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सालाना 1500 करोड़ रुपये वाला बनारसी वस्त्र उद्योग कारोबार अब अर्थ को देगा रफ्तार, बुनकरों को होगा लाभ

डेढ़ दशक तक जूझने के बाद बनारसी वस्त्र उद्योग में रंगत लौट आई। पिछले चार साल में कारोबार में 32 फीसद वृद्धि दर्ज की गई जो इसके पटरी पर लौटने का बढिय़ा संकेत था।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 09 Jul 2020 11:32 PM (IST)Updated: Fri, 10 Jul 2020 02:37 AM (IST)
सालाना 1500 करोड़ रुपये वाला बनारसी वस्त्र उद्योग कारोबार अब अर्थ को देगा रफ्तार, बुनकरों को होगा लाभ

वाराणसी, जेएनएन। डेढ़ दशक तक जूझने के बाद बनारसी वस्त्र उद्योग में रंगत लौट आई। पिछले चार साल में कारोबार में 32 फीसद वृद्धि दर्ज की गई, जो इसके पटरी पर लौटने का बढिय़ा संकेत था। पहले की तुलना में लॉकडाउन से पहले तक बनारसी साडिय़ों के खूब आर्डर थे। हैंडलूम बुनकरों को मेहनताना भी ठीक मिलने लगा था। मगर महामारी के दौर में कारोबार पूरी तरह ठप हो चुका है। सरकारी मदद भी प्रभावी साबित नहीं हो रही है। बुनकरों के मुताबिक बाजार में बनारसी वस्त्र उत्पाद की मांग होने व नए आर्डर मिलने पर कारोबार एक बार फिर पटरी पर लौटना शुरू हो जाएगा।

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पूर्वांचल निर्यातक संघ के अध्यक्ष जुनैद अहमद अंसारी बताते हैं कि प्योर सिल्क, कॉटन और कढ़ुआ साडिय़ों के कारोबार में लॉकडाउन से पहले पिछले चार साल में लगभग 32 फीसद बढ़ोत्तरी दर्ज की गई, जिसका सीधा फायदा बुनकरों को मिल रहा था। वहीं बिचौलियों और नकली बनारसी साड़ी से अब भी हथकरघा बुनकर जूझ रहे हैं। लगभग 1500 करोड़ रुपये के सालाना कारोबार वाले इस घरेलू उद्योग में लगभग छह लाख लोग प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जीविकोपार्जन कर रहे हैं। जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) बौद्धिक संपदा विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत के अनुसार 2007 में बनारसी साडिय़ों को जीआई टैग प्रदान किए जाने के लिए आवेदन किया गया था। चार सितंबर 2009 में बनारसी साडिय़ों का जीआई पंजीकरण हुआ। इसके बाद कारोबार पटरी पर लौटने लगा। 150 रुपया रोजाना पाने वाले हथकरघा बुनकर सामान्य दिनों में अब 500 तक कमा रहे हैं।


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