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BHU Webinar ज्योतिष का लक्ष्‍य लोगों का मार्गदर्शन करना और उनके जीवन का उद्देश्य बताना

महामारी के बीच बीएचयू द्वारा आयोजित एक वेबिनार में शनिवार को ज्योतिष की प्रासंगिकता पर चर्चा-परिचर्चा के लिए देश भर से ज्योतिर्विद और शिक्षा जगत के विशेषज्ञ जुटे थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 16 May 2020 10:36 PM (IST)Updated: Sun, 17 May 2020 01:02 AM (IST)
BHU Webinar ज्योतिष का लक्ष्‍य लोगों का मार्गदर्शन करना और उनके जीवन का उद्देश्य बताना
BHU Webinar ज्योतिष का लक्ष्‍य लोगों का मार्गदर्शन करना और उनके जीवन का उद्देश्य बताना

वाराणसी, जेएनएन। महामारी के बीच बीएचयू द्वारा आयोजित एक वेबिनार में शनिवार को ज्योतिष की प्रासंगिकता पर चर्चा-परिचर्चा के लिए देश भर से ज्योतिर्विद और शिक्षा जगत के विशेषज्ञ जुटे थे। वर्तमान संदर्भ में ज्योतिष की प्रासंगिकता विषय पर इस दो दिवसीय ज्योतिष राष्ट्रीय संगोष्ठी आरंभ करते हुए ज्योतिष विभाग, बीएचयू के अध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय ने कहा कि ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा प्राच्य विज्ञान है जो ग्रह, नक्षत्र, राशियों के मुताबिक मानव जीवन और प्रकृति पर पडऩे वाले वैश्विक या सामूहिक फलों का सटीक विवेचन अति प्राचीन काल से करता आ रहा है। मुख्य अतिथि यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. धीरेंद्र पाल सिंह ने कहा कि शास्त्र सर्वदा प्रासंगिक होता है। ज्योतिष का उद्देश्य लोगों का मार्गदर्शन करना और उनके जीवन का उद्देश्य बताना है। ज्योतिषी भगवान नहीं है और न ही किसी का प्रारब्ध बदल सकते हैं अपितु वह सही मार्गदर्शन कर सकता है। जिससे भटके व्यक्ति को सही दिशा मिल सके।

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आराधना ही एक मात्र उपचार

विशिष्ट वक्ता ज्योतिष विभाग, केंद्रीय संस्कृत संस्थान, मुंबई के विभागाध्यक्ष प्रो. भारत भूषण मिश्र ने बताया कि महाप्रलय काल में महाकाली की आराधना ही एकमात्र उपचार है। अन्य विशिष्ट अतिथि केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ के प्रो. श्रीपाद भट्ट ने ज्योतिष के सर्वविध उपयोग पर बल दिया। उत्तराखंड संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी जी ने कहा कि प्रकृति के प्रकोप से फैलने वाली बीमारियों को महामारी कहते हैं। कुछ लोग शास्त्र विरुद्ध आचरण करते हुए समाज तथा शास्त्र दोनों की क्षति कर रहे हैं, जिससे इस शास्त्र का स्वरूप भ्रामक रूप में प्रचलित होता हुआ अपने मूल उद्देश्य से पृथक होता जा रहा है। अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. रामचंद्र पांडेय ने कहा कि अप्राकृतिक उपद्रवों व उत्पातों के बारे में वराहमिहिर की अवधारणा एकदम स्पष्ट है। वृहत संहिता के उत्पाताध्याय में कहा जाता है कि मनुष्यों के अविनय से पाप इकट्ठे होते हैं, उन पापों से उपद्रव होते हैं। संचालन डा. सुभाष पांडेय, स्वागत प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय, धन्यवाद प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री ने किया।


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