साइकिल पर पिता को दरभंगा तक लाने वाली लड़की के पिता का किरदार निभाएंगे अभिनेता संजय मिश्रा
वाराणसी में फिल्म की शूटिंग के लिए आए अभिनेता संजय मिश्रा ने बताया कि वह साइकिल पर पिता को दरभंगा तक लाने वाली लड़की के पिता का किरदार निभाएंगे।
वाराणसी, [वंदना सिंह]। टेलीविजन के हिट शो आॅफिस-आॅफिस से अपनी खास जगह दर्शकों के मन में बनाने वाले अभिनेता संजय मिश्रा किसी परिचय के मोहताज नहीं। सौ से ज्यादा फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले संजय कभी फिल्म गोलमाल में लोगों को हंसाते-हंसाते लोट पोट कर देते हैं, तो कभी फिल्म आंखो देखी के माध्यम से अमिट छाप छोड़ते हैं। संजय इन दिनों बनारस में हैं और अपनी फिल्म वो तीन दिन की शूटिंग कर रहे हैं। जागरण से खास बातचीत में संजय ने अपने जीवन से जुड़े कई पहलुओं पर प्रकाश डाला।
अगस्त में तय की गई शूटिंग, जानकी खुद फिल्म में करेगी एक्टिंग
संजय ने बताया लॉकडाउन के दौरान एक लड़की अपने पिता को साइकिल पर बैठाकर दरभंगा तक ले गई थी। इस पर फिल्म की तैयारी हो गई है और अगर माहौल सही रहा तो अगस्त में इसकी शूटिंग तय की गई है। इस फिल्म में लड़की के पिता संजय बने हैं और लड़की का किरदार असल पात्र यानी जानकी ही कर रही है जो अपने पिता को लेकर आई थी। वो खुद फिल्म में एक्टिंग करेगी। संजय ने बताया कि मेरा फोकस ऐसी फिल्मों में रहता है जो मीनिंग फुल हो। इसके अलावा कोई संदेश दे जाए और दिल को छू जाए।
होटल में अपना खाना खुद बना रहे हैं संजय
दरअसल मार्च में संजय की फिल्म की शूटिंग बनारस में हो रही थी जो लॉकडाउन के कारण रुक गई। अभी एक सप्ताह तक चुनार व आस पास के क्षेत्रों में संजय के ऊपर दृश्य फिल्माए जाएंगे। संजय ने बताया कि अगर लॉकडाउन न रहा तो एक सप्ताह में शूटिंग पूरी करके वापस लौट जाऊंगा। संजय बनारस में अस्सी स्थित जिस होटल में ठहरे हैं वहां पर अपना खाना खुद बनाते हैं। संजय ने बताया कि इतनी अच्छी सब्जियां मिल रही हैं कि मुझे पसंद है खुद से खाना पकाना। इसका आनंद ही कुछ और होता है।
बनारस के मिजाज से बचपन से वाकिफ हैं संजय
संजय ने बताया कि बनारस के मिजाज से बचपन से वाकिफ हूं। यहां के कई परिवारों से जुड़ा हूं जिसमें एक पोली चाचा हैं, जिनके बड़े भाई मेरे पिता के दोस्त थे। बनारस की मस्ती तो मेरे अंदर भी भरी हुई है। यहां की गलियों में घूमा-फिरा हूं। मुंबई में कोरोना पर उन्होंने कहा कि मुंबई के हालात ज्यादा खराब हो रहे थे। मैं शूटिंग के लिए निकल रहा था तो बच्चों को उत्तराखंड में उनके नानी के यहां भेजकर आया हूं ताकि बेफिक्र होकर काम कर सकूं। वो जगह सुरक्षित है, वैसे भी मुंबई के बच्चे प्रकृति के करीब रहें तो अच्छा रहता है।
बोले अभिनेता, कभी ढाबे पर आमलेट और मैगी बनाता था
कोरोना के मरीजों की बढ़ती संख्या पर संजय ने कहा कि हमारी पिछली कई पीढिय़ों ने ऐसी चीज नहीं देखी थी और न ही सोची होगी। अगर पहले कभी ऐसा हुआ होता तो लोग समझ पाते कि इसका क्या उपाय है। किसी को समझ ही नहीं आ रहा है। तीन महीने लॉकडाउन के बाद लोग बाहर निकलने लगे अपने काम के लिए। सब्जी बाजार में भीड़ लगने लगी। हम शारीरिक दूरी जैसी चीजों के आदी नहीं है। जनसंख्या भी ज्यादा है। कोरोना ने सभी को परेशान कर दिया है। पिता का जिक्र आने पर संजय ने बताया कि पिता के निधन के बाद बहुत दुखी था। कुछ समय के लिए ऋषिकेश चला गया था। वहां ढाबे पर आमलेट और मैगी बनाता था। उस वक्त अपने आपसे संघर्ष कर रहा था। पिता के जाने के बाद दुनिया समझ में आने लगी कि पिता का जाना कष्टदायक होता है। मैं जिस वातावरण में रहता हूं, ऐसे में कुछ-कुछ समय के लिए उस वातावरण से गायब हो जाता हूं। इसमें सुकून मिलता है। बनारस में गंगा घाट किनारे का दृश्य ही अनुपम है शूटिंग के बाद यहीं आकर भोजन बनाकर खाता हूं और इस अनुपम द़श्य का आनंद लेता हूं।