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पूर्वांचल के फल बाजार में बढ़ी बलिया जिले के केले की पैठ, भुसावल के केले को मिली टक्कर

समय के साथ अब खेती के तौर तरीके भी बदल गए हैं। बलिया की जिस मिट्टी पर किसान केवल रबी और खरीफ की खेती के बारे में सोचते थे अब उसी मिट्टी पर सैकड़ों किसान केले की खेती कर आत्मनिर्भर बनने की राह खोज लिए हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 18 Sep 2021 02:56 PM (IST)Updated: Sat, 18 Sep 2021 02:56 PM (IST)
पूर्वांचल के फल बाजार में बढ़ी बलिया जिले के केले की पैठ, भुसावल के केले को मिली टक्कर
समय के साथ अब केले की खेती के तौर तरीके भी बदल गए हैं।

बलिया [लवकुश सिंह]। समय के साथ अब खेती के तरीके भी बदल गए हैं। बलिया की जिस मिट्टी पर किसान केवल रबी और खरीफ की खेती के बारे में सोचते थे, अब उसी मिट्टी पर 300 से अधिक किसान केले की जी 9 प्रजाति की खेती कर आत्मनिर्भर बनने की राह खोज लिए हैं। शुरूआत में कम संख्या में किसान इसकी खेती किए, लेकिन अब फैलाब पूर्वांचल के कई जिलोें तक बढ़ गया है। यहां भुसावल की तरह बड़े आकार के केले का उत्पादन होने लगा है, यह ज्यादा मीठा व स्वादिष्ट भी है। हालांकि, अभी हाजीपुर की तरह चिनिया केले का उत्पादन तो नहीं हो रहा है, लेकिन आने वाले समय में किसान बहुत जल्द इस वेराइटी को आजमाएंगे। अधिकांश किसान अनुबंध पर खेत लेकर ही इसकी फसल तैयार करते हैं। केला अब बिहार के सीवान, गोपालगंज, छपरा, बलिया, मऊ, गाजीपुर और वाराणसी तक जा रहा है।

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500 एकड़ में हुई है केली की खेती : बलिया के बैरिया तहसील अब केला का बड़ा हब बन चुका है। यहां के शोभा छपरा, शंकरनगर, टोला फकरूराय, बकुल्हां, दया छपरा सहित अन्य इलाकों में 500 एकड़ में केले की खेती हुई है। किसान तीन साल के लिए जमींदारों से अनुबंध पर यह खेत लेते हैं। इस खेती से अभी तक लगभग 300 किसान जुड़े हैं। हर साल संख्या बढ़ती जा रही है।

कहां से मंगाते बीज : द्वाबा की मिट्टी पर महाराष्ट्र के जलगांव से केले का बीज मंगाया जाता है। यह बीज कंद और पौधा दोनों तरह का उपलब्ध होता है। यहां केवल जी-9 प्रजाति के केले की खेती होती है। बोआई जून से जुलाई तक हो जाती है।

कितनी लागत, कितना मुनाफा : केले की खेती करने वाले किसानों से बात करने पर बताया कि इस समय प्रति बीघा लागत लगभग एक लाख है। एक बीघा में लगभग 850 पौधे लगाए जाते हैं। 12 से 13 माह में फल तैयार हो जाता है। एक पौधा में 12 से 13 दर्जन (घवद) केले का उत्पादन हो रहा है। पिछले सीजन में एक घवद ढाई से साढ़े तीन सौ रुपये तक बिक्री हुआ था। बाजार अच्छा रहा तो मुनाफा भी डेढ़ से दो लाख प्रति बीघा हो जाता है।

सरकार करे विचार तो कम हो सकती लागत : सिताबदियारा के केला किसान मनोज सिंह, बीरबहादुर यादव, सत्येंद्र सिंह, रेवती गायघाट के नीतीश पांडेय, सुनील पांडेय, टोला बाजराय के गांधी सिंह, शोभाछपरा के टुनटुन सिंह आदि से केली की खेती पर बात करने पर वे बताते हैं कि किसानों की लागत कम हो सकती है, यदि सरकार अनुबंध पर खेती करने वाले किसानों को भी संसाधन खरीदने में सब्सिडी दे। अभी तक सब्सिडी केवल जमीन मालिक को ही मिलती है। केला किसानों को सबसे ज्यादा खर्च सिंचाई में होता है। डीजल की महंगाई से अब लागत बढ़ते जा रही हैं। ऐसे में कांटेक्ट पर खेती करने वाले किसानों को भी सरकार सोलर पंप, बिजली आदि पर सब्सिडी दे तो उनकी बड़ी समस्या का हल निकल सकता है।

प्रति हेक्टेयर 30 हजार दिया जाता अनुदान : जिला उद्यान अधिकारी नेपाल राम ने बताया कि केले की खेती करने वाले पंजीकृत किसानों को सरकार की ओर से भी प्रति हेक्टेयर 30 हजार रुपये का अनुदान दिया जाता है। पंजीकृत किसान बीज की खरीदारी करने के बाद जब रसीद जमा करते हैं तो उनके खाते में यह भुगतान कर दिया जाता है। केले की खेती हर साल बढ़ रही है। यह रोजगार की दृष्टि से शुभ संकेत है।


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