद हस्ती के मरकज बर्मिंघम पैलेस का मेहमानखाना अचानक ही गूंजा उठा एक पुरजोश ठहाके से।
वाराणसी [कुमार अजय]। मई 1965 की एक सुरमई शाम लंदन बरतानवी हुकुमत की बुलंद हस्ती के मरकज बर्मिंघम पैलेस का मेहमानखाना अचानक ही गूंजा उठा एक पुरजोश ठहाके से। भद्रता की अभिजात्यिय सोच के चलते प्राय: संजीदगी का लबादा ओढ़े रहने वाले और इस आत्म प्रवचंना के चलते मुस्कराने में भी कंजूसी बरतने वाले वहां मौजूद अंग्रेजों के लिए यह एक अनूठा अनुभव था। दरअसल, ठेठ बनारस मार्का यह अटठाहस एक बनारसी के कंठ से फूटा था, वहां राजकीय अतिथि के तौर पर मौजूद दुनिया भर के कलमकारों के बीच बेलौस मिजाजी के साथ शिरकत कर रहे मोहनलाल गुप्त (भईया जी बनारसी) के अक्खड़ी अंदाज से ही वर्षों से तारी पैलेस का बोझिल सन्नाटा टूटा था।
फिर तो पूछना क्या? सारे प्रोटोकाल तोड़कर महफिल की मेजबान प्रिंस एलिजाबेथ भी गंभीरता का चोला छोड़कर काफी देर तक चहकती खिलखिलाती रहीं। ऐसा बनारस... तो वैसा बनारस को लेकर अपनी तमाम जिज्ञासाओं का समाधान पाने के लिए भईया जी से बतियाती रहीं। कभी प्रश्न दुनिया की प्राचीनतम किंतु जीवित नगरी वाराणसी के अल्हड़ मिजाज की तो कभी सवाल बारहों महीने उत्सवी रंगों में नहाए रहने वाले शहर के रस्मों रिवाज की। अतिथि तो बहुत थे किंतु महारानी को इस बनारसी कलमकार का कबीराना अंदाज भा गया। अपनी फितरत के मुताबिक बनारस सात समंदर पार भी पूरे रंगीनियों के साथ इस शाही महफिल पर भी छा गया।
शास्त्री जी को लिखी पाती दस्तावेज बन गई
हास्यरसावतार के रूप में ख्यात भईया जी बनारसी जब गंभीर विषयों पर लिखने के लिए कलम उठाते थे तो प्रखर विचारों के उद्घोषक बन जाते थे। अपनी पातियों (पत्रों) के लेखन के लिए मशहूर भईया जी बनारसी की ताशकंद समझौते (1965 की लड़ाई के बाद) के पूर्व तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम लिखी उनकी पाती आज भी ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में सुरक्षित है। कोई शक नहीं की यह चिट्ठी उस समय तवज्जो पाती तो आज मनबढ़ पाकिस्तान के भूगोल की तस्वीर अलग ही नजर आती।
बदल दिया उनवान
भईया जी के बेटे व उनकी साहित्यिक विरासत के अलमबरदार राजेंद्र गुप्ता बताते हैं एक रोचक किस्सा धूम मचाऊ फिल्मी गीत खईके पान बनारस वाला... के उनवान से जुड़ा। मशहूर गीतकार अंजान भईया जी की बैठकियों के नियमित बैठकबाज थे। एक दिन लिख के ले आए, खाटी बनारसी अंदाज का एक गीत। खईके पान बनारस वाला... जिसमें जालिम जर्दा डाला...। अलमस्त बनारस के नाम के साथ जुल्म और जालिम का कोई मेल नहीं बैठता। इस तर्क के साथ भईया जी ने जालिम जर्दा डाला की जगह खुल जाए बंद अकल का ताला जोड़कर गीत का उनवान बदला और गीत को बेजोड़ बना डाला।