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BHU National Seminar : कार्बन डेटिंग से मिले काशी के 3800 वर्ष पुराने साक्ष्य, देश भर के विद्वानों की हुई जुटान

राजघाट के पास वर्ष 2015 में हुए पुरातात्विक उत्खनन में वहां मिले साक्ष्यों की कार्बन डेटिंग से पता चला कि ये 3800 वर्ष प्राचीन हैं। इससे स्पष्ट होता है कि यहां 3800 वर्ष पूर्व भी मानव सभ्यता विकसित रूप में थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 08 Aug 2022 09:49 PM (IST)Updated: Mon, 08 Aug 2022 09:49 PM (IST)
BHU National Seminar : कार्बन डेटिंग से मिले काशी के 3800 वर्ष पुराने साक्ष्य, देश भर के विद्वानों की हुई जुटान
बीएचयू स्थित इतिहास विभाग में संगोष्ठी में विचार व्यक्त करती प्रो. विभा त्रिपाठी ।

जागरण संवाददाता, वाराणसी : राजघाट के पास वर्ष 2015 में हुए पुरातात्विक उत्खनन में वहां मिले साक्ष्यों की कार्बन डेटिंग से पता चला कि ये 3800 वर्ष प्राचीन हैं। इससे स्पष्ट होता है कि यहां 3800 वर्ष पूर्व भी मानव सभ्यता विकसित रूप में थी। इसके पूर्व मिले साक्ष्य काशी को 2800-2900 वर्ष पूर्व का बताते थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व संयुक्त महानिदेशक व राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली के पूर्व कुलपति डा. बीआर मणि ने सोमवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में आयोजित ‘काशी : अतीत और वर्तमान’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को बतौर सारस्वत अतिथि संबोधित कर रहे थे।

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उन्होंने बताया कि काशी की अब तक की यह प्रामाणिक आयु सारनाथ के उत्खनन में प्राप्त धरोहरों से भी पुष्ट होती है। डा. मणि ने काशी के इतिहास की प्राचीनता में और भी नए तथ्य जोड़ने वाले सारनाथ, अकथा, बभनियांव, माटीगांव, अनेई इत्यादि पुरास्थलों से मिले प्रमाणों को भी महत्वपूर्ण करार दिया। कहा कि इन स्थलों को संरक्षित कर वहां और भी शोध पूर्ण उत्खनन हों तो पुराने इतिहास के नए तथ्य उद्घाटित हो सकते हैं।

विशिष्ट वक्ता प्रो. जेएन पाल ने काशी के समीप के पुरातात्त्विक स्थलों की ऐतिहासिकता को रेखांकित किया। कहा कि, किसी भी प्रसिद्ध शहर की अति प्राचीनता का सटीक पता इसलिए नहीं लग पाता कि वहां के केंद्रीय भाग पर अब घनी आबादी बस चुकी है। जब हम शहर के बाहरी क्षेत्रों में आबादी के चिह्न ढाई हजार-तीन हजार वर्ष पूर्व पाते हैं तो वहीं कुछ दूरी पर खोदाई में धान व अन्य फसलों के 7-8 हजार वर्ष पुराने अवशेष मिल जाते हैं। प्रो. देवी प्रसाद दूबे ने अभिलेखों के आधार पर काशी की ऐतिहासिकता रेखांकित की। प्रो. एके सिंह ने विभाग द्वारा बभनियांव, वाराणसी एवं माटीगांव, चंदौली में महत्वपूर्ण उत्खननों की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। बताया कि वहां उत्तर भारत का अब तक का सबसे प्राचीन शिवमंदिर मिला है। संयोजक प्रो. ओंकारनाथ सिंह ने विषय की महत्ता पर प्रकाश डाला। प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. डीपी तिवारी ने किया। प्रथम दिन दो व्याख्यान व दो अकादमिक सत्र हुए। इनमें 20 शोधपत्र भी पढ़े गए।

आरंभ में संगोष्ठी का शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रदेश सरकार के स्टांप एवं शुल्क मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रवींद्र जायसवाल ने महामना की प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन से किया। उन्होंने ‘काशी महोत्सव’ जैसे कार्यक्रम में विभाग की सक्रिय सहभागिता का आह्वान किया। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में प्रसिद्ध भोजपुरी विद्वान हरीराम द्विवेदी भी थे। अध्यक्षता कला संकाय प्रमुख प्रो. विजय बहादुर सिंह, संचालन आयोजन सचिव डा. प्रभाकर उपाध्याय, धन्यवाद ज्ञापन प्रो. दिनेश कुमार ओझा व स्वागत विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल कुमार दुबे ने किया।


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