पीपीपी से सुविधाओं की पहुंच हो सकती है आसान, अभी मरीजों को मिलती है लंबी डेट
चिकित्सा विज्ञान संस्थान को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को एम्स जैसा स्टेटस मिल सकता है, उम्मीद है कि पीपीपी मॉडल अपनाने से सेवाओं में सुधार होगा।
वाराणसी (जेएनएन) । बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली (एम्स) जैसा स्टेटस मिलने की बात हो रही है। इसके लिए नौ अक्टूबर को केंद्रीय टीम जीबी (गवर्निंग बाडी) के सदस्यों के साथ बैठक करने वाली है। सोमवार को टीम ने अस्पताल का मुआयना किया। एम्स सरीखी सुविधाओं के परिप्रेक्ष्य में यदि जन सरोकार को देखा जाय तो यह परिणाम मिलता है कि मरीजों के लिए बनारस हेल्थ हब से कम नहीं होगा। वहीं पीपीपी मॉडल से मिलने वाली सुविधाओं से मरीजों तक पहुंच आसान बना रही है।
किसी भी चिकित्सा संस्थानों में समय की बहुत कीमत है। यदि समय पर जांच नहीं हो पाती है तो फिजिशियन या सर्जन का हाथ रुक जाता है। सरकार द्वारा संचालित मेडिकल संस्थानों में जनदबाव के कारण यह परेशानियां अक्सर देखी जा सकती हैं। सरकार की सीमित जनशक्ति एवं संसाधन असीमित जनदबाव को झेल नहीं पाते। परिणाम होता है मरीज के परिजन परेशान होकर सरकार को कोसते हुए इधर उधर भटकते हैं। सर सुंदरलाल अस्पताल में अल्ट्रा साउंड या एमआरआइ जांच की ही बात करें तो मरीजों को लंबी डेट दी जाती है। उन जांचों की इतनी लंबी सूची है कि कभी-कभी मरीज का नंबर आते-आते मर्ज का स्वरूप और बिगड़ जाता है।
वहीं एसएस अस्पताल में पीपीपी मॉडल से सीटी स्कैन की सुविधा मुहैया कराई जा रही है, जिसका लाभ मरीजों को तत्कालिक मिल रहा है। यहां पर इमरजेंसी व आइपीडी को छोड़कर ओपीडी में ही प्रतिदिन पांच हजार से अधिक मरीज आते हैं। बावजूद इसके सीटी स्कैन जांच उसी दिन बिना लंबी लाइन लगाए ही हो जाती है। यही स्थिति ट्रामा सेंटर की भी है। यहां पर मरीजों को पीपीपी मॉडल पर ही जांच की सुविधाएं मिल रही हैं। साथ ही ट्रामा सेंटर में पैरा मेडिकल, नर्सिंग स्टाफ, सफाई व्यवस्था आदि सब पीपीपी माडल पर है। इसकी वजह से मरीजों को त्वरित सेवा सरकारी मूल्य पर मिल रही है।