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बांग्‍लादेश में स्वतंत्रता के महाउत्सव में बनारस के भइया जी को जब ढाका में मिली मशीन गनों की सलामी

जिस सितारा होटल में दोनों मेहमान ठहरे थे वहां का पता ठिकाना लेकर मुक्ति वाहिनी के सड़ियल लड़ाके भी होटल जा पहुंचे। उन्होंने फौजी अंदाज में सलामी देने के लिए अपनी मशीन गनों के मुंह खोल दिए। गोलियों की तड़तड़ाहट से होटल परिसर गूंज उठा।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 09 May 2021 04:31 PM (IST)Updated: Sun, 09 May 2021 04:31 PM (IST)
बांग्‍लादेश में स्वतंत्रता के महाउत्सव में बनारस के भइया जी को जब ढाका में मिली मशीन गनों की सलामी
फौजी अंदाज में सलामी देने के लिए अपनी मशीन गनों के मुंह खोल दिए।

वाराणसी, कुमार अजय। बनारस के दुलरुओं में शामिल प्रसिद्ध व्यंग्यकार व प्रखर पत्रकार मोहनलाल गुप्ता (भईया जी बनारसी) की बेबाक कलम के मुरीद भारत में तो थे ही देश की सरहदों के पार भी उनके चाहने वालों की कमी न थी। 70 के दशक में पड़ोसी राष्ट्र बंगलादेश जब पाकिस्तान की दमनकारी सत्ता के खिलाफ संघर्ष कर रहा था, तब वहां की विप्पलवी मुक्ति वाहिनी तथा उसके नायक बंग बंधु मुजीबुर्रहमान रहमान के समर्थन में बाद में भारत की सैन्य वाहिनी के मदद से पाकिस्तानी आक्रांताओं को परास्त कर जब पूर्वी पाकिस्तान सड़ा-गला चोला उतार फेंक नवोदित राष्ट्र बंगलादेश दुनिया के नशे पर उबर कर सामने आया तो मुजीबुर्रहमान उसके प्रथम प्रधानमंत्री बने।

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स्वतंत्रता के महाउत्सव में भागीदारी के लिए उस समय बंग बंधु ने देश दुनिया के जिन गणमान्य गणों को आमंत्रित किया उनमें बनारस से भैया जी बनारसी और प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट एम कांजिलाल के नाम भी शामिल थे। भईया जी के पुत्र तथा कवि राजेंद्र गुप्त पिता के मुख से सुने उस यादगार यात्रा के संस्मरणों का जिक्र करते हुए बताते हैं कि इस राजकीय यात्रा में वहां की सरकार ने जो गर्भजोश खैरमकदम किया वह तो अपनी जगह वहां की सामूहिक जनशक्ति का प्रतिनिधित्व कर रही मुक्तिवाहिनी के जाबांजों द्वारा किया गया बारूदी स्वागत इन दोनों मेहमानों के लिए यादगार बन गया। हुआ यह कि जिस सितारा होटल में दोनों मेहमान ठहरे थे वहां का पता ठिकाना लेकर मुक्ति वाहिनी के सड़ियल लड़ाके भी होटल जा पहुंचे। उन्होंने फौजी अंदाज में सलामी देने के लिए अपनी मशीन गनों के मुंह खोल दिए। गोलियों की तड़तड़ाहट से होटल परिसर गूंज उठा।

भइया जी के कहे के अनुसार साथ में ठहरे बंगाली बाबू यानी कांजिलाल जी के तो जैसे देवता कूच कर गए। फिर खिड़कियां बंद करने के लिए इधर-उधर दौड़ने लगे। मैं भी पल भर के अचंभित हुआ पर खिड़की के बाहर से जब जय हिंद और जय बंग के नारे सुनाई दिए तो पता चला कि यह भी एक हमारे स्वागत का एक अलग अंदाज था। दूसरे दिन राजकीय समारोह में औपचारिक स्वागत के अलावा शाम को बंग बंधु सपत्निक हमारे होटल आए और गले मिलकर आगमन के लिए आभार जताया। वे जितने देर रहे उतने ही देर में कांजिलाल ने उनका स्कैच (रेखा चित्र) कैनवास पर उतार कर उन्हें वहीं भेंट कर दिया। बंग बंधु मानों भौचक्के रह गए और हम दोनों के साथ बनारस के बंगाली टोला के बारे में भी पूछा और काफी देर तक बनारस की संस्कृति और जीवन दर्शन पर बतियाते रहे।


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