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मेडिकल इमेजिंग तकनीक को एडवांस बनाएगा बीएचयू, मिलेगी सूक्ष्म गड़बडि़यों की सटीक जानकारी

पॉजिट्रॉन उत्सर्जन टोमोग्राफी (पीईटी) ऐसी परमाणु चिकित्सा इमेजिंग तकनीक है जो शरीर की कार्यात्मक प्रक्रियाओं की त्रिआयामी छवि बनाती है।

By Edited By: Published: Fri, 09 Aug 2019 02:01 AM (IST)Updated: Fri, 09 Aug 2019 09:41 AM (IST)
मेडिकल इमेजिंग तकनीक को एडवांस बनाएगा बीएचयू, मिलेगी सूक्ष्म गड़बडि़यों की सटीक जानकारी
मेडिकल इमेजिंग तकनीक को एडवांस बनाएगा बीएचयू, मिलेगी सूक्ष्म गड़बडि़यों की सटीक जानकारी

वाराणसी, जेएनएन। पॉजिट्रॉन उत्सर्जन टोमोग्राफी (पीईटी) ऐसी परमाणु चिकित्सा इमेजिंग तकनीक है, जो शरीर की कार्यात्मक प्रक्रियाओं की त्रिआयामी छवि बनाती है। एक्सरे, सीटी स्कैनिंग, एमआरआइ, अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी आदि में प्रयुक्त इस तकनीक के परिणाम में डिवाइस के स्वरूप के कारण संशय उत्पन्न होता है, जिसे बीएचयू के वैज्ञानिकों ने दूर कर दिया है। बेलनाकार चार्ज पिकअप पैनल और रेजिस्टिव प्लेट चैंबर (आरसीपी) डिटेक्टर अब शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाली सूक्ष्म गड़बडि़यों की सटीक जानकारी देंगे।

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ढाल सकते किसी भी आकार में : भौतिक विज्ञान विभाग की टीम ने प्रो. व्यंकटेश सिंह के नेतृत्व में प्लास्टिक बेस की बजाय सिरेमिक फाइबरशीट का प्रयोग कर चार्ज पिकअप पैनल बनाने में सफलता हासिल की है। लचीला होने के कारण इसे किसी भी आकार में ढाला जा सकता है। आकार के हिसाब से आरसीपी डिटेक्टर फिट किए जाने पर यह हर तरह के रेडियो एक्टिव सिग्नल पकड़ने में पूर्णत:सक्षम है।

जर्नल ऑफ इंस्ट्रूमेंट में छपा शोध :  शोध को यूरोपियन जर्नल जे-आइएनएसटी (जर्नल ऑफ इंस्ट्रूमेंट) में प्रकाशित भी किया जा चुका है। प्रो. सिंह के मुताबिक शरीर पर मैग्नेटिक फील्ड व रेडियो तरंगों का प्रयोग करने के लिए एक्स-रे, अल्ट्रा साउंड, सोनोग्राफी सीटी स्कैनिंग के साथ एमआरआइ मशीन में अब बेलनाकार या अन्य आकार के चार्ज पिक-अप पैनल का प्रयोग होने से यह शरीर के किसी भी भाग की छोटी से छोटी गड़बड़ी पूरी शुद्धता के साथ पकड़ लेगी। इस तकनीक से जांच वर्तमान डिटेक्टर के मुकाबले सस्ती होगी।

इनकी होती एमआरआइ स्कैनिंग : एमआरआइ स्कैन का प्रयोग मस्तिष्क, हड्डियों व मासपेशियों, सॉफ्ट टिश्यू, चेस्ट, ट्यूमर-कैंसर, स्ट्रोक, डिमेंशिया, माइग्रेन, धमनियों के ब्लॉकेज व जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाने में होता है। पहली बार एमआरआइ का प्रयोग वर्ष 1977 में कैंसर की जाच में हुआ था।

इस तरह बनती है इमेज : शरीर में सबसे अधिक पानी होता है। पानी केहर मॉलिक्यूल में दो हाइड्रोजन प्रोटॉन होते हैं। एमआरआइ स्कैनिंग के दौरान पावरफुल मैग्नेटिक फील्ड बनता है। हाइड्रोजन के प्रोटॉन मैग्नेटिक फील्ड से गुजरकर अंगों की इमेज बनाते हैं।

बोले वै‍ज्ञानिक : यह डिवाइस मेडिकल इमेजिंग तकनीक को एडवांस बनाने के साथ वर्तमान जांच के मुकाबले सस्ती भी कर देगी। देश में चिकित्सीय जरूरतों को देखते हुए यह एक महत्वपूर्ण खोज है। - प्रो. व्यंकटेश सिंह, भौतिकी विज्ञान विभाग-बीएचयू

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